For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-83

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 83वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहमद फ़राज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ख़बर नहीं है कि सूरज किधर से निकला था"

मुफ़ाइलुन   फइलातुन   मुफ़ाइलुन    फेलुन   

1212     1122    1212     22

(बह्र: मुज्‍तस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर)
रदीफ़ :- से निकला था
काफिया :- अर (घर, किधर, जिधर, सफ़र, बशर, राहबर आदि)

नोट:अंतिम रुक्न पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है , जैसा की अरूज़ के नियमानुसार हम अंतिम रुक्न में एक मात्रा बढ़ा सकते हैं और फेलुन को फइलुन भी कर सकते हैं तो इस प्रकार अंतिम रुक्न चार तरीकों का हो सकता है
1121/221/22/112

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 मई  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 मई दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 11168

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

पहले मिसरे में तो हमें  मैं लफ्ज की टंकण त्रुटि लग रही है । रमजान के कारण वो शायद न आ पाएं जब भी सक्रिय होंगे तो हमारी भी शंका का समाधान हो जाएगा  दुसरे मिसरे पर आदरणीय समर साहब ही कुछ कह सकते है

आ. गिरिराज जी,

परिवार को समर सर उर्दू के हिसाब से   लिख गए हैं शायद ...जिसमें  परीवार पढ़ा जाता है ... लेकिन चूँकि यह हिंदी का शब्द है  अत: परिवार सही वज़न होगा ...
दूसरा मिसरा शायद यूँ हो...
किताब हाथ में और इक सुख़न का कासा लिये..... 
ये मेरा अनुमान है ... बाक़ी वो ही बता पायेंगे 
सादर 

मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब,हिंदी में परिवार और उर्दू में परीवार होताहै उस हिसाब से मिसरा बह्र में है मगर मक़्ते का उला मिसरे की बह्र मेरी भी समझ में नहीं आयी यह तो समर साहिब ही बता सकते हैं --/

वाह वाह आदरणीय समर साहब  क्‍या कहने अंदाजे बयां के बहुत खूब हर शेर की रवानी देखते ही बनती है और गिरह का जो जवाब ही नहीं । मतला आपकी सा‍हित्‍य के प्रति मुहब्‍बत को बखूबी बयां कर रहा है अलग अलग अंदाज के शेर से सजी एक कामयाब गजल के लिये शेर दर शेर दिली मुबारक बाद और दाद हाजिर है । सादर

बहुत संभाल के रक्खा है हमने सीने में
वो एक तीर जो तेरी नज़र से निकला था।

वाहहहहह ! क्या कहने। ये एक शेर ही कई गजलों पे भारी है जनाब। बाकी तो पूरी गजल ही बाकमाल है। सादर नमन आपको।

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है ,शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें ---
आखरी शेर के उला मिसरे की तकतीअ समझ में नहीं आयी
आदरणीय समर कबीर जी,उम्दा गजल हुई है,सादर हार्दिक बधाई स्वीकारें!

आ. भाई समर जी सादर अभिवादन । इस बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब बेहतरीन मुरस्सा ग़ज़ल हुई है, गिरह भी क्या खूब लगाई है आपने. दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ। मुआफी चाहूँगा मक्ते में थोड़ा उलझ गया हूँ

आदरणीय समर साहब बेहतरीन, उस्तादना गज़ल से मंच को नवाजा आपने... जहाँ हमे लोहे के चने चबाने पड़ रहे थे आपने बड़ी सहजता से शेर कह दिये बहुत मुबारकबाद आपको..... आदरणीय गिरिराज जी को जो कनफ्यूजन  हैं वही हमारे दिमाग में भी बल  डाल  रहा है । मुशायरे मे आपकी गैर मौजूदगी अखर रही है  मगर इबादत भी ज़रूरी है । रमज़ान की मुबारकबाद ..... 

वाह! वाह!! वाह!!! क्या कमाल की ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय समर कबीर सर। मज़ा आ गया। //कभी कभी मुझे ख़ुद में दिखाई देता है, वही जुनून जो मजनूँ के सर से निकला था// यह शेर मुझे इतना पसन्द आया कि बता नहीं सकता। पूरी ग़ज़ल के साथ इस शेर की अलग से बधाई स्वीकार कीजिए। साथ ही रमज़ान की भी आपको ढेर सारी शुभकामनाएँ। सादर।

बहुत संभाल के रक्खा है हमने सीने में
वो एक तीर जो तेरी नज़र से निकला था

आदरणीय समर कबीर जी वाह क्या बात है बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई क़ुबूल कीजये 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
32 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सतरंगी दोहेः विमर्श रत विद्वान हैं, खूंटों बँधे सियार । पाल रहे वो नक्सली, गाँव, शहर लाचार…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई रामबली जी, सादर अभिवादन। सुंदर सीख देती उत्तम कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"रामबली गुप्ता जी,शुभ प्रभात। कुण्डलिया छंद का आपका प्रयास कथ्य और शिल्प दोनों की दृष्टि से सराहनीय…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"बेटी (दोहे)****बेटी को  बेटी  रखो,  करके  इतना पुष्टभीतर पौरुष देखकर, डर जाये…"
8 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार सुशील भाई जी"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार समर भाई साहब"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"बढियाँ ग़ज़ल का प्रयास हुआ है भाई जी हार्दिक बधाई लीजिये।"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"दोहों पर बढियाँ प्रयास हुआ है भाई लक्ष्मण जी। बधाई लीजिये"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"गुण विषय को रेखांकित करते सभी सुंदर सुगढ़ दोहे हुए हैं भाई जी।हार्दिक बधाई लीजिये। ऐसों को अब क्या…"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय समर भाई साहब को समर्पित बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने भाई साहब।हार्दिक बधाई लीजिये।"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आहा क्या कहने भाई जी बढ़ते संबंध विच्छेदों पर सभी दोहे सुगढ़ और सुंदर हुए हैं। बधाई लीजिये।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service