1.प्यासा तालाब
पीपल उदास-सा
गाँव है चुप ।
2.हुक्का , खटिया
चौपाल है गायब
बीमार गाँव ।
3.दहेज प्रथा
परिवर्तित रूप
कैश का खेल ।
4.धरती छोड़
चाँद पर छलांग
पुकारे भूख ।
5.मिलन नहीं
प्यास है बरकरार
है इंतज़ार ।
6.ऐश्वर्य प्रेमी
संत उपदेशक
माया का खेल ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Mohammed Arif on March 18, 2017 at 7:30pm — 4 Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया ,बोले मीठी बोली ।
गाँवों , बाग़ो़ं गलियों छाई , टेसू की रंगोली ।।
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छन्न पकैया छन्न पकैया , देखो, खिलता पलाश ।
पागल मतवाले भँवरों को , कलियों की है तलाश ।।
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छन्न पकैया छन्न पकैया , टेसू मन को भाया ।
मतवाला, दीवाना, पागल, भँवरा भी इठलाया ।।
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छन्न पकैया छन्न पकैया , उड़ता अबीर-गुलाल ।
यारों, संगी-साथी मिलकर ,करते मस्ती धमाल ।।
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छन्न पकैया छन्न पकैया , पलाश के हैं झूमर ।
मौसम, यौवन, कलियाँ…
Added by Mohammed Arif on March 14, 2017 at 7:00pm — 7 Comments
पानी वाला बादल हो ,
नदियों में फिर हलचल हो ।
गाँवों की पनघट पे अब ,
फिर से बजती पायल हो ।
झूठे वादों से ऊपर ,
कोई तो ऐसा दल हो ।
जिसमें राहत हो सबको ,
आने वाला वो कल हो ।
सारे दुख सह जाऊँ मैं ,
सर पे माँ का आँचल हो ।
साफ़ हवा पानी पायें ,
पेड़ों वाला जंगल हो ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Mohammed Arif on March 12, 2017 at 1:30pm — 3 Comments
थोड़ा आगे आने दो ,
मौक़ा उनको पाने दो ।
देखो, भटके फिरते हैं ,
उनको भी समझाने दो ।
कब तक सहना पाबंदी ,
दौर नया दिखलाने दो ।
सबको राहत मिल जाये ,
मौसम ऐसा आने दो ।
फिक्र करो मत दुनिया की ,
छोड़ो यारो जाने दो ।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Mohammed Arif on March 7, 2017 at 11:30am — 22 Comments
1.
आया फागुन
भँवरों की गुंँजार
छाई बहार ।
.
2.
मन मयूर
पलाश हुआ मस्त
भँवरें व्यस्त ।
.
3.
रंगों की छटा
मस्ती भरी उमंग
थिरके अंग ।
4.
आम बौराए
उड़ा गुलाबी रंग
है हुड़दंग ।
5.
दिशा बेहाल
फूलों उड़ी सुगंध
बने संबंध ।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Mohammed Arif on March 1, 2017 at 7:00pm — 12 Comments
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