अहबाब ऐतबार के काबिल नहीं रहे
ये कैसे सर हैं ..! दार के काबिल नहीं रहे
जज़्बात इफ्तेखार के काबिल नहीं रहे
अब नवजवान प्यार के काबिल नहीं रहे
हम बेरुखी का बोझ उठाने से रह गए
कंधे अब ऐसे बार के काबिल नहीं रहे
ज़ागो ज़गन तो खैर, तनफ्फुर के थे शिकार
बुलबुल भी लालाज़ार के काबिल नहीं रहे
पस्पाइयौं के दौर में यलगार क्या करें
कमज़ोर लोग वार के काबिल नहीं रहे
कांटे पिरो के लाये हैं अहबाब किस लिए
क्या हम गुलों के हार…
Posted on May 25, 2011 at 12:15am — 7 Comments
ग़ज़लContinue
अज़ीज़ बेलगामी
हर शब ये फ़िक्र चाँद के हाले कहाँ गए
हर सुबह ये खयाल उजाले कहाँ गए
अब है शराब पर या दवाओं पे इन्हेसार
जो नींद बख्श दें वो निवाले कहाँ गए
वो इल्तेजायें मेरी तहज्जुद की क्या हुईं
थी अर्श तक रसाई, वो नाले कहाँ गए
मंजिल पे आप धूम मचाने लगे जनाब
मुझ को ये फ़िक्र, पांव के छाले कहाँ गए
दस्ते कलम में आज भी अखलाक सोज़ियाँ
किरदारसाज थे जो रिसाले, कहाँ गए
गुलशन के बीच खिलने लगे…
Posted on May 13, 2011 at 10:11am — 16 Comments
ग़ज़ल
अज़ीज़ बेलगामी
मेरा असासा सुलगता हुवा मकाँ है अभी
अगरचे आग बुझी है धुवाँ धुवाँ है अभी
यकीं की शम्मा जलाता रहा हूँ सदियौं…
ContinuePosted on December 29, 2010 at 10:53am — 3 Comments
Posted on December 26, 2010 at 2:00pm — 7 Comments
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Comment Wall (10 comments)
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
आदरणीय अजीज बेलगामी जी, आपको ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें
आ0 अजीज बेलगामी जी,
सुन्दर संवारें सौ वर्ष,
हर दिन सजाए नवहर्ष।
मंगल कामना सा कर्म,
जीतें जहां का सब धर्म।।
........जन्मदिन के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकारें। सादर,
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय , आप ने एक नया नाम दिया मुझे "नागेश" धन्यवाद |
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
Wo aaye hgar mein Hamare Khuda ki Kudarat Hai
Kabhi Ham unako Kabhi apanr Ghar ko dekhate Hain