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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-101

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 101वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब खुमार बाराबंकवी  साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"आप अब और कोई काम करें "

2122     1212     22/112

फाइलातुन        मुफ़ाइलुन        फेलुन/फइलुन

(बह्र: खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :-करें
काफिया :- आम( काम, नाम, इंतिज़ाम, एहतेराम, तमाम, आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 नवंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24  नवंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 नवंबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

अच्छी ग़ज़ल हुई है कमर साहब मुबारकबाद पेश करता हूँ

बेहतरीन ग़ज़ल है जनाब क़मर जौनपुरी साहिब

बागबां ख़ुद चमन जलाएगा
उसकी कोशिश चलो हराम करें/// मौजूदा हालात में क्या खूब मा'ना निकल के आ रहा है, वाहह बेहतरीन

इस प्रस्तुति के लिए आपको तहे दिल से मुबारक़बाद

उम्दा प्रयास के लिए दिली मुबारकबाद जनाब क़मर साहिब

आद0 क़मर जौनपुरी साहब सादर अभिवादन,, ग़ज़ल का बढ़िया प्रयास है, शेष गुणीजनों के द्वारा की गई इस्लाह से और बेहतर हो सकती है। मेरी बधाई आपको निवेदित है

आ क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

आदरणीय कमर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

आदरणीय क़मर जौनपुरी जी, उम्दा प्रयास के लिए हार्दिक बधाई

आ. भाई कमर जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

बाँटने का हमें जो काम करें
उनको हम कैसे राम राम करें।।

सेवा माँ बाप की अगर कर ली
क्या जरूरत है चार धाम करें।।

जान हाज़िर करें भले के लिए
बेअदब का न एहतिराम करें।।

ज़िन्दगी से अगर मिले फ़ुर्सत
फिर ग़ज़ल पर भी कोई काम करें ।।

ख़्वाब उनके उजड़ते हैं अक्सर
वक़्त से पहले जो विराम करें ।।

अम्न की बात जो भी करते हैं
वे ही इन्साँ का क़त्ल-ए-आम करें।।

नाम देकर विकास का यारो
क्यूँ तबाही का इन्तिजाम करें।।

ना समझ की फ़ुज़ूल बातों पर
हाय तौबा क्यूँ सुब्ह; ओ-शाम करें।।

छोड़ कर शैर गोई के फ़न को
"आप अब और कोई काम करें"।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

जनाब सुरेंद्र नाथ सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

आद0 समर साहब सादर प्रणाम। आपका आशीष मिला,, ग़ज़ल मुकम्मल हो गयी। बहुत बहुत आभार आपका, सादर

जनाब सुरेंद्र नाथ साहिब,

अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ,

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
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"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
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"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
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"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
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"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
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