For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आपको तो दिल जलाना आ गया

2122 2122 212
जख्म  देकर  मुस्कुराना  आ   गया ।
आपको तो दिल जलाना आ गया ।।

काफिरों  की ख़्वाहिशें  तो  देखिये ।
मस्जिदों में सर झुकाना  आ गया ।।

दे गयी बस इल्म इतना मुफलिसी ।
दोस्तों  को  आजमाना  आ  गया ।।

एक  आवारा  सा  बादल  देखकर ।
आज मौसम आशिकाना आ गया ।।

क्या  उन्हें   तन्हाइयां  डसने  लगीं ।
बा अदब  वादा निभाना आ गया ।।

नज़्म जब लिखने चली मेरी कलम ।
याद  फिर  तेरा फ़साना आ  गया ।।

उठ  गया  पर्दा  जो  मेरे  इश्क़ से ।
बीच  में  सारा  ज़माना  आ  गया ।।

जब  मयस्सर हो  गईं रातें  सियाह ।
जुगनुओं को जगमगाना आ गया ।।

मुस्कुराता चाँद जब निकला कोई ।
गीत  मुझको  गुनगुनाना  आ गया ।।

हो  गए घायल  हजारों  दिल  यहाँ ।
वार  उसको  कातिलाना आ गया ।।

तिश्नगी  देती  है  कुछ  मजबूरियां ।
अब उन्हें चिलमन हटाना आ गया ।।

              --नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित















Views: 782

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on June 26, 2018 at 10:21am

बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय नवीन जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर। 

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2018 at 2:37pm

जख्म देकर मुस्कुराना आ गया ।
आपको तो दिल जलाना आ गया ।।

काफिरों की ख़्वाहिशें तो देखिये ।
मस्जिदों में सर झुकाना आ गया ।।

वाह शानदार अहसास .... बड़े ही खूबसूरत अशआर हैं आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by Samar kabeer on June 25, 2018 at 2:31pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

दूसरे शैर में भाव स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।

Comment by Samar kabeer on June 25, 2018 at 2:26pm

जनाब आशीष जी

जनाब गुमनाम जी

जनाब नीरज जी,

इस मंच की परिपाटी ये रही है कि रचनाओं पर टिप्पणियां बहुत सलीक़े से दीजाती है,एक या दो शब्दों में नहीं,रचना की कमी और ख़ूबी को उजागर करना ही इस मंच का उद्देश्य रहा है,इसी कारण से ये मंच दूसरों से अलग नज़र आता है,उम्मीद है आप मेरी बात समझ गए होंगे ।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 25, 2018 at 12:56pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी। लाज़वाब गज़ल।

दे गयी बस इल्म इतना मुफलिसी ।
दोस्तों  को  आजमाना  आ  गया ।।

Comment by Neelam Upadhyaya on June 24, 2018 at 4:49pm

आदरणीय नवीन मणि जी, नमस्कार । बहुत ही बढ़िया पेशकश। बधाई स्वीकार करें।

Comment by Neeraj Neer on June 24, 2018 at 11:30am

क्या बात ... 

Comment by gumnaam pithoragarhi on June 24, 2018 at 7:56am

वाह बहुत खूब...........

Comment by आशीष यादव on June 23, 2018 at 7:35pm

बेहतरीन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service