For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

केक के बोलते टुकड़े (लघुकथा)

इस बार उसकी ज़िद पर उसके जन्मदिन पर उसकी फ़रमाइश मुताबिक ख़ास लोगों को आमंत्रित किया गया था। तीन दिन लगातार छुट्टियां होने के बावजूद ताऊजी, चाचा-चाची या उनके बच्चे... कोई भी नहीं आया था। हां, दादा-दादी आये थे और आज सुबह वापस भी चले गए थे। आज उसे स्कूल जाना था, लेकिन मम्मी-पापा के समझाने के बावजूद आज वह स्कूल नहीं गया।
"बहुत हो गया गुड्डू! अब चुपचाप पढ़ने बैठ जाओ, घर पर ही तुम्हारी क्लास लगेगी आज!" मम्मी के सख़्त आदेश पर वह पढ़ने तो बैठ गया, लेकिन अतीत में खोया रहा अपने ताऊजी, चाचा-चाची और दादा-दादी से मिले स्नेह और दुलार को याद करते हुए।
"लो अभी तो यह केक खालो तुम, फिर होटल से चाउमीन मंगवा दूंगी।" मम्मी द्वारा परोसे गए बर्थडे-केक के तिकोने टुकड़ों में उसे अपनों के द्वारा ही तोड़ा गया संयुक्त परिवार नज़र आ रहा था। संयुक्त परिवार वाले दिनों की कलह याद कर उसने प्लेट आगे सरका दी और फिर से पढ़ने का स्वांग रचने लगा। वह जुड़े हुए सुंदर केक को याद करते हुए तिकोने टुकड़ों को अब भला कैसे खा सकता था। संयुक्त परिवार और एकल परिवार की टीचर द्वारा सिखाई परिभाषाएं उसे स्मरण हो आईं। दादा-दादी की अनमनी सी विदाई के दृश्य याद कर उसकी आंखें भीग गईं।

(मौलिक व अप्रकाशित)
[०२-१२-२०१७*ई़द-ए-मीलाद-उन-नबी*]

Views: 746

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 5, 2017 at 8:06pm

आज की परिस्थति को दर्शाता और बच्चों के मनोभाव का बखूबी चित्रण हुआ है! बधाई!

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 5, 2017 at 7:33pm

जनाब शेख शहज़ाद साहिब , बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 4, 2017 at 9:29pm

रचना पर समय देकर अनुमोदन और राय साझा करते हुए हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब और जनाब तेजवीर सिंह साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 4, 2017 at 9:21pm

अनुमोदन के साथ अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी और विचार साझा करते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, मुहतरमा राजेश कुमारी साहिबा और जनाब  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब ।

Comment by नाथ सोनांचली on December 3, 2017 at 3:45pm
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बहुत बेह्तरीन विषय को आधार बनाकर आपने लघुकथा कही, बहुत खूब।आद0 बहन राजेश जी के बातों से सहमत हूँ कि सबसे ज्यादा खामियाजा मासूम बच्चों को ही बटवारे का उठाना पड़ता है।इस लघुकथा पर आपको हार्दिक बधाइयाँ निवेदित है।सादर
Comment by Samar kabeer on December 3, 2017 at 12:19pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा और सार्थक लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on December 3, 2017 at 11:05am

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 2, 2017 at 7:46pm

चाहे संयुक्त परिवार टूटते हों या एकल परिवार सबसे ज्यादा खामियाज़ा मासूम बच्चों को उठाना पड़ता है केक को केन्द्रित कर एक गंभीर मुद्दे को उठाया है आपने .बहुत सार्थक लघु कथा आद० उस्मानी जी बधाई आपको .

Comment by Mohammed Arif on December 2, 2017 at 1:34pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
बाल मन में जो छवि अंकित हो जाती है वो अमिट हो जाती है । आजकल के हमारे समाजों में संयुक्त परिवार का नामोंं निशान ही ख़त्म हो गया है । परिणाम असुरक्षा और अपनेपन का नितांत अभाव । अकेलेपन की नागफनी के काँटे दिनरात चुभते हैं । हमारी बात दिल में ही रह जाती है । हम अपना हाले-ए-दिल किसे सुनाएँ, कोई सुनने वाला भी नहीं है । ऐसे हमारे बच्चे भी पिसा रहे हैं । हम उन्हें सुविधाएँ तो तमाम दे रहे हैं मगर संवेदनहीन भी बना रहे हैं । रिश्तों की अहमियत क्या होती है वे अब भूलते जा रहे हैं । बाल मन की हत्या करते जा रहे हैं ।
इस सशक्त लघुकथा के लिए आपको दिली मुबारकबाद और ईद-ए-मिलाद की ढेरों मुबारबाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service