अपने जीवन काल में , देखी पहली ईद |
मोबाइल में कर रहा , मैं अपनों की दीद ||
बिन आमद के घट गयी , ईदी की तादाद |
फीका बच्चों को लगे , सेवइयों का स्वाद ||
कहे मौलवी ईद है , कैसी बिना नमाज़ |
रब रूठा तो क्या करें, कौन सुने आवाज़ ||
ख़ूब मचलती आस्तीं , हमकिनार हों यार |
लेकिन सब दूरी रखें , कोविड करे गुहार ||
ग्राहक का टोटा हुआ ,सूने हैं बाज़ार |
घर में सारे बंद हैं , ठंडा है व्यापार ||
चन्द जगह पर विश्व में , जबरन हुई नमाज़ |
जिए…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 25, 2020 at 2:30pm — 10 Comments
(2122 1122 1122 22 /112 )
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आपने मुझ पे न हरचंद नज़रसानी की
फिर भी हसरत है मुझे इश्क़ में ज़िन्दानी की
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दिल्लगी आपकी नज़रों में हँसी खेल मगर
मेरी नज़रों में है ये बात परेशानी की
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मौत जब आएगी जन्नत के सफ़र की ख़ातिर
कुछ ज़रूरत न पड़ेगी सर-ओ-सामानी की
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या ख़ुदा ऐसा कोई काम न हो मुझ से कभी
जो बने मेरे लिए वज्ह पशेमानी की
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जिस तरह चाल वबा ने है चली दुनिया में
हर बशर के लिए है बात ये हैरानी…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 24, 2020 at 3:00pm — 4 Comments
एक बे-रदीफ़ ग़ज़ल
( 221 1221 1221 122 )
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उनको न मेरी फ़िक्र न रुसवाई का है डर
पत्थर का जिगर रखते हैं सब यार सितमगर
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बर्बाद हुआ देख के भी दिल न भरा था
साहिल को रहा देखता गुस्से में समंदर
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सब लोग हों यक जा नहीं मुमकिन है जहाँ में
हाथों की लकीरें भी न होतीं हैं बराबर
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आईने जहाँ भी हों वहाँ जाता नहीं मैं
वो नुक़्स मेरे जग को बता देते हैं अक्सर
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इन्सान को हालात बना…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 23, 2020 at 11:00am — 6 Comments
( 1212 1122 1212 22 /112 )
किसी का दिल से जो ख़ुश-आमदीद होता है
तो आँखों आँखों में गुफ़्त-ओ-शुनीद होता है
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किसी के रू ब रू मुमकिन कहाँ है इश्क़ कभी
गवाह प्यार का कब चश्म-दीद होता है
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नसीब में कहाँ मिलते हैं जश्न के मौक़े
कभी कभी कोई मौक़ा सईद होता है
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जो पैरहन से ही दिखता जदीद है अक्सर
वो सिर्फ़ कहने की ख़ातिर जदीद होता है
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चले जो शख़्स हमेशा रह-ए-सदाक़त पर
वही बशर तो जहाँ में मजीद होता है
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उसी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 22, 2020 at 7:00pm — 4 Comments
( 2122 1122 1122 22 /112 )
सिर्फ़ सन्नाटा है ता-हद्द-ए-नज़र अब मेरी
ख़्वाब की दुनिया गई यार बिखर अब मेरी
झूठ निकला मेरा दावा कि तेरे बिन न रहूँ
हिज्र के साथ है क्या ख़ूब गुज़र अब मेरी
नाख़ुदा है ही नहीं जब तो मुझे क्या मालूम
मौज ले जाएगी कब नाव किधर अब मेरी
कैसा माज़ी था मुहब्बत ही मुहब्बत से भरा
देखने की नहीं हिम्मत है उधर अब मेरी
फ़र्क सेहत पे न कुछ उसके है पड़ने वाला
जाती है जाये भले जान अगर अब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 18, 2020 at 9:30pm — 9 Comments
( 121 22 121 22 121 22 121 22 )
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हमें न चाहत ही चाँद की है न तारों से है लगाव अपना
हमें फ़लक की भी क्या ज़रूरत ज़मीन से है जुड़ाव अपना
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जहाँ में अपनी किसी से यारो न दुश्मनी और न दोस्ती है
न कोई दिल में किसी से नफ़रत न है किसी से दुराव अपना |
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फ़रोख्त होगी कभी हमारी ख़याल कोई न लाये दिल में
अमोल हैं हम कोई जहाँ में करेगा क्या मोलभाव अपना
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कभी किसी से जुदा हुए तब मिला था ज़ख़्मों का एक…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 16, 2020 at 3:00pm — 10 Comments
( 221 1221 1221 122 )
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मानन्द-ए-ज़माना अभी शातिर नहीं हैं हम
लोगों की तरह झूठ के नासिर नहीं हैं हम
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नफ़रत के अलमदार ये अच्छे से समझ लें
ये मुल्क हमारा है मुहाज़िर नहीं हैं हम
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हम सिर्फ़ मुहब्बत को समझते हैं इबादत
