===========ग़ज़ल===========
दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए
लुत्फ़ लेता है ज़माना ये छुपाया करिए
सच है हर बात तो फिर सामने आया करिए
आइने से यूँ निगाहें न चुराया करिए
हर कोई अपना नज़र तुमको भी आएगा
चंद लम्हों को सही “मैं” तो भुलाया करिए
चश्म में इश्क अगर देखना हो सच्चा तो
कोई मजलूम कलेजे से लगाया करिए
हो बड़े गर तो गरीबों को सहारा देकर
इस अमीरी को कभी आप भुनाया…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on March 31, 2013 at 3:30pm — 13 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 21, 2013 at 12:43pm — 6 Comments
"फूल हो क्या तुम" ????
तुमसे खूबसूरत कौन होगा
क्या नाज़ुकी है
क्या तराश है
इस दुनिया मैं कोई नही
दूजा तुमसा
भँवरे तुम्हे यूँ भरमाते हैं
और तुम
इठलाने लगती हो
फूल हो क्या तुम ??
पता है
एक कोना होता है
जिस्म में
छोटा सा
जो हम सब को
सच ही बताता है
सच ही दिखाता है
रूको रूको
यूँ मत मुस्कुराओ
तुम जो सोच रही हो न !
दिल नहीं है
वो है दिमाग
जो काम नहीं करता
हाई टेक झूठ…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 16, 2013 at 12:29pm — 4 Comments
इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है
ये ज़माना अजल से है खराब क्या कहिये
खार दामन में रक्खे है गुलाब क्या कहिये
चंद खुशियाँ मिली थी इश्क में हमें लेकिन
दर्द दिल को मिला है बेहिसाब क्या कहिये
आब की जद में जब रहा वजूद कायम था
आ के बाहर खुदी मिटे हुबाब क्या कहिये
गर्दिशों से निकल के रौशनी में आते ही
टूट जाते हैं मेरे सारे ख्वाब क्या कहिये
बाद पीने के किसको होश क्या कहे न कहे
बोल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on March 15, 2013 at 10:34pm — 5 Comments
गणात्मक “मनहरण घनाक्षरी “
(रगण जगण)x2 +रगण+लघु, (रगण जगण)x2 +रगण
(चार चरण प्रति चरण ३१ वर्ण १६,१५ पर यति)
आन बान शान ध्यान, में रखे उठो जवान
मान देश का घटे न, स्वाभिमान लाइए
कर्मशील धीर वीर, सत्य मार्ग में रुके न
काम क्रोध मोह त्याग, धर्म को बढाइये
भूल लोक-लाज धर्म, जो हुआ युवा अचेत
रीत प्रीत शंख फूंक, नींद से जगाइए
लाज नार की लुटे न, देवियाँ यही महान
नारियाँ पुनीत पूज्य, देश में बचाइए
संदीप पटेल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on March 14, 2013 at 10:46pm — 1 Comment
झूठ की गलियों में सच तक का सफ़र मेरा भी है
है ज़रा मुश्किल मगर रब राहबर मेरा भी है
बेबफा तुझसे बिछड़कर हाले दिल अब क्या कहें
जो उधर है हाल तेरा वो इधर मेरा भी है
मुंतज़िर होना नहीं खलता है हमको अब सनम
वक़्त का पाबंद तुझ सा मुंतजर मेरा भी है
दूध पीने की खबर पर यूँ पुजारी कह पड़े
संग में रब है मगर कुछ तो हुनर मेरा भी है
टूट कर बिखरा हुआ इक आइना इतरा रहा
शहरे बुत में हो रही हलचल असर मेरा भी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 14, 2013 at 1:13pm — 7 Comments
====== ग़ज़ल========
वो दौर और था जिसमे था आबरू पानी
नहीं उबाल रहा अब के है लहू पानी
नदी में फेंक दिए हमने आज कुछ कंकर
दिखा रहा था मेरा अक्स हू-ब-हू पानी
नया है दौर हुई रस्में यहाँ भाप मगर
उड़ा न…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 13, 2013 at 3:00pm — 8 Comments
फागुन के रंग छंदों के संग
सवैया
गोल कपोल गुलाल लगे तन सोह रही अति सुंदर चोली
केश घने घन से लगते करते अति चंचल नैन ठिठोली
रूप अनूप धरे हँसती कह कोयल सी मन मोहक बोली
रंग फुहार करे मदमस्त लगे तन मादक खेलत होली
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 12, 2013 at 3:30pm — 2 Comments
लिखना चाहता हूँ
वो गाँव की अमराई
बहार आते ही जो बौराई
सरसों की अंगड़ाई
बाली बाली गदराई
पर कैसे ??
कहाँ से ले आऊँ
वो रंग भरी स्याही
स्याही…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 7, 2013 at 3:06pm — 17 Comments
=========ग़ज़ल =========
झूठ कहता बाप से माँ से हुआ अनजान है
भूल क्यूँ जाता है बेटा वो उन्ही की जान है
है दगा रग रग में जिसकी झूठ जिसकी शान है
दूर से पहचान लें वो इक सियासतदान है
मौन हर मौसम में वो रहता है गम हो या ख़ुशी
इस हुनर को देख शायर हो गया हैरान है
खूब भर लो धन घरों में याद रखना तुम मगर
आखिरी मंजिल सभी की है तो कब्रिस्तान है
हर तरफ ही लूट हत्या रेप ऐसे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 5, 2013 at 10:42pm — 14 Comments
===========ग़ज़ल===========
खामोश लब पलकें झुकीं हालात देखिये
इस मौन में सिमटे हुए जज्बात देखिये
हमको मिली जो इश्क की सौगात देखिए
हर सुब्ह रोशन चाँदनी है रात देखिये
इंसानियत से बढ़ के क्या मजहब हुआ कोई
फिर भी वो हमसे पूछते हैं जात देखिये
पंजा कमल हाथी हथोडा सारे हो जमा
समझा रहे हैं आपकी औकात देखिये
पल पल मे बदले रंग वो माहौल देख के
गिरगिट के जैसे हो गयी हर बात देखिए
सब “दीप” मांगे बिन मिला हमको जुगाड़…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 2, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
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