Added by Dr.Prachi Singh on February 28, 2016 at 12:30pm — 7 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on February 23, 2016 at 4:30pm — 18 Comments
2122 1122 1122 22
सारे धर्मों की सही बात उठाई जाए,
उसकी इक बूँद हर इन्साँ को पिलाई जाए।
है समंदर ही समंदर मगर इन्साँ प्यासा
सूखे होठों की चलो कहाँ प्यास बुझाई जाए।
आज तक माफ़ किया जिनको समझ कर नादाँ
अब जरूरत है उन्हें आँख दिखाई जाए।
जेठ की गर्म हवाओं में भी बरसे सावन
मेहंदी प्यार की प्यार की मेहंदी जो हाथों में रचाई जाए।…
Added by Dr.Prachi Singh on February 21, 2016 at 2:30pm — 40 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on February 17, 2016 at 12:27pm — 4 Comments
माही मुझे चुरा ले मुझसे, मेरी प्याली खाली कर दे।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।
मैं बदरी तू फैला अम्बर
मैं नदिया तू मेरा सागर,
बूँद-बूँद कर प्यास बुझा दे
रीती अब तक मन की गागर,
लहर-लहर तुझमें मिल जाऊँ, अपनी लय भीतर-बाहर दे।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।
शब्द तू ही मैं केवल आखर
तू तरंग, मैं हूँ केवल स्वर,
रोम-रोम कर झंकृत ऐसे
तेरी ध्वनि से गूँजे अंतर,
माही दिल में मुझे बसा कर, कण-कण आज तरंगित…
Added by Dr.Prachi Singh on February 16, 2016 at 1:37pm — 3 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on February 15, 2016 at 1:22pm — 17 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on February 15, 2016 at 1:19pm — 3 Comments
212 212 212 212
संग सुख-दुख सहेंगे ये वादा रहा।
साथ हर वक्त देंगे ये वादा रहा।
चाँदनी रात में ओढ़ कर चाँदनी
तुम जो चाहो, जगेंगे ये वादा रहा।
हाथ सर पर दुआओं का बस चाहिए
हम भी ऊँचा उढ़ेंगे ये वादा रहा।
राह काँटो भरी ये पता है हमें
हौसलों पर बढ़ेंगे ये वादा रहा।
दीप बाती से हम, जब भी मिल कर जले
हर अँधेरा हरेंगे ये वादा रहा।
देह के पार जो चेतना द्वार है
हम वहाँ पर मिलेंगे…
Added by Dr.Prachi Singh on February 14, 2016 at 11:30am — 5 Comments
2122 2122 2122 212
हाय दिल में बस गयी एक गीत गाती सी नज़र ।
कुछ बताती सी नज़र और कुछ छुपाती सी नज़र ।
उसकी आहट से सिहर उठते हैं मेरे जिस्मो-जाँ
बाँचती है मुझको उसकी सनसनाती सी नज़र ।
ज़िन्दगी के फलसफे को पंक्ति दर पंक्ति पढ़ा
क्या गहनता नाप पाती सरसराती सी नज़र ?
आज फिर खामोश सहमा सा कहीं आँगन कोई
सूँघ ली क्या बच्चियों ने बजबजाती सी नज़र ?
कतरा कतरा हो रही है रूह जैसे अजनबी
मुझको मुझसे छीनती है हक़ जताती सी नज़र।…
Added by Dr.Prachi Singh on February 10, 2016 at 4:00pm — 9 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on February 8, 2016 at 12:30pm — 7 Comments
2122 2122 2122 2122
बत्तियाँ सारी बुझा कर द्वार पर साँकल चढ़ा कर
मस्त वो अपनी ही धुन में मुझको मुझसे ही चुरा कर
साँस हर मदहोश करती हाथ में खुशबू बची बस
फूल सब मुरझा चुके हैं राह में काँटे बिछा कर
क्या उसे एहसास भी है उस सुलगती सी तपिश का
जिस सुलगती राख में वो चल दिया मुझको दबा कर
सींच कर अपने लहू से ख्वाब की मिट्टी पे मिलजुल
जो लिखी थी दास्तां वो क्यों गया उसको मिटा कर
मेरी पलकों पर सजाए उसने ही सपने सुनहरे
जब कहा…
Added by Dr.Prachi Singh on February 6, 2016 at 8:00pm — 13 Comments
सुधि-बुधि बिसराई
व्याकुल पनीली आँखें,
अधखुले केश, बेसुध आँचल
अस्त-व्यस्त आभूषण...
कराहती सिसकती चीत्कारती
पल-पल जमती जाती करुण वाणी से
कहाँ-कहाँ नहीं पुकारा-
पर,
लौट-लौट आती थी
हर पुकार की कर्णपटों को बेधती
हृदय विदारक प्रतिध्वनि...
लिख चुकी थी नियति
यशोधरा के भाग्य में
अंतहीन निष्ठुर विरह...
कितनी प्रबल रही होगी
सत्यान्वेषण को आतुर
अंतरात्मा की वो पुकार,
कि नहीं थम…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 2, 2016 at 11:30pm — 4 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |