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ग़ज़ल---१२-२२ १२-२२ १२-२२ आ रहा है अब

ग़ज़ल में दर्द ढल कर आ रहा है अब

कोई दरिया मचल कर आ रहा है अब

 

बड़े साहब ने इक साँचा बनाया है

जिसे देखो पिघल कर आ रहा है अब

 

ज़रा सा होश खोते ही हुआ जादू

जुबां पर सच निकल कर आ रहा है अब

 

चलो अच्छा हुआ जो ठोकरें खायी

गिरा लेकिन सँभल कर आ रहा है अब

 

बनाया मोम से पत्थर जिसे मैंने

मेरी जानिब उछल कर आ रहा है अब

 

गरज़ ढुलते ही रस्ता हो गया चिकना

मेरे घर वो फिसल कर आ रहा है अब

 

जिगर ‘खुरशीद’ का दिन भर फलक पर था

चरागों में भी जल कर आ रहा है अब

 मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by ajay sharma on February 24, 2015 at 12:33am

चलो अच्छा हुआ जो ठोकरें खायी

गिरा लेकिन सँभल कर आ रहा है अब............wah wah wah sher .......kya kahoo bilkul man ki baat kar di saab ......bahut bahut mubaraqbad qubool kare ,,,,, 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 11:16pm

आदरणीय खुर्शीद खैरादी साहब ....बहुत खूब ...

ज़रा सा होश खोते ही हुआ जादू

जुबां पर सच निकल कर आ रहा है अब

 

चलो अच्छा हुआ जो ठोकरें खायी

गिरा लेकिन सँभल कर आ रहा है अब.... शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाई ! सादर

Comment by Samar kabeer on February 23, 2015 at 11:08pm
जनाब ख़ुर्शीद जी,आदाब,बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है,सुनकर दिमाग़ को तस्कीन मिली,शैर दर शैर दाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2015 at 9:19pm

ग़ज़ल में दर्द ढल कर आ रहा है अब

कोई दरिया मचल कर आ रहा है अब

बनाया मोम से पत्थर जिसे मैंने

मेरी जानिब उछल कर आ रहा है अब

बहुत खूब , आदरणीय खुर्शीद भाई , बढ़िया ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ ॥ 

 

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 23, 2015 at 6:55pm
खूब गजल है एक एक शब्द सुंदर भाव लिये हुये है बहुत बहुत बधाई खुर्शीद भाई जी .........
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 23, 2015 at 6:35pm
बड़े साहब ने इक साँचा बनाया है
जिसे देखो पिघल कर आ रहा है अब ।
बहुत खूब, नौकरी करने को यूँ दर्शाया है, बहुत खूब, बधाइयां, इस ग़ज़ल पर आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, सादर।
Comment by maharshi tripathi on February 23, 2015 at 5:12pm

बहुत खूबसूरत गजल आ. खुर्शीद जी ,,,आपको लख लख बधाइयाँ |

Comment by दिनेश कुमार on February 23, 2015 at 4:45pm
बेहतरीन ग़ज़ल हुई है, वाह वाह। धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी से मैं भी सहमत हूँ भाई खुर्शीद जी।
ज़रा सा होश खोते ही हुआ जादू
जुबां पर सच निकल कर आ रहा है अब..... Waaah
चलो अच्छा हुआ जो ठोकरें खायी
गिरा लेकिन सँभल कर आ रहा है अब.....बहुत खूब
मकते ने तो कमाल किया है। वाह वाह वाह
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 23, 2015 at 2:55pm

खुर्शीद भाई

कहाँ से बीन कर लाते हो भाई  i खुदा की कसम बड़ा रश्क होता है i  दाद क्या दूं  i दाद से परे है गजल i आपकी लेखनी ऐसी ही उर्वर बनी रहे i सादर i

Comment by Neeraj Nishchal on February 23, 2015 at 1:09pm
अहा क्या खूब खजल है एक एक शब्द सुंदर भाव लिये हुये है बहुत बहुत बधाई खुर्शीद भाई ।

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