For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा मशहूर शायर अहमद फ़राज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है।

तरही मिसरा है:

“तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ”

बह्र है मफ़ऊलु, मफ़ाईलु, मफ़ाईलु, फऊलुन् अर्थात् 221 1221 1221 122

रदीफ़ है ‘’के लिये आ’’ और क़ाफ़िया है ‘’आने’’ क़ाफ़िया के कुछ उदाहरण हैं खाने, गाने, छाने, जाने, ढाने, पाने, चलाने, मनाने, दिखाने, सजाने, पुराने, निभाने आदि

उदाहरण के रूप में, मूल ग़ज़ल यथावत दी जा रही है।

मूल ग़ज़ल:

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख

तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो

रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम

तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

इक 'उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम

ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़ह्‌म को तुझ से हैं उमीदें ये

आख़िरी शम'एँ भी बुझाने के लिए आ

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 23 अगस्त दिन शनिवार को हो जाएगी और दिनांक 24 अगस्त दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 अगस्त दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

तिलक राज कपूर

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 349

Reply to This

Replies to This Discussion

221 1221 1221 122

1

मुझसे है अगर प्यार जताने के लिए आ।
वादे जो किए तू ने निभाने के लिए आ।।

2

मुझको तू तेरा हाल सुनाने के लिए आ।
दिल में जो छुपी बात बताने के लिए आ।।

3

तू दिल पे लगें जख़्म भराने के लिए आ।
रिश्तों पे पड़ी धूल हटाने के लिए आ।।

4

मरहम मेरे जख़्मों पे लगाने के लिए आ।
दिल में जो लगी आग बुझाने के लिए आ।।

5

खण्डहर हो चुका शह्र मेरे दिल का जो कब से।
इक बार उसे फिर तू बसाने के लिए आ।।

6

सच जान मज़ा आ न रहा कुछ भी तेरे बिन।
महफ़िल में तू कुछ रंग जमाने के लिए आ।।

7

जाना न कहीँ छोड़ के मझदार में मुझको।
ता उम्र मेरा साथ निभाने के लिए आ।।

8

हर बार पहल मैं न करूँगा ये समझ ले।
"तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ।।"

मौलिक व अप्रकाशित

मतला नहीं हुआ,  जनाब  ! मिसरे परस्पर बदल कर देखिए,  कदाचित कुछ बात  बने !

दूसरा, मतला मुझे सही जान पड़ता है।

अन्य मतले के शे'र नियमानुसार अमान्य हैं ! साथ ही उनमें रब्त  नहीं है।

पाँचवा शे'र  बह्र में नहीं है।

छठा शे'र सही जान पड़ा !

सातवाँ शे'र जँचा नहीं, और समय चाहता है ! सही शब्द मझधार है !

गिरह अच्छी हुई है।

आठ शे'र ... फिर भी मक़ता नदारद, धैर्य रखकर, बह्र पर अतिरिक्त परिश्रम की आवश्यकता महसूस होती है !

यूँ तो ग़ज़ल देखने में अच्छी है फिर भी मेरा दृष्टिकोण प्रस्तुत है।
मुझसे है अगर प्यार जताने के लिए आ।
वादे जो किए तू ने निभाने के लिए आ।।

यूँ तो मतला देखने में ठीक लगता है मगर दोनों पंक्तियों का संबंध थोड़ा उलझा हुआ है। प्रथम पंक्ति में हम प्यार जताने के लिये आने की बात कर रहे हैं तो दूसरी में किये हुए वादे निभाने के लिये आने की बात कर रहे हैं। क्या ऐसा कोई वादा था कि प्यार होगा तो जताने के लिये आना होगा। अगर यही कहना चाहते हैं तो वादे न होकर वादा की बात आना चाहिये, जैसे ‘वादा जो किया था वो निभाने के लिये आ’।

2

मुझको तू तेरा हाल सुनाने के लिए आ।
दिल में जो छुपी बात बताने के लिए आ।।

इस शेर में भी थोड़ी उलझन है जिसे दूसरी पंक्ति में ‘जो सबसे छुपाया है बताने के लिये आ’ कहकर इसे सरल किया जा सकता है।

3

तू दिल पे लगे जख़्म भराने के लिए आ।
रिश्तों पे पड़ी धूल हटाने के लिए आ।।

मतला देखने में ठीक लगता है मगर दोनों पंक्तियों का संबंध थोड़ा उलझा हुआ है। महबूब को ऐसे कौन से ज़ख़्म मिले हैं जिन्हें भरवाने वो आये और उसके आने से रिश्तों पर पड़ी धूल कैसे हटेगी यह स्पष्ट नहीं है। ‘भराने’ शब्द का प्रयोग भी उचित नहीं लग रहा है। मेरे मत में वाक्य के इस स्वरूप में ‘भरवाने’ का प्रयोग होगा लेकिन वह मीटर से बाहर होगा।