बस यार ख़ुदा अपना है काफ़िर नहीं हैं हम
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जो दिल में रहे अपने वही रहता लबों पे
पोशीदगी-ए-राज़ में माहिर नहीं हैं हम
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दिखते हैं अगर रुख़ पे तबस्सुम के मनाज़िर
ग़ायब करें ग़म…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 13, 2020 at 3:30pm — No Comments
( 2122 1122 1122 22 /112 )
है कोई आरज़ू का क़त्ल जो करना चाहे
कौन ऐसा है जहाँ में कि जो मरना चाहे
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तोड़ देते हैं ज़माने में बशर को हालात
अपनी मर्ज़ी से भला कौन बिखरना चाहे
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आरज़ू सबकी रहे ज़ीस्त में बस फूल मिलें
ख़ार की रह से भला कौन गुज़रना चाहे
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ज़िंदगी का हो सफ़र या हो किसी मंज़िल का
बीच रस्ते में भला कौन ठहरना चाहे
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देख क़ुदरत के नज़ारे है भला कौन बशर
जो कि ये रंग…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 11, 2020 at 5:30pm — 21 Comments
(221 1221 1221 122 )
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देना ख़ुशी अल्लाह सहूलत के मुताबिक
ग़म देना हमें सिर्फ़ ज़रूरत के मुताबिक
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ये ध्यान रहे कोई न दीवाना कभी हो
अल्लाह न दे इश्क़ भी चाहत के मुताबिक
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कर ले न गिरफ़्तार अना जीत से हमको
हर जीत का हो दाम हज़ीमत के मुताबिक
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दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 9, 2020 at 10:30am — 11 Comments
ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल
(2122 2122 212 )
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बेकली कुछ बेबसी दीवानगी
हो गई है आज कैसी ज़िंदगी
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साथ में रहते मगर हैं दूरियाँ
अब घरों में छा गई बेगानगी
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आरती में भी भटकता ध्यान है
रस्म बन कर रह गई हैं बंदगी
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आदमी है अब अकेला भीड़ में
ढूंढ़ते हैं रिश्ते ख़ुद बाबस्तगी
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यूँ तो बिजली से मुनव्वर है जहाँ
फ़िक्र की है बात दिल की तीरगी
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कट रहे हैं हम…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 7, 2020 at 3:30pm — 6 Comments
(221 2121 1221 212 )
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मयख़ाने आ गया हूँ ज़माने को छोड़कर
मत बैठ साक़ी आज यूँ रुख़ अपना मोड़कर
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आँखों से अब पिला कि दे जाम-ए-शराब तू
साक़ी सुबू में डाल दे ग़म को निचोड़कर
**
वक़्ते-क़ज़ा अगर यहीं रहने हैं ज़र-ज़मीँ
पी लूँ ज़रा सी क्या करूँ दौलत को जोड़ कर
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कोई कभी शिकस्त मुझे दे न पाएगा
बादा-कशी में यार तू मुझसे न होड़ कर
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पीकर ज़रा कहासुनी मामूली बात है
मय के लिए न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 4, 2020 at 3:30pm — 6 Comments
एक गीत
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संकट दूर कभी होता है
संकट संकट कहने से क्या ?
त्राण मिलेगा तभी आप यदि
समाधान ढूंढें संकट का |
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जीवन में खुशियाँ यदि हैं तो, संकट का भी तय है आना |
गिरगिट जैसे रंग बदलकर ,रूप दिखाता है यह नाना |
धीरज रखकर हिम्मत रखकर , इससे मानव लड़ सकता है
ख़ुद पर संयम रखने से ही , तय होगा संकट का जाना |
पूरा जोर लगा दें अपना , हम भारत के लोग अगर…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 3, 2020 at 1:00pm — 7 Comments
121 22 121 22 121 22 121 22
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बरस हुए हैं कई न तुमने की गुफ़्तगू है न हाल पूछा
कहाँ हो तुम ये पता नहीं क्यों न हमने कोई सवाल पूछा
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सँभाल कर सब रखे जो ख़त हैं उन्हीं को पढ़कर करें गुज़ारा
किताब के सूखे फूल ने भी है कैसा हुस्न-ओ-जमाल पूछा
**
बिना तुम्हारे फ़ज़ा में ख़ुश्बू न संदली अब रही है जानाँ
बहार ने तितलियों से इक दिन तुम्हारा भी हाल चाल पूछा
**
तुम्हारा जायज़ है रूठना पर तवील इतना कभी नहीं था
हमारे …
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 2, 2020 at 11:30am — No Comments
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