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मुहब्बत की ख़ातिर ज़िगर कीजिये ।
अभी से न यूँ चश्मे तर कीजिये ।।
गुजारा तभी है चमन में हुजूऱ ।
हर इक ज़ुल्म को अपने सर कीजिये ।।
करेगी हक़ीक़त बयां जिंदगी ।
मेरे साथ कुछ दिन सफ़र कीजिये ।।
पहुँच जाऊं मैं रूह तक आपकी ।
ज़रा थोड़ी आसां डगर कीजिये ।।
वो पढ़ते हैं जब खत के हर हर्फ़ को ।
तो मज़मून क्यूँ मुख़्तसर कीजिए ।।
लगे मुन्तज़िर गर…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 12, 2019 at 10:34pm — 2 Comments
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ख़ैरमक़दम हमारा हुआ तो हुआ ।
वार फिर. कातिलाना हुआ तो हुआ ।।
फर्क पड़ता कहाँ अब सियासत पे है ।
रिश्वतों पर खुलासा हुआ तो हुआ ।।
ये ज़रुरी था सच की फ़ज़ा के लिए ।
झूठ पर जुल्म ढाना हुआ तो हुआ ।।
आप आये यहाँ तीरगी खो गयी ।
मेरे घर में उजाला हुआ तो हुआ ।।
हिज्र के दौर में हम सँभलते रहे ।
आपके बिन गुजारा हुआ तो हुआ ।।
मुझको मालूम था…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 4, 2019 at 12:46pm — 8 Comments
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वो मक़तल में कैसी फ़ज़ा माँगते हैं ।।
जो क़ातिल से उसकी अदा माँगते हैं ।।
जुनूने शलभ की हिमाकत तो देखो ।
चरागों से अपनी क़ज़ा माँगते हैं।।
उन्हें भी मिला रब सुना कुफ्र में है ।
जो अक्सर खुदा से जफ़ा माँगते हैं ।।
असर हो रहा क्या जमाने का उन पर ।
वो क्यूँ बारहा आईना माँगते हैं ।।
अजब कसमकश है मैं किससे कहूँ अब ।
यहां बेवफ़ा ही वफ़ा माँगते हैं…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 2, 2019 at 6:42pm — 8 Comments
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