सुन री सखी
दो शब्द भी प्रेम के
नही लिखती
चीखें,दर्द कराहें
लिखती हूँ प्रेम से |
उनकी बात
कम नही सजा से
तुम्हारे साथ
बिताये हुए पल
सखी कैसे कहूँ मै |
जीवन मेला
लिए रिश्तों का रेला
जाना था दूर
रह गया अकेला
नयनो में अन्धेरा |…
Added by Meena Pathak on May 27, 2014 at 11:00pm — 15 Comments
प्यासी धरती आस लगाये देख रही अम्बर को |
दहक रही हूँ सूर्य ताप से शीतल कर दो मुझको ||
पात-पात सब सूख गये हैं, सूख गया है सब जलकल
मेरी गोदी जो खेल रहे थे नदियाँ जलाशय, पेड़ पल्लव
पशु पक्षी सब भूखे प्यासे हो गये हैं जर्जर
भटक रहे दर-दर वो, दूँ मै दोष बताओ किसको
प्यासी धरती आस लगाए देख रही अम्बर को |
इक की गलती भुगत रहे हैं, बाकी सब बे-कल बे-हाल
इक-इक कर सब वृक्ष काट कर बना लिया महल अपना
छेद-छेद कर मेरा सीना बहा रहे हैं निर्मल जल…
Added by Meena Pathak on May 18, 2014 at 10:10pm — 20 Comments
रात गहराती जा रही थी उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी कमरे में अंघेरा इतना कि हाथ को हाथ सुझाई नही दे रहे थे |उसकी जिंदगी में अन्धेरा तो उसी दिन हो गया था जिस दिन उसने भूषन का हाथ थमा था पर फिर भी वो रौशनी की तलाश में अंधेरों से लड़ती रही | कभी उसका माथा फूट जाता, कभी आँखों के नीचे काला हो जाता तो कभी ठोकर खा कर गिरने से घुटना छिल जाता, अंधेरे में चलने से घाव तो लगने ही थे पर वो आगे बढ़ती रही |
अब वर्षों बाद इतनी दूर आ कर उसे थोड़ी सी रौशनी नसीब हुई तो अचानक ही उसे फिर से ठोकर लगी और वो…
Added by Meena Pathak on May 13, 2014 at 4:00pm — 12 Comments
आज सामाजिकता और नैतिकता का किस कदर पतन हो गया है कि देख कर दुःख होता है | आज कल आप कान लगा कर सुनिए कुछ कराहें सुनाई देंगी जो बेटों की माओं की हैं | मुंह में कपड़ा ठूंस कर कराह रहीं हैं, छुप कर आँसू बहा रहीं हैं क्यों की उन्हें डर है कि किसी ने उन्हें रोते या कराहते देख लिया तो उसका गलत अर्थ निकालेंगे और वो उपहास के पात्र बन जायेंगे | आज बेटे बाले डरे सहमे से हैं और ये वो मध्यमवर्गीय माता पिता हैं जिन्होंने अपने बेटों को बड़े संघर्ष से पढाया लिखाया है | एक नही कई ऐसे परिवार मै देख रही हूँ जहाँ…
ContinueAdded by Meena Pathak on May 11, 2014 at 2:00pm — 18 Comments
उठो हे स्त्री !
पोंछ लो अपने अश्रु
कमजोर नही तुम
जननी हो श्रृष्टि की
प्रकृति और दुर्गा भी,
काली बन हुंकार भरो
नाश करो!
उन महिसासुरों का
गर्भ में मिटाते हैं
जो आस्तित्व तुम्हारा,
संहार करो उनका जो
करते हैं दामन तुम्हारा
तार-तार,
करो प्रहार उन पर
झोंक देते हैं जो
तुम्हें जिन्दा ही
दहेज की ज्वाला में,
उठो जागो !
जो अब भी ना जागी
तो मिटा दी जाओगी और
सदैव के लिए इतिहास
बन कर रह जाओगी…
Added by Meena Pathak on May 1, 2014 at 2:10pm — 19 Comments
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