साहित्य साधना इष्ट आराधना
पवित्रतम ह्रदय निस्सृत पूजा है,
निर्मल निर्झर भाव सरिता ये
उद्गम अन्तः मन जिसका है,…
Added by Dr.Prachi Singh on May 30, 2012 at 7:30pm — 34 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 28, 2012 at 12:31pm — 14 Comments
चक्षु पटल भींच
एक अक्स उभरता है...
जो गहन तिमिर में
कोटिशः सूर्य सा चमकता है...
स्मरण जिसका महका देता है
सम्पूर्ण जीवन...
ख़ामोशी में गूंजती है
जिसकी प्रतिध्वनि अन्तः करणों में
और उन अनकहे शब्दों की
झंकृत स्वर तरंगें
नस नस में दौढ़ती हैं
सिहरन बन कर...
और बेसुध मन बावरा
तय कर लेता है
मीलों के फांसले
एक क्षण…
Added by Dr.Prachi Singh on May 26, 2012 at 11:00am — 10 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 17, 2012 at 12:30pm — 23 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 16, 2012 at 12:00am — 24 Comments
मैं नन्ही सी चिड़िया...भरती हूँ आज खुले आसमान में लम्बी से लम्बी उड़ान l याद है मुझे आज भी सर्द ठिठूरी कुहासे भरी वो गीली गीली सी सुबह, जब अपनी ही धुन में मस्त, मिट्टी की सौंधी सी खुशबू में गुम मैं फुदक रही थी एक पगडंडी पर l नम घास की गुदगुदाती छुअन मदमस्त कर रही थी मुझे और मैं अपनी ही अठखेलियों से आह्लादित चहक रही थी…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on May 7, 2012 at 1:07pm — 16 Comments
एक नयी दुनिया
एक नयी दुनिया देखी है … अन्तः मन की आँखों से
जिसमे कोई रंग नहीं हैं , पर सारे रंगों से सुन्दर…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on May 5, 2012 at 9:42pm — 6 Comments
खूबसूरत सपनों नें
कितनी रातों को मुझे जगाया,
कंटीले रास्तों पर
बेतहाशा दौड़ाया,
बार-बार गिराया..
फिर भागने के लिए
सम्हल सम्हल उठना सिखाया,
और मैं भागती गयी...
घायल पैरों के
फूटे छालों से
रिसते लहू की
परवाह किये बिना
बस भागती गयी...
पर
हमेशा
सिर्फ दो कदम के फासले पर
मुस्कुराते रहे सपने ..
मुझे भगाते रहे सपने..
हाथ आते ही
फिर रूप बदल
सिर्फ दो कदम से
मुझे ललचाते रहे सपने..
एक न बुझने…
Added by Dr.Prachi Singh on May 4, 2012 at 4:00pm — 16 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 3, 2012 at 5:37pm — 10 Comments
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