आदरणीय साथिओ,
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इसमें कथा तो दिख ही नहीं रही .लेखक गाव की हालत पर कमेंट्री करता प्रतीत होता है . कथा में घटनाये घटती हुयी दिखनी चाहिए . आप बताइए नहीं आप होता हुआ दिखाइए . सादर .
बहुत सुंदर कथा. बधाई .
लालच के भंवर में फंस गए गाँव के सीधे साधे लोग | बहुत अच्छी प्रदत्त विषय को सार्थक करती लघु कथा |हार्दिक बधाई आद० अजय गुप्ता जी |
"गांव वालों ने सपने खरीद लिए। जमीन के बदले।" बहुत ख़ूब. अच्छा विषय उठाया है आपने अपनी रचना में आ. अजय जी. किन्तु लघुकथा को बिना किसी पात्र के केवल स्वयं के मुख से कहना और कोई शीर्षक भी न देना मेरी समझ में नहीं आया. कम से कम एक-आध पात्र या संवाद तो रखना चाहिए था. बहरहाल मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आखिरी पंक्ति कमाल की है, बाकी गुणीजनों ने बता ही दिया है| आपने विषय बहुत शानदार चुना है और इसके लिए आपको साधुवाद
बहुत खूब आदरणीय अजय गुप्ता जी । इस आयोजन की श्रेष्ठ लघुकथाओं में आपकी इस लघुकथा का शुमार होगा । कमाल का कथानक ढूंढ कर लाए हैं आप । मन खुश हो गया । परन्तु प्रस्तुतिकरण कुछ कमजोर रह गया। लघुकथा का शीर्षक न होना भी खटक रहा है । सादर शुभकामनाएं
भंवर
नीचे पांडाल से आ रहा भक्तों का शोर, अच्छा नहीं लग रहा था कुंदन महाराज को I खिड़की बंद करने के लिए उठना चाहा, तो घुटनों की टीस आँखों में आँसू ले आयी I कल सदानंद के साथ आये ग्यारह बारह साल के उस पहाड़ी लड़के से मिलने के बाद से ही, उनका मन भारी था I कहीं मन में गहरे दबा हुआ उनका अपना अतीत, बार बार आँखों के सामने आ रहा था I साठ साल पहले शराबी पिता की मार से तंग, जब वो पहाड़ के अपने गाँव से भागकर इस आश्रम में आये थे, तब लगभग इसी उम्र के थे I गुरूजी के साथ रहते हुए और उनकी मृत्य के बाद उनकी गद्दी तक पहुँचने की काँटों भरी यात्रा में, कई बार चाहा था उन्होंने कि इस चोले को झटक अपने घर लौट जाएँ I पर निकल नहीं पाए I
‘’ गुरु जी, भंडारा हो गया है I अब दर्शन और आशीर्वाद के कूपन कट रहे हैं I आप आ जाईये गद्दी पर I’’ सदानंद सामने धमक गया था I
‘’ तन आज भी भारी है, विश्राम करना चाहता हूँ I पुराना दर्शन वाला वीडियो लगा दो भक्तों के आगे I’’ सदानंद से आँखें मिलाये बिना, बोल रहे थे वो I
‘’ दो दिन से ये ही तो हो रहा है I भक्तों की संख्या घट रही है गुरूजी और आप ..I’’ चेहरे की कठोरता छिपाने के लिए सदानंद ने चेहरा दूसरी तरफ कर लिया I
‘’कल जो पहाड़ी बालक तुम्हारे साथ था, दिख नहीं रहा I कहाँ लगाया है उसे ?’’ उन्होंने झिझकते हुए धीरे से पूछा I
“उसे ढूँढते हुए उसके माँ बाप आ गए थे I चला गया I’’ सदानंद की रूखाई बरकरार थी I
‘’ओहो...अच्छा ..चलो ठीक हुआ I” उनकी आवाज में अचानक तिर आई तसल्ली, सदानंद से छिप नहीं पायी I
‘’ तो गुरूजी ?’’ सदानंद उनके चेहरे को पढने की कोशिश कर रहा था I
‘’ तो क्या ! भक्त प्रतीक्षा कर रहे हैं I चलें नीचे I ‘’
उठने में टीसता हुआ घुटना, इस बार आँसू नहीं लाया आँखों में I
मौलिक व् अप्रकाशित
जिस भंवर में कुंदन महाराज स्वयं उम्र भर फंसे रहे उसमे किसी और के फँस जाने की आशंका ने उन्हें बेचैन कर दियाI पहाड़ी लड़के के चले जाने से उन्हें जो संतोष प्राप्त हुआ वही इस कथा का सार हैI पहले घुटने के दर्द से आँखों में आँसू आ जाना, दर्शन देने के लिए इनकार करना और अंत में दर्द में भी आँसू न निकलना - यह तीनो बातें देखने में भले आम सी लगती हों किन्तु ये आपकी सूक्ष्म सोच की परिचायक हैंI सकारात्मक सन्देश देती इस उत्तम लघुकथा हेतु मेरी दिली बधाई प्रेषित है आ० प्रतिभा पाण्डेय जीI
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