सदा हिजाब में रहते हो माज़रा क्या है?
बड़े रुबाब में रहते हो माज़रा क्या है?
बना दिया आखिर मुझे गुलशन पसंद....
हरेक गुलाब में रहते हो माज़रा क्या है?
हुदूद कोई बना लो हुस्न-ए-शबनम की....
खुले शबाब में रहते हो माज़रा क्या है?
कभी दुआ कभी मुराद में महसूस किया....
कभी अज़ाब में रहते हो माज़रा क्या है?
शकाफत भरा है तुम्हारा कोहिनूर बदन....
हया-ओ-आब में रहते हो माज़रा क्या है?
जबसे दीदार…
Posted on July 3, 2012 at 12:48pm — 7 Comments
कर भला कर भला गर भला कर सके....
नफरतो को मिटा गर भला कर सके....
नाउम्मीदी भरा कोई जब भी मिले....
आस उसको बंधा गर भला कर सके....
जब कभी कोई अंधा दिखे राह में....
पार उसको लगा गर भला कर सके....
हाथ फैलाए जब कोई भूखा दिखे....
भूख उसकी मिटा गर भला कर सके....
तन किसी का खुला देख ले गर कभी....
पेरहन कर अता गर भला कर…
Posted on May 15, 2012 at 7:30pm — 19 Comments
तुम्हारे दिल में बस जाते, अगर तुम रास्ता देते....
तबाह-ए-ख़ाक हो जाते, अगर तुम वास्ता देते ....
दिल को एहसास ही रहा, मगर तेरे ना हुए हम....
ज़माने को रुला जाते, अगर हम दास्ताँ कहते ....
Posted on May 11, 2012 at 8:00pm — 5 Comments
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Comment Wall (5 comments)
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें !
प्रिय राज जी हार्दिक स्वागत है आप का और मित्र बनने हेतु -आभार ....आइये मानवता की सेवा में तत्पर बढ़ते चलें ---भ्रमर ५
आपका स्वागत है श्रीमान
सादर वन्दे
Hi How are you ?
स्वागत है :)))