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Ram Awadh VIshwakarma
  • Male
  • Gwalior Madhyapradesh
  • India
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Ram Awadh VIshwakarma replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-150
"खेतों से बाजार तक अनगिन खरपतवार नयी उपज को दे रहे दुख यूँ नित्य अपार सत्य है। पूँजीवाद किसान को पनपने नहीं देते हैं।"
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Ram Awadh VIshwakarma replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-150
"रुबाई मंज़र को किसी हाल में हम बदलें आज संकट की घड़ी से सभी बच निकलें आज है फर्ज हमारा कि बुझा दें यह आग इस में न झुलस जायें नई फसलें आज मौलिक अप्रकाशित"
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अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"// इस हिसाब से पहले उर्दू सीखें फिर शायरी की जाये।// जनाब राम अवध विश्वकर्मा जी, आदाब। किसी को भी( उर्दू ज़बान में ) 'शाइरी' (कविता ) करने के लिए कोई बाध्य नहीं करता है, हिन्दी ज़बान में भी कविता / शाइरी करने वाले बड़े ऊँचे, नामवर और…"
Jun 7, 2020
सालिक गणवीर commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी सादर अभिवादन एक और अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँँ स्वीकारें.जब आप उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो नुक्ते का उचित प्रयोग ज़रूरी है नहीं तो अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती. आपको उस्तादे मोहतरम समर…"
Jun 7, 2020
सालिक गणवीर commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी सादर अभिवादन एक और अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँँ स्वीकारें.जब आप उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो नुक्ते का उचित प्रयोग ज़रूरी है नहीं तो अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती. आपको उस्तादे मोहतरम समर…"
Jun 7, 2020
सालिक गणवीर commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी सादर अभिवादन एक और अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँँ स्वीकारें.जब आप उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो नुक्ते का उचित प्रयोग ज़रूरी है नहीं तो अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती. आपको उस्तादे मोहतरम समर…"
Jun 7, 2020
Ram Awadh VIshwakarma commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"आदरणीय रवि भसीन साहब जी सादर नमस्कार। आदरणीय समर कबीर सर की टिप्पणी की मैने उपेक्षा नहीं की। मैंने स्वीकार किया कि उर्दू  के हिसाब से नुक्ता लगाना चाहिए ये सच है।मैंने कहां इसको नकारा। लेकिन ये भी सच है कि "ज" के लिए एक ही अक्षर…"
Jun 7, 2020
रवि भसीन 'शाहिद' commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"//हिन्दी वर्णमाला में आज भी नुक्ता वाले अक्षर नहीं हैं। मैंने आम बोलचाल में आने वाले शब्दों का इस्तेमाल किया है।// आदरणीय, आप अगर ढूँढेंगे तो सहीह जानकारी अवश्य मिलेगी। आम आदमी और साहित्यकार/शाइर की भाषा में कम से कम right और wrong का अंतर तो होना…"
Jun 7, 2020
रवि भसीन 'शाहिद' commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
Jun 6, 2020
रवि भसीन 'शाहिद' commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"आदरणीय Ram Awadh VIshwakarma साहिब, आपको ग़ज़ल की पेशकश पर बधाई। जनाब मैं ये समझने में पूरी तरह असमर्थ हूँ कि नुक़्ते को लेकर कुछ शाइर इतना defensive और resistant क्यूँ हैं। अगर नुक़्ते का इस्तेमाल ग़ैर-ज़रूरी है तो फिर बिंदी और चन्द्रबिन्दु का इस्तेमाल…"
Jun 6, 2020
Ram Awadh VIshwakarma commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"आदरणीय दयाराम जी आदाब। ग़ज़ल पसन्द करने के लिए सादर आभार"
Jun 6, 2020
Ram Awadh VIshwakarma commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"आदरणीया डिम्पल शर्मा जी आदाब। ग़ज़ल सराहना एवं उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Jun 6, 2020
Ram Awadh VIshwakarma commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी। सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर टिप्पणी एवं उत्साह वर्धन के लिए हृदय से आभार"
Jun 6, 2020
Ram Awadh VIshwakarma commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"आदर्णीय तेजवीर सिंह जी नमस्कार। ग़ज़ल पर टिप्पणी करने एवं उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार"
Jun 6, 2020
Ram Awadh VIshwakarma commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"आदरणीय समर कबीर साहब ग़ज़ल पर टिप्पणी करने, उत्साह बढ़ाने एवं सुझाव के लिए तहे दिल से शुक्रिया। मैं हिन्दी भाषी हूं। हिन्दी वर्णमाला में आज भी नुक्ता वाले अक्षर नहीं हैं। मैंने आम बोलचाल में आने वाले शब्दों का इस्तेमाल किया है। उर्दू के हिसाब से…"
Jun 6, 2020
Dayaram Methani commented on Ram Awadh VIshwakarma's blog post ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब
"इन्किलाब की याद दिलाने के लिए राम अवध जी बहुत बहुत धन्यवाद एवं बधाई।"
Jun 6, 2020

