Added by dilbag virk on April 2, 2012 at 9:00pm — 5 Comments
मेरे बचपन के एक मित्र के बड़े भैया पढ़ने में बड़े तेज़ थे, और पूरे मोहल्ले में अपनी आज्ञाकारिता और गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे. भैया हम लोगो से करीब 5 साल बड़े थे तो हमारे लिए उनका व्यक्तित्व एक मिसाल था, और जब भी हमारी बदमाशियो के कारण खिचाई होती थी तो उनका उदहारण सामने जरूर लाया जाता था. सभी माएं अपने बच्चो से कहती थी की कितना 'सीधा लड़का' है. माँ बाप की हर बात मानता है. कभी उसे भी पिक्चर जाते हुए देखा है?
मेधावी तो थे ही, एक बार में ही रूरकी विश्वविद्यालय में इन्जिनेअरिंग में…
ContinueAdded by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 2, 2012 at 12:30pm — 18 Comments
मैंने देखा है -
हलांकि जार-जार टूटे हुए ,
हवादार
फिर भी उमस में डूबे हुए झोपडो में
जो चेहरे रहते है ,
इस जानलेवा भागम भाग में भी
वो चेहरे ठहरे रहते हैं !
ये ठहरा हुआ वक्त का मरहम
और फिर भी उनके जख्म
गहरे के गहरे रहतें हैं !
टूटी हुई छत से टपकती उदास धूप
नहीं सुखा पाती
सिसकती हुई छाँव की सीलन !
जिनके छिल चुके होंठ
नहीं उठा पाते
गूंगी हँसी का बोझ तक
लेकिन वो उठाए…
ContinueAdded by Arun Sri on April 2, 2012 at 10:37am — 10 Comments
माँ की बात सुनते ही पिताजी के दोनों बड़े भाईयों का चेहरा ऐसा हो गया था मानो दोनों गाल पर किसी ने एक साथ तमाचा मारा हो | एक क्षण के लिए तो ऐसा लगा था कि वे उत्तेजित होकर न जाने क्या कर बैठें या फिर नवांगतुक को साथ लेकर घर छोड़कर ही न चले जाएँ | पर , ऐसा कुछ नहीं हुआ | नवांगतुक जो पिताजी के सबसे बड़े भाई याने मेरे दादाजी के साले थे , असहज हो गए थे और सहज होने के प्रयास में फर्श पर रखे अपने पांवों को जोर जोर से हिला रहे थे | काफी देर तक निस्तब्धता छाई रही | हमेशा हाथ…
ContinueAdded by अरुण कान्त शुक्ला on April 1, 2012 at 11:31pm — 3 Comments
मुख्य अतिथि श्रीमती लक्ष्मी अवस्थी दीप-प्रज्ज्वलन करते हुए. साथ में (बायें से) डा. जमीर अहसन, एहतराम इस्लाम, इम्तियाज़ गाज़ी तथा सौरभ पाण्डेय …
ContinueAdded by वीनस केसरी on April 1, 2012 at 9:00pm — 9 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2012 at 4:00pm — 20 Comments
कुछ पल मेरी छावं में बैठो तो सुनाऊं
हाँ मैं ही वो अभागा पीपल का दरख्त हूँ
जिसकी संवेदनाएं मर चुकी हैं
दर्द का इतना गरल पी चुका हूँ
कि जड़ हो चुका हूँ !
अब किसी की व्यथा से
विह्वल नहीं होता
मेरी आँखों में अश्कों का
समुंदर सूख चुका है |
बहुत अश्रु बहाए उस वक़्त
जब कोई वीर सावरकर
मुझसे लिपट कर…
Added by rajesh kumari on April 1, 2012 at 8:00am — 11 Comments
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