4

मरहम मेरे जख़्मों पे लगाने के लिए आ।
दिल में जो लगी आग बुझाने के लिए आ।।

मतला देखने में प्रभावी लगता है मगर ज़ख़्म के साथ दिल में लगी बात के स्थान पर दर्द मिटाना अधिक सहज लगता। जैसे ‘ जो दर्द दिया था वो मिटाने के लिये आ’।

 

5

खण्डहर हो चुका शह्र मेरे दिल का जो कब से।
इक बार उसे फिर तू बसाने के लिए आ।।

इस शेर में खण्डहर के स्थान पर वीरान का उपयोग ठीक रहता, जैसे
वीरान हो चुका है मेरे दिल का शह्र अब
इक बार उसे फिर से बसाने के लिए आ।

फिर से बसाने की बात आने से ध्वनित होता है कि कभी दोनों का संबंध था और दिल का शह्र बसा हुआ था।

6

सच जान मज़ा आ न रहा कुछ भी तेरे बिन।
महफ़िल में तू कुछ रंग जमाने के लिए आ।।

इसी बात का एक अन्य रूप देखें
महफिल में कोई रंग न रौनक है तेरे बिन
पहले से वही रंग जमाने के लिये आ।

7

जाना न कहीँ छोड़ के मझदार में मुझको।
ताउम्र मेरा साथ निभाने के लिए आ।।

इसकी प्रथम पंक्ति देखें जिसमें यह स्पष्ट नहीं है साथ रहते हुए यह वायदा मांगा जा रहा है या कहीं दूर बैठे से यह कहा जा रहा है। इस पंक्ति का अन्य रूप देखें ‘मझघार में अटका हुआ जीवन का सफ़र है’

8

हर बार पहल मैं न करूँगा ये समझ ले।
"तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ।।"

गिरह अच्छी रही।

 

अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय

इतनी बारीकी से इस्लाह की है आदरणीय तिलक राज सर ने मतले व अन्य शेरों पर काबिल ए तारीफ़ है ग़ज़ल और बेहतर हो जायेगी

आराम  गया  दिल का  रिझाने के लिए आ

हमदम चला आ दुख वो मिटाने के लिए आ 

है ईश तू जग का तो हँसाने के लिए आ

उपदेश जो गीता है निभाने के लिए आ

बरहम हुआ आदम वो तो भटका है निशाना

रहबर है तू रस्ता तो दिखाने के लिए आ 

कोई भी ज़मीं हो वो मुहब्बत सी नई हो

जादू वो ग़ज़ल में तू जगाने के लिए आ 

हो सोच की आज़ादी अभी सारे जहाँ में

हिटलर न हो वो ट्रम्प भगाने के लिए आ 

ता उम्र तुझे रक्खा है सर आँखों पे जानाँ

तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ  ( गिरह )

तू ग़ैर की है तो सही रह उसकी ही 'चेतन'

मय्यत पे मगर मेरी ज़माने के लिए आ 

मौलिक व अप्रकाशित 

ग़ज़ल अभी समय मॉंगती है। बहुत से शेर अच्छे शेर होते-होते रह गये हैं। मेरा दृष्टिकोण प्रस्तुत है।

आराम  गया  दिल का  रिझाने के लिए आ
हमदम चला आ दुख वो मिटाने के लिए आ।
देख लीजिये
, किसी ने रिझाया तो रहा सहा आराम भी चला जायेगा। दूसरी पंक्ति मेंवोका प्रयोग स्पष्ट नहीं हो रहा है।

है ईश तू जग का तो हँसाने के लिए आ
उपदेश जो गीता है निभाने के लिए आ
हँसाने के लिये ईश के आने का संबंध स्पष्ट नहीं हुआ और न ही दूसरी पंक्ति का प्रथम पंक्ति से संबंध स्पष्ट हुआ। गीता के उपदेशों में ईश का ऐसा तो कोई दायित्व निर्धारित नहीं था कि वो जग को हँसाने के लिये आयेगा।

बरहम हुआ आदम वो तो भटका है निशाना
रहबर है तू रस्ता तो दिखाने के लिए आ 
इसमें मामूली बदलाव प्रवाह ठीक रखने के लिये आवश्यक है:
बरहम हुआ आदम तो भटकता ही रहा है
तू राह सही इसको दिखाने के लिये आ।

कोई भी ज़मीं हो वो मुहब्बत सी नई हो
जादू वो ग़ज़ल में तू जगाने के लिए आ

इसकी दूसरी पंक्ति ऐसे भी हो सकती है ‘जादू मेरी ग़ज़लों में जगाने के लिये आ’ 

हो सोच की आज़ादी अभी सारे जहाँ में
हिटलर न हो वो ट्रम्प भगाने के लिए आ 
शायद आप ऐसा कुछ कहना चाह रहे हैं:
हो ट्रम्प की बंदिश किसी आज़ाद वतन पर
ऐसी किसी हालत से बचाने के लिये आ –या-
हिटलर न वो हो जाए, बचाने के लिये आ

ता उम्र तुझे रक्खा है सर आँखों पे जानाँ
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ  ( गिरह )

अच्छी गिरह हुई।

अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय

आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी अच्छी इस्लाह हुई है

221 1221 1221 122

मुश्किल में हूँ मैं मुझको बचाने के लिए आ

है दोस्ती तो उसको निभाने के लिए आ 1

दिल में जो छुपा है वो बताने के लिए आ

हर राज़ से पर्दे को उठाने के लिए आ 2

अपने गले से मुझको लगाने के लिए आ

तू भी तो कभी शक्ल दिखाने के लिए आ 3

दिल तोड़ने की बात कभी करती नहीं मैं

शक़ है तुझे तो उसको मिटाने के लिए आ 4

ग़ैरों की कहीं बात में आना ही “रिया” क्यों

टूटे न भरोसा ये बचाने के लिए आ 5

गिरह

इसबार मैं भी रूठ के देखूँगी तेरा प्यार

“तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ”

“मौलिक व अप्रकाशित”

मुश्किल में हूँ मैं मुझको बचाने के लिए आ
है दोस्ती तो उसको निभाने के लिए आ 1

यही बात इन्हीं शब्दों के साथ अन्य रूप में देखें:
मुश्किल में फँसी हूँ मैं, बचाने के लिये आ
तू दोस्त अगर है तो निभाने के लिये आ।
इस पर यह कहा जा सकता है कि दोस्ती निभाई जाती है, दोस्त से क्या संबंध निभाने का, लेकिन दूसरी पंक्ति मेंतू दोस्त अगर है तो (दोस्ती) निभाने के लिये आके रूप में दोस्ती अंर्तनिहित है।

दिल में जो छुपा है वो बताने के लिए आ
हर राज़ से पर्दे को उठाने के लिए आ 2
इसमें प्रथम पंक्ति में ‘दिल में जो छुपा है’ को ‘जो दिल में छुपा हैकहकर प्रवाह सरल किया जा सकता है।  

अपने गले से मुझको लगाने के लिए आ
तू भी तो कभी शक्ल दिखाने के लिए आ 3
इसका एक अन्य रूप देखें:
इक बार गले मुझको लगाने के लिये आ
ख़्वाबों में सही, शक्ल दिखाने के लिये आ।

दिल तोड़ने की बात कभी करती नहीं मैं
शक़ है तुझे तो उसको मिटाने के लिए आ 4
इसका एक अन्य रूप देखें:
दिल तोड़ने की बात ज़माने की है साज़िश
तुझको है अगर शक़ तो मिटाने के लिए आ 4

ग़ैरों की कही बात में आना ही “रिया” क्यों
टूटे न भरोसा ये बचाने के लिए आ 5
इसका एक अन्य रूप देखें:
ग़ैरों की कही बात में आना ही “रिया” क्यों
जो सच है मुझे खुद ही बताने के लिए आ

 

गिरह

इस बार मैं भी रूठ के देखूँगी तेरा प्यार
“तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ”
पहली पंक्ति की बात एक अन्य रूप में देखें:
इक बार रूठकर मैं तेरा प्यार परख लूँ

 

आदरणीय तिलक जी नमस्कार

बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आपने इतनी बारीकी से ग़ज़ल को देखा 

आपकी इस्लाह से ग़ज़ल वाकई निखर गई है हर शेर बेहतर लगा, आभार आपका

सादर

अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने

आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी

आदरणीय Aazi जी

बहुत शुक्रिया आपका 

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रिचा जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
2 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय इंसान जी अच्छा सुझाव है आपका सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल पर नज़र ए करम का"
3 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय जयहिंद  जयपुरी जी सादर नमस्कार जी।   ग़ज़ल के इस बेहतरीन प्रयास के लिए बधाई…"
2 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। वाह वाह बेहद शानदार मतला के साथ  शानदार ग़ज़ल के लिए दिली…"
2 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण जी सादर नमस्कार जी। क्या ही खूबसूरत मतला हुआ है। दिली दाद कुबूल कर जी।आगे के अशआर…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय Aazi जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आपने इतनी बारीकी से ग़ज़ल को देखा  आपकी इस्लाह…"
3 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब! ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास हुआ है जिसके लिए बहुत बहुत बधाई हो। मतला यूँ देखिए…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी अच्छी इस्लाह हुई है"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय इतनी बारीकी से इस्लाह की है आदरणीय तिलक राज सर ने मतले व अन्य शेरों पर काबिल…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service