Profile Information

Gender
Male
City State
Gwalior Madhya pradesh
Native Place
Basti U.P.
Profession
Retired Govt. Servent
About me
Retired as Divisional Engineer BSNL book published 1.Mehman Bhi Ltkate Hain ( Gazals) 2.Chakoo khatkedar hai ab (Gazals) 3.Muft khori Jinda Bad ( Gadya Vyangya ) 4. Vishwakarma Brahmin aur unke gotra 5.Iski Topi Uske Sar Pe (Gazals)6. Bhopoo sa chillate rahiye.

Ram Awadh VIshwakarma's Blog

ग़ज़ल - एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब

बह्र - फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन

एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब

कोई बतलाये कहाँ गायब हुआ है इन्किलाब

एक वो भी वक्त था तनकर चला करता था वो

एक ये भी वक्त आया है छुपा है इन्किलाब

खूबसूरत आज दुनिया बन गई है कत्लगाह

जालिमों से मिल गया है अब सुना है इन्किलाब

है अगर जिन्दा तो आता क्यों नहीं वो सामने

ऐसा लगता है कि शायद मर चुका है इन्किलाब

लोग कहते हैं गलतफहमी है ऐसा है…

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Posted on June 5, 2020 at 7:46am — 18 Comments

ग़ज़ल-आ गई फिर से मुसीबत मेरे सर पर कम्बख्त

बह्र-फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फैलुन

मुँह अँधेरे वो चला आया मेरे घर कमबख्त

आ गई फिर से मुसीबत मेरे सर पर कमबख्त

इस समय खौफजदा लगती है दुनिया सारी

सबके सीने में समाया हुआ है डर कमबख्त

चाहता हूँ मैं उड़ूँ नील गगन मे लेकिन

साथ देते ही नहीं अब मेरे ये पर कमबख्त

बन के तूफान चला आया शहर के अन्दर

कर गया कितनों को बरबाद समन्दर कमबख्त

लाख चाहूँ मैं उसे मुट्ठी में कर लूँ लेकिन

दो कदम दूर ही रहता है मुकद्दर कमबख्त

वो भी कहता है कि…

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Posted on May 29, 2020 at 8:30am — 2 Comments

ग़़ज़़ल- फोकट में एक रोज की छुट्टी चली गई

बह्र - मफऊल फाइलात मफाईल फाइलुन

221 2121 1221 212

अन्धों के गांव में भी कई बार ख्वामखाह

करती है रोज रोज वो ऋंगार ख्वामखाह

रिश्ता नहीं है कोई भी उससे तो दूर तक

मुजरिम का बन गया है तरफदार ख्वामखाह

फोकट में एक रोज की छुट्टी चली गई

इतवार को ही पड़ गया त्यौहार ख्वामखाह

नाटक में चाहते थे मिले राम ही का रोल

रावण का मत्थे मढ़ गया किरदार ख्वामखाह

ये बुद्ध की कबीर की चिश्ती की है जमीन

फिर आप भाँजते हैं क्यूँ तलवार ख्वामखाह

खबरे बढ़ा चढ़ा…

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Posted on May 25, 2020 at 5:07pm — 16 Comments

ग़ज़ल - इस तरफ इंसान कड़की में

बह्र - फाइलातुन फाइलातुन फा

2122 2122 2

इस तरफ इंसान कड़की में

उस तरफ भगवान कड़की में

एक पल को भी नहीं भटका

राह से ईमान कड़की में

लाक डाउन में गई रोजी

सब बिके सामान कड़की में

ज़िन्दगी रफ्तार से दौड़े

हैं नहीं आसान कड़की में

हैं बहुत बीमार हफ्तों से

घर में अम्मी जान कड़की में

भूल बैठे सब हंसी ठठ्ठा

गुम हुई मुस्कान कड़की में

क्या कहें बरसात से पहले

ढह गया…

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Posted on May 23, 2020 at 9:11am — 6 Comments

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At 9:43pm on July 30, 2011,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

Mushayra :- कमेन्ट जीस पोस्ट पर करनी हो ठीक उसके नीचे दाहिने तरफ ब्लू रंग में Reply लिखा हुआ है उसको क्लिक कर जब कमेन्ट करेंगे तो थ्रेड में आएगा, मुख्य बॉक्स में केवल नया पोस्ट करना चाहिए | ( आप नए है इसलिए जानकारी हेतु बता रहा हूँ ) 

इस कमेन्ट को पुनः बताये अनुसार लगा दे |

At 9:56am on July 9, 2011,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 7:53pm on July 3, 2011, Admin said…
At 7:18pm on July 2, 2011, PREETAM TIWARY(PREET) said…
 
 
 

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