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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-80

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 80वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब मख़दूम मुहिउद्दीन साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
उन्ही की आँखों के क़िस्से उन्ही के प्यार की बात "

मुफाइलुन     फइलातुन     मुफ़ाइलुन    फइलुन/फेलुन

1212      1122     1212    1121/221/22/112

(बह्र: मुज्‍तस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर
रदीफ़ :- की बात 
काफिया :- आर (प्यार, बहार, दयार आदि)
नोट:अंतिम रुक्न पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है , जैसा की अरूज़ के नियमानुसार हम अंतिम रुक्न में एक मात्रा बढ़ा सकते हैं और फेलुन को फइलुन भी कर सकते हैं तो इस प्रकार अंतिम रुक्न चार तरीकों का हो सकता है

1121/221/22/112

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 फरवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 फरवरी दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

बहुत अच्छी ग़ज़ल आ. मुनीश तन्हा जी...
आदरणीय मुनीश जी बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। बहुत बहुत  मुबारक बाद आद० नीलेश जी की बात भी काबिले गौर है संकलन के वक़्त आप निःसंदेह संशोधन कर लेंगें |

खिज़ा के रुत में न कर ऐसे तू बहार की बात
हमारे दिल को चुभा करती है क़रार की बात

कोई क़दम भी उठाए तो कोई बात बने
ज़बाँ से तो यूँ सभी करते हैं सुधार की बात

उसी की जीत के चर्चे हैं अब जिधर देखो
कि जिसने हार न मानी थी सुन के हार की बात

न तुमने देखा, न उसने, न मैंने देखा है
वज़ूद उसका है सिर्फ एक ऐतबार की बात

बिछड़ के उनसे सुनाता हूँ मैं सभी को अब
"उन्ही की आँखों के क़िस्से उन्ही के प्यार की बात"

ये शेरो-शाइरी की मेह्रबानियां हैं जो
पहुँच रही है सरे-बज़्म ख़ाकसार की बात

(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरणीय जयनित जी आदाब, क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने ।वाह!,वाह!!बधाई क़ुबूल करें ।
आदरणीय जयनित जी बहुत बढ़िया अशआर कहे हैं आपने दिल से बधाई स्वीकार करें ।
आखिरी शेर भी बढ़िया ।
दो बातों पर अपनी राय देने की कोशिश है
खिज़ा की रुत किया जाए तो और दूसरे शेर का सानी मिसरा जुबां से यूँ तो सभी किया जाए तो शब्दों का सहज क्रम हो सकता है जैसे बोलते है ।

और
उसी की जीत के चर्चे हैं अब जिधर देखो
कि जिसने हार न मानी थी सुन के हार की बात
ये शेर हासिल ग़ज़ल लगा हमें । बहुत खूब वाह वाह

से तो यूँ..एक साथ आने से लय भंग कर रहे हैं ..
..
न तुमने देखा, न उसने, न मैंने देखा है
वज़ूद उसका है सिर्फ एक ऐतबार की बात.... दोनों मिसरों में उस का रेफरेंस है जो शेर को बर्बाद कर रहा है ...ऊला में उसने की जगह पर जैसे भी हो ..किसी ने न देखा है... जैसी कोई बात हो तो बात में मज़ा आ जाय.

ग़ज़ल के लिये बधाई 
सादर 

आ० बेहतरीन गजल

न तुमने देखा, न उसने, न मैंने देखा है
वज़ूद उसका है सिर्फ एक ऐतबार की बात----------- उसका  वजूद  और  न उसने देखा   ?

बिछड़ के उनसे सुनाता हूँ मैं सभी को अब------- तकाबुले रदीफ़ की जांच कर लें . सादर

मत्‍ले के शेर को एक बार फिर देखना ज़रूरी है, राब्‍ता स्‍पष्‍ट नहीं है।

इसी प्रकार चौथे शेर को एक बार फिर देखना ज़रूरी है।

आदरणीय जयनित जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है. शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. गुनीजनों की बातों पर गौर कीजियेगा. सादर 

आदरणीय जयनित भाई , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , गिरह भी अच्छी लगाई है , हार्दिक बधाइयाँ ।

अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई जयनित कुमार मेहता जी, मतले पर दोबारा नज़र-ए-सानी फरमाएँI गुणीजनों की सलाह पर ध्यान दें, और सुंदर ग़ज़ल हेतु मेरी बधाई स्वीकारेंI   

आदरणीय जयनित जी, बढ़िया ग़ज़ल लगी आपकी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

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