जगण+रगण+जगण+रगण+जगण+गुरु
करे विचार आज क्यों समाज खण्ड खण्ड है
प्रदेश वेश धर्म जाति वर्ण क्यों प्रचण्ड है
दिखे न एकता कहीं सभी यहाँ कटे हुए
अबोध बाल वृद्ध या जवान हैं बटे हुए
अपूर्ण है स्वतन्त्रता सभी अपूर्ण ख़्वाब हैं
जिन्हें न लाज शर्म है वहीं बने नवाब हैं
अधर्म द्वेष की अपार त्योरियाँ चढ़ी यहाँ
कुकर्म और पाप बीच यारियां बढ़ी यहाँ
गरीब जोर जुल्म की वितान रात ठेलता
विषाद में पड़ा हुआ अनन्त दुःख…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 29, 2018 at 2:10pm — 5 Comments
विधाता छंद वाचिक मापनी का छंद है जिसमे 14, 14 मात्राओं पर यति और दो-दो पदों की तुकांतता होती है। इसका मापनी
1222 1222 1222 1222
पड़े जब भी जरूरत तो, निभाना साथ प्रियतम रे
सुहानी हो डगर अपनी, मिले मुझको न फिर गम रे
बहे सद प्रेम की सरिता, रगों में आपके हरदम
नहाता मैं रहूँ जिसमें, मिटे सब क्लेश ऐ हमदम
बने दीपक अगर तुम जो, शलभ बनके रहूँगा मैं
मिलेगी ताप जो मुझको, वहीं जल के मरूँगा मैं
फकत इतनी इबादत है, जुड़े तन मन…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 29, 2018 at 8:46am — 3 Comments
कलम उठाई है मैंने अब, सोयी रूह जगाने को
जिस मिट्टी में जन्म लिया है, उसका कर्ज चुकाने को
कलमकार का फर्ज निभाऊं, हलके में मत लेना जी
भुजा फड़कने अगर लगे तो, दोष न मुझको देना जी
सन सैतालिस हमसे यारो, कब का पीछे छूटा है
भारत के अरमानों को खुद, अपनो ने ही लूटा है
भूख गरीबी मिटी नही है, दिखती क्यो बेगारी है
झोपड़ियो के अंदर साहब दिखती क्यों लाचारी है
भारत माता की हालत को, देखों तुम अखबारों में
कैद…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 26, 2018 at 1:23pm — 8 Comments
मकर राशि मे सूर्य का, ज्यों होता आगाज
बच्चे बूढ़े या युवा, बदलें सभी मिजाज।1।
भिन्न भिन्न हैं बोलियाँ, भिन्न भिन्न है प्रान्त
पर्व बिहू पोंगल कहीं, कहीं यहीं संक्रांत।2।
कहीं पर्व यह लोहड़ी, मने आग के पास
वैर भाव सब जल मिटे, झिलमिल दिखे उजास।3।
नदियों में डुबकी लगे, सब करें मकर स्नान
घर मे पूजा पाठ हो, सन्त लगाएं ध्यान।4।
उत्तरायणी पर्व पर, दान धर्म का योग
काले तिल में गुड़ मिले, लगे उसी का…
Added by नाथ सोनांचली on January 14, 2018 at 11:47am — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 9, 2018 at 11:22am — 9 Comments
अरकान-फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा
ऐसे रिश्ता यार निभाया जाता है
वक़्त पड़े तो ग़म भी खाया जाता है ।।
भूख लगी हो और न हो कुछ खाने को
बच्चे का फिर दिल बहलाया जाता है।।
लाख छुपाने से भी जब ये छुप न सके
फिर क्यों यारो इश्क़ छुपाया जाता है।।
तब होती है घर में बरकत ही बरकत
मुफ़लिस को महमान बनाया जाता है ।।
रुखा सूखा खाना लज़्ज़त दार लगे
माँ के हाथों से जब खाया जाता है ।।
चुंगल में सेठों के…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 8, 2018 at 2:03pm — 11 Comments
पहली जनवरी की सुबह कुहरे की चादर लपेटे, रोज से कुछ अलग थी। सामने कुछ भी दिखाई नही दे रहा था। चाहे मौसम अनुकूल हो या प्रतिकूल, गौरव की दिनचर्या की शुरूआत मॉर्निंग वॉक से ही होती है, सो आज भी निकल गया हाथ मे एक टार्च लिए।
गली के चौराहे पर रोज की तरह शर्मा जी मिल गए। गौरव ने उनको हैप्पी न्यू ईयर बोला। पर शर्मा जी शुभकामना देने के बजाय भड़कते हुए बोले-
"अरे गौरव भाई! कौन से नव वर्ष की बधाई दे रहे हैं आप? आज आपको कुछ भी नया लग रहा है। क्या?"
क्यों? आपके…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:30pm — 12 Comments
कमरे में घुसकर उसने रूम हीटर ऑन किया। तभी उसे दोबारा कुतिया के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। वह हॉस्पिटल की भागमभाग से बहुत अधिक थका हुआ था जिसके कारण उसकी इच्छा तुरन्त सोने की हो रही थी लेकिन कुतिया की लगातार दर्द औऱ कराहती आवाज उसकी इच्छा पर भारी पड़ी।
सोहन बाहर आकर इधर-उधर देखा। बाहर घना कुहरा था जिसकी वजह से बहुत दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। स्ट्रीट लाइट का प्रकाश भी कुहरे के प्रभाव से अपना ही मुँह देख रहीं थी। बर्फीली हवा सर्दी की तीव्रता को और बढ़ा रही थी जिससे ठंडी बदन…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 2, 2018 at 2:30pm — 10 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 1, 2018 at 2:31pm — 11 Comments
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