यकीन उठ जाने के बाद,
झूटे रिश्तों की अनचाही लाश
ढोते रहते है कंधे झुक जाने तक
Added by Iti Sharma on June 29, 2012 at 10:57am — No Comments
ओ सर्वव्यापी , ओ सर्वशक्तिमान
जब सब में है तू विद्यमान
तो इस दुनियाँ में ये
ऊँच-नीच का अंतर क्यों है ?
कोई कहे तुझे खुदा , कोई कहे तुझे भगवान्
करते जब सब तेरा ही गुणगान
तो इस मृत्युलोक में
तेरे नाम में ये अंतर क्यों है ?
ओ सर्वरक्षक , सर्वगुणों की खान
कैसा है तेरा विधान
जब सब तेरे बनाये हुए हैं
तो ये गोरे काले का अंतर क्यों है ?
तू है सबका प्यारा , तू है सबसे महान
कोई पढ़े गीता यहाँ , कोई पढ़े कुरआन…
Added by Yogi Saraswat on June 29, 2012 at 10:00am — 10 Comments
Added by Neelam Upadhyaya on June 29, 2012 at 10:00am — 1 Comment
मेरे सर पर ,'सुख की छाया ' का पता , प्रभु आप थे .
उस रूप को शत शत नमन जब आप मेरे बाप थे .
सारा जग था आप से आरम्भ , और था आप तक .
आप आप आप प्रभु जी हर तरफ बस आप थे .
आप के सीने से आती वो पसीने की महक .
आप के सीने पे सर था मेरे सीने आप थे .
आपकी आई नही थी , आई बेशक थी मेरी .
मैं गया था इस…
ContinueAdded by DEEP ZIRVI on June 29, 2012 at 8:30am — No Comments
चाहिए थोडा सा प्यार
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 29, 2012 at 5:41am — No Comments
अब हवा न हो हमारे दरम्यां;
एक मन हैं ;एक तन हों ,एक जां.
तेरी जुल्फों में जो टांगा फूल तो ;
देर तक महकी हैं मेरी उंगलीयां .
तुम मिले होते न हम को गर सनम
मैं समझता जिंदगी है राए-गां.
एक नगमा बन गई हैं जिंदगी ;
कह रही मुझ को तू आ के गुनगुना .
पारसाई तेरी रास आने लगी ;
कर रही है तेरा मुझको निगेह -बाँ.
इश्क ने सब को सिखाई बन्दगी ;
वरना मेरी काविश गई थी राए -गां .
दीप जीरवी
Added by DEEP ZIRVI on June 29, 2012 at 12:00am — No Comments
यूं तो
मिलते हैं
बिछड़ते हैं
कई लोग मुझसे ;
तेरी बात और है तुम ने
सिर्फ
मुझसे
हाँ मुझ से
मुहब्बत क़ी है
...मेरी झोली में डाले हैं
मुहब्बत के सच्चे मोती ...
...मेरी मुहब्बत क़ी देवी
तुम ने मुझ पे ये
ख़ास इनायत की है .
आती जाती हुई साँसों में
बसी तू तू तू ही ...
...तेरी नजरे करम ने
मेरी ये हालत क़ी है .
सौ जन्म लेकर भी
पा ना पाता हीरा तुम सा ...
... भर के अपनी मुहब्बत से
मेरी झोली
...इनायत क़ी है
. तू…
Added by DEEP ZIRVI on June 28, 2012 at 11:30pm — No Comments
{भाव निर्झर }
कितना भोला कितना सादा ;
देखिये पंजाब है .
कटता आया बंटता आया ,
देखिये पंजाब है.
भोलेपन की इंतिहा है ,
सोच के देखे कोई ;
लीडरों की घर की मुर्गी ,
देखिये पंजाब है.
अन्नदाता देस क़ा
खुद फांकता सल्फास है
डालरों की धौंस सहता ,
देखिये पंजाब है..
फिल्म टी वी में दिखे
जो हर चरित्र मसखरा
उनमें पागल दिखने वाला ;
देखिये पंजाब है.;
इन शहीदों की कभी लिखे
अगर कोई किताब
हर जगह पंजाबियों क़ा…
Added by DEEP ZIRVI on June 28, 2012 at 11:30pm — 1 Comment
थाम कर तुम्हारी उँगलियाँ
जब ये चलेगा
मोहब्बत की एक नयी इबारत
लिखी जाएगी,
पहली मुलाक़ात की
'निशानी'
अपना कलम मैं तुमको दे आया हूँ
जो भी लिखोगे इस से
वो तकदीर मेरी
बन जाएगी.......
Added by AjAy Kumar Bohat on June 28, 2012 at 4:38pm — 1 Comment
Added by AjAy Kumar Bohat on June 28, 2012 at 2:34pm — 1 Comment
न जाने क्यों अकड़ते है लोग
जब मालूम होता है सभी को
जाना है एक दिन इस जहां से
प्यार से जीने में क्या जाता है
अकड़ से क्या मिल जाता है
इतने अनजान भी नहीं लोग
बचपन में ही जान जाते है
प्यार से मिलता है प्यार
अकड़ से मिलती है डांट
तब भी न जाने कहां से
जुबान में आ जाती है खटास
इतिहास की बात करता नहीं
खुद देखा है मैंने
कल तक जिन्हें अकड़ते हुए
रूखसत हो गए जहां से
अब वो रहते प्यार से
करते रहते…
ContinueAdded by Harish Bhatt on June 28, 2012 at 1:53pm — 2 Comments
ना देख यूँ प्यार से ऐ मेरे हमदम, ये दिल जला है.
Added by Pradeep Kumar Kesarwani on June 28, 2012 at 1:30pm — No Comments
आरती और वैभव के बीच में कल रात से ही झगड़ा चल रहा था ,मुद्दा वही उपर की आमदनी का ,जिसे आरती अपने घर में कदापि भी खर्च करना नही चाहती थी | वैभव ने अपनी पत्नी आरती को पैसे की अहमियत के बारे में बहुत समझाया और बताया कि उसके दफ्तर में सब मिल बाँट कर खातें है लेकिन आरती के लिए रिश्वत तो पाप कि कमाई थी , वैभव के लाख समझाने पर भी जब आरती नही मानी तो गुस्से में उसने आरती से साफ़ साफ़ कह दिया था कि अगर आरती ने इस मुद्दे पर और बहस की तो वह उससे सदा के लिए सम्बन्ध विच्छेद कर…
ContinueAdded by Rekha Joshi on June 28, 2012 at 11:42am — 4 Comments
सूरज चढ़ गया है गर्मी के पहाड़ पे.....
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सूरज फिर चढ़ गया है गर्मी के पