आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार तिरसठवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
15 जुलाई 2016 दिन शुक्रवार से 16 जुलाई 2016 दिन शनिवार तक
इस बार पिछले कुछ अंकों से बन गयी परिपाटी की तरह ही दोहा छन्द के साथ एक नया छन्द कुकुभ छन्द को रखा गया है. -
दोहा छन्द और कुकुभ छन्द
कुकुभ छन्द की रचना के लिए बच्चन की मधुशाला का उदाहरण ले सकते हैं.
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.
इन छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना करनी है.
प्रदत्त छन्दों को आधार बनाते हुए नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
[प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से प्राप्त हुआ है]
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो दोनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
दोहा छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
कुकुभ छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 15 जुलाई 2016 दिन शुक्रवार से 16 जुलाई 2016 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
विशेष :
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय रविकर भाई, आपकी उपस्थिति और आश्वस्त करती प्रस्तुति से आयोजन समृद्ध तो हुआ है. किन्तु, इस उपस्थिति को मैं टोकन ही मानूँगा. हा हा हा..
हार्दिक धन्यवाद और सादर शुभकामनाएँ
आदरणीय रविकर भाईजी, आपके कहे से पहले तीन शब्द कानों में मिश्री घोल-घोल कर मधुर-मधुर घण्टियाँ बजाते हुए हमें सतत रससिक्त कर रहे हैं.
जय हो.. जय हो..
:-)))
जेठ जुल्म करके गया, आगे ठाढ़ असाढ़ |
मानसून आता दिखे, आ जाए ना बाढ़ ||...बहुत सुन्दर भाव
छिति-जल-पावक ने किया, खपरा नया तयार |
मगन गगन है देख के, खुश है मंद-बयार ||....क्या. तैयार' को.' तयार' लिखा जा सकता है?
प्रदत्त चित्र पर सुन्दर दोहावली के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय रविकर जी
तेरी जद छोड़ रहा हूँ मैं
देख, तेरी हद तोड़ रहा हूँ मैं
और कब तक बहेगी
विरोध में हवा
हवा का रुख मोड़ रहा हूँ मैं
तिनका नहीं कि
दर-बदर कर दे
तिनकों से मकां जोड़ रहा हूँ मैं
गरीब जान कर
मुझे उजाड़ने वाले
हर मसायल का मुंहतोड़ रहा हूँ मैं
ये तूफान भी, अब
डराते नहीं मुझे
इनसे ही ले होड़ रहा हूँ मैं
इक दिन तू भी
समझेगा मेरा अज़्म
तुझसे ही हूँ, कहाँ दौड़ रहा हूँ मैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
सादर.......
आदरणीय सुधेन्दु भाई , चित्र से काव्य तक मे केवल दोहे या कुभुक छंद मे रचना करनी थी , आपने शायद नियम पढ़ा नही ।
ये क्या रचना है ? इस रचना की इस आयोजन में क्या आवश्यकता है आदरणीय सुधेन्दु ओझा जी
दोहे
===
सावन दरवाजे खड़ा, टूट गयी खपरैल।
री बुधिया ! तू देख ले, चारा, गोरू, बैल।
रोके रख बरसात को, एक रोज भगवान।
बह जाएगा अन्यथा, घर का सब सामान।
कल से बरसो झूम कर, ओ ! बादल महराज।
कट जायें कंटक सभी, बन जायें सब काज।
ताड़ सरीखी बढ़ रहीं, बिटियाँ सालों-साल।
आँगन की रौनक बनीं अब जी का जंजाल।
अबकी ऐसा धान हो, भर जायें कोठार।
पीले कर दें हाथ जो, बड़की के इस बार।
ककुआ पीछे देख के, खपड़ी पे हैं तार।
बिजुरी घर माफी नहीं, रक्खे नहीं उधार।
----------------- मौलिक और अप्रकाशित
आदरणीय सुलभ भाई
ताड़ सरीखी बढ़ रहीं, बिटियाँ सालों-साल।
आँगन की रौनक बनीं अब जी का जंजाल। ........ अति सुंदर
बहुत ही खूबसूरत दोहे रचे , हार्दिक बधाई
आ. सुलभ अग्निहोत्री जी, प्रदत्त चित्र पर इस बढ़िया दोहावली पर हार्दिक बधाई आपको ! एक बात कहना चाहूँगा तीसरे दोहे में "महराज" शब्द कुछ अटपटा लग रहा है, मेरे विचार से सही शब्द महाराज होना चाहिए ! सादर !
जी ! सही शब्द महाराज ही है किंतु देशज प्रयोगों में महराज खूब चलता है और आप देख ही रहे हैं कि इन दोहों में देशज छवि प्रस्तुत करने का ही प्रयास है।
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