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जख्म देकर मुस्कुराना आ गया ।
आपको तो दिल जलाना आ गया ।।
काफिरों की ख़्वाहिशें तो देखिये ।
मस्जिदों में सर झुकाना आ गया ।।
दे गयी बस इल्म इतना मुफलिसी ।
दोस्तों को आजमाना आ गया ।।
एक आवारा सा बादल देखकर ।
आज मौसम आशिकाना आ गया ।।
क्या उन्हें तन्हाइयां डसने लगीं ।
बा अदब वादा निभाना आ गया ।।
नज़्म जब लिखने चली मेरी कलम ।
याद फिर तेरा फ़साना आ गया ।।
उठ गया पर्दा जो मेरे इश्क़ से ।
बीच में सारा ज़माना आ गया ।।
जब मयस्सर हो गईं रातें सियाह ।
जुगनुओं को जगमगाना आ गया ।।
मुस्कुराता चाँद जब निकला कोई ।
गीत मुझको गुनगुनाना आ गया ।।
हो गए घायल हजारों दिल यहाँ ।
वार उसको कातिलाना आ गया ।।
तिश्नगी देती है कुछ मजबूरियां ।
अब उन्हें चिलमन हटाना आ गया ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय नवीन जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
जख्म देकर मुस्कुराना आ गया ।
आपको तो दिल जलाना आ गया ।।
काफिरों की ख़्वाहिशें तो देखिये ।
मस्जिदों में सर झुकाना आ गया ।।
वाह शानदार अहसास .... बड़े ही खूबसूरत अशआर हैं आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
दूसरे शैर में भाव स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।
जनाब आशीष जी
जनाब गुमनाम जी
जनाब नीरज जी,
इस मंच की परिपाटी ये रही है कि रचनाओं पर टिप्पणियां बहुत सलीक़े से दीजाती है,एक या दो शब्दों में नहीं,रचना की कमी और ख़ूबी को उजागर करना ही इस मंच का उद्देश्य रहा है,इसी कारण से ये मंच दूसरों से अलग नज़र आता है,उम्मीद है आप मेरी बात समझ गए होंगे ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी। लाज़वाब गज़ल।
दे गयी बस इल्म इतना मुफलिसी ।
दोस्तों को आजमाना आ गया ।।
आदरणीय नवीन मणि जी, नमस्कार । बहुत ही बढ़िया पेशकश। बधाई स्वीकार करें।
क्या बात ...
वाह बहुत खूब...........
बेहतरीन
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