न जानें कितने जीवन से परिक्रमा
ही तो करती आई हूँ ,
क्या पाया ?क्या खोया ?
पता नहीं भूली हूँ माया के जाल में ।
बस एक मेरा "मैं "
तैयार रहता मुझ पर हर दम,
कहता, मैं ही हूँ सबसे अच्छा ।
पर ये क्या सच है ?
नहीं ये हमारे "मैं "
का ही भ्रम है ।
घूमी हूँ यहाँ से वहाँ ,
लगाईं हैं कई जन्मों की
परिक्रमाएँ,
चुनी हैं मायेँ कई,
हर पल माना खुद को सही।
क्या ये सच है?…
Added by kalpna mishra bajpai on March 27, 2014 at 6:45pm — 5 Comments
संध्या बेला मधुरिम पल है
लाल कपोल लिए तन सूरज
ढलता पल-पल छिन-छिन हर पल
सहलाती पद उसके संध्या
करती सेवा उसकी रज-रज।
मृग़ छौने थक जाते चलकर
दिवा चली सुस्ताने पल भर
स्वप्निल सपने देती संध्या
सब को मंजिल तक पहुंचाकर।
बीता वासर बिछी चाँदनी
वृक्ष खड़े अलसाए लत-पत
खग और विहग पुकारे हरि को
वन्य माधुरी फैली इत-उत।
सोचो संध्या गर ना होती
तो क्या सो पाते हम जी भर?
कर पाते,…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 18, 2014 at 9:00pm — 6 Comments
१११ १११२ ११ १११, १११२ ११११ ११
9-) मान बड़ाई सब चहे, कितनी इसकी हद।
दूजे को देते नहीं, पोषत खुद का मद॥
10-) मात-पिता व गुरु से, हर दम बोलत झूठ।
आपा भीतर झांक लो, हरि जाएगा रूठ॥
11-) ज्ञान क्षुदा उर में लिए, ढूंढत फिरत सुसंग।
उर की आंखे खोल लो, जग में भरो कुसंग॥
12-) धन दौलत कुछ न बचे, तब तक मन में चैन।
चरित्रिक बल सबल है, ना हो तुम बेचैन॥
13-) जनम-मरण के…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 14, 2014 at 2:30pm — 3 Comments
(मौन) शब्द से सभी परिचित है .... कौन नहीं जनता इस शब्द की विशालता को.....
आज 22 अप्रेल है पूरा एक साल हो गया दोनों को गए हुए, सुधा मन ही मन बुदबुदा रही थी।जरा चाय लाना बालकनी से पति ने आवाज लगाई। चाय तो बनी और पी भी रहे थे दोनों लेकिन सुधा क्षुब्ध, अकेली, बेचैन सी लग रही थी।आज का उजला-उजला नरम सबेरा भी अपना जादू न चला पा रहा था, महेश ने सुधा को हिलाते हुए कहा कहाँ हो? यहीं मीठी ...... क्या हो गया है तुमको ?
सुधा नम आँखों से महेश की ओर देख कर बोली गर ना पढ़ाते…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 12, 2014 at 11:00pm — 9 Comments
प्रथम प्रयास ............
1-) देह लता प्रभु दीन्ह है, काहे करत गुमान,
पर सेवा उपकार कर ,तब हीं पावे मान ।
2- ) सुत, दारा अरु बन्धु सब, स्वारथ को संसार,
भज लो साईं राम को, खुद का जनम संभार ।
3- ) मन मैला तन साफ है, क्यों फैलाये जाल ,
हरी को भावत साफ मन, लिखलो अपने भाल ।
4-) मंदिर, पूजा ,यज्ञ,तप, ऊपर का व्यापार ,
मन मंदिर नित झाढ़ लो, पाओगे प्रभु द्वार ।
5-) चौरासी…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 11, 2014 at 4:30pm — 12 Comments
हे हंस वाहिनी प्रमुदित स्वर दो
माँ कल्याणी करुणा कर दो
हे हंस .........
ध्यान करूँ माँ तेरा निस -दिन
मंद बुद्धि को नूतन अक्षर दो
अहंकार का नास करो माँ
वीणा पाणि जाग्रत कर दो
हे हंस ..........
जीवन में छाया अँधियारा
ज्योतिर्मय उर आँगन कर दो
हो जाए मन में उजियारा
वरद हस्त सिर पर माँ रख दो
हे हंस ...........
पल -पल चिंतन रहे चिरंतर
इतनी उर में शक्ति भर दो
स्वप्नों में…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 6, 2014 at 9:30pm — 5 Comments
मैं नारी हूँ .. "कुसुम अवदात नहीं हूँ"
सौंदर्य बोध से गढ़ी हूँ
मानवता के लिए कड़ी हूँ
सबके के लिए अहिर्निश खड़ी हूँ
भावनाओं से नित जड़ी हूँ
कभी किसी से नहीं हूँ कम,
इस बात पर अड़ी हूँ
मैं नारी हूँ..... बिन स्वर का गान नहीं हूँ ।
दिल में उत्साह भरा है अपरिमित
हर वक्त सेवा में हूँ समर्पित
शक्तियों से हूँ मैं निर्मित
जो चाहूँ वो करती हूँ अर्जित
इससे हूँ में सदा ही गर्वित
मैं नारी…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 4, 2014 at 4:00pm — 21 Comments
फागुन का मास
तारों की बारात
चाँदनी के रथ पर
आएगा मोहन
यमुना के तीर
होके अधीर, में तो उसकी हो जाऊँगी ।
श्यामल सा मनोहर गात
पीला सा सिर पर पाग
कानों में कुंडल
अधरों पे मोती
धरे तिरछा पैर
छोड़ सब की खैर, मै तो चरणन में गिर जाऊँगी ।
होंठों की शान
प्यारे की मुस्कान
मीठी सी चितवन
सखियों का लूटे मन
कर के सब जतन, मै तो उनकी हो जाऊँगी ।
माँ यशोदा का…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 2, 2014 at 2:30pm — 8 Comments
हाय! अकेलापन क्यों?
बोझिल सा लगता है
अकेलापन तो स्वर्णिम क्षण है
अपने आप को जानने का पल है
क्यों मानव इससे घबराए?
यह तो सबका बल है।
अकेलापन शक्ति देता है…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 1, 2014 at 6:00pm — 12 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |