आदरणीय साथिओ,
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मृग मरीचिका
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“ उफ्फ ,कितनी गर्मी है ।”
यही सोचते हुए अविका किसी काम से बाहर निकली ।
सड़क पर जमघट लगा था |
अविका ने भी रुक कर देखा:
एक महिला और पुरुष तमाशा दिखा रहे थे। साथ थी 8 या 9 साल की बच्ची ।
इतनी गर्मी में नंगे पाँव !
कभी रस्सी और और कभी गोल चक्कर पर करतब दिखा रही थी |लोग तालियाँ बजा रहे थे |तमाशा ख़त्म हुआ।
सिक्के फेंके गए !महिला और पुरुष ने सिक्के इकट्ठे किये ।
भीड़ छंट गयी |
अविका भी चलने लगी ।उसे पास से गुजरती बच्ची की आवाज़ सुनाई दी ।
“माँ-बाबा पाँव जल रहे हैं।”
स्त्री-पुरुष दोनों ने झिड़क दिया :
“चुप जितना दर्द दिखेगा, उतने पैसे ज्यादा मिलेंगें।”
अविका को शिक्षा के अधिकार ,सुकन्या योजना ,लाडली योजना, नवरात्रों पर कन्या पूजन,बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ -ये सभी दिवास्वप्न से प्रतीत हो रहे थे।
अपनी सारी हिम्मत बटोर कर अविका ने आवाज़ उठायी:
“तुम लोग एक बच्ची का इस प्रकार शोषण नहीं कर सकते।”
वो तमाशे वाले स्त्री - पुरुष का रास्ता रोक कर खड़ी हो गयी।
“ तो ! क्या करेंगी आप ?”
स्त्री ने आँखें तरेर कर कहा ।
“ओ मैडम जी , ज्यादा सुधारक न बनो। इतनी फिक्र है बच्ची की तो अपने घर ले जाओ ।हमारे पाँच बच्चे हैं ।किसी ओर से तमाशा करवा लेंगे!”
अविका चुप सी रह गयी । अपनी दो बेटियों को ही बड़ी मुश्किल से ससुराल वालों से बचा पायी थी।
वो इस बच्ची को कहाँ रखने देंगें !
मन में आया ” पुलिस बुलाऊँ ?”
फिर ख्याल आया: पुलिस बच्ची को किसी अनाथ आश्रम या सुधार गृह में भेज देगी ।उससे क्या होगा ?
संस्था वाली उसकी सहेली ने बताया तो था : ” इन जगहों पर बालिकाओं का कैसा घ्रणित शोषण होता है !”
अविका ने नज़र भर कर बच्ची को
देखा। अपने रास्ते चल पड़ी।
बच्ची जलती ज़मीन पर गर्मी से पिघलते पाँव सहलाते हुए फिर तमाशा करने को आगे बढ़ गयी |
परिस्थिति के आगे मजबूर नायिका का बहुत सुंदर संयोजन. बधाई आप को.
मोहतरमा डॉ.संगीता गाँधी जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आ० डॉ संगीता गांधी जी, नियमानुसार आपने लघुकथा के नीचे "मौलिक और अप्रकाशित" क्यों नहीं लिखा? :)
बहुत प्रभावशाली रचना है आपकी प्रदत्त विषय पर, हक़ीक़त में यही सब घटित हो रहा है. लेकिन किसी न किसी को तो आगे आना ही होगा, बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए आ डॉ संगीता गांधीजी
अविका के दिवास्वप्न को और शीघ्र हार को परिभाषित करती बेहतरीन विचारोत्तेजक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया डॉ. संगीता गांधी जी। योजनाओं/अभियानों के पूरे नाम देने की आवश्यकता नहीं है, केवल इशारा कर देना काफ़ी था। ऐसा लगता है कि हारती सी अविका को जीतता हुआ दिखा सकते थे या उसके बाद पुनः हारते भी दिखा सकते थे!
मुहतर्मा संगीता साहिबा , सुन्दर लघुकथा हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें। उस्मानी साहिब की बातों का संज्ञान लें।
बहुत बढ़िया संगीता जी।हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये।
आद0 संगीता गांधी जी सादर अभिवादन। बेहतरीन लघुकथा। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये। मौलिक व अप्रकाशित लिखना शायद आप भूल गईं।
प्रदत्त विषय पर सार्थक विचारोत्तोजक रचना ,हार्दिक बधाई आदरणीया
अच्छी लघुकथा है आदरणीया संगीता जी. शीर्षक चयन बेहतरीन है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. योजनाओं का नाम देने की जगह "विभिन्न सरकारी योजनाएँ" कहना बेहतर होता.
2. //“चुप जितना दर्द दिखेगा, उतने पैसे ज्यादा मिलेंगें।”// यह पंक्ति थोड़ी अस्वाभविक लगी.
सादर.
अच्छी कथा हुई, हार्दिक बधाई ।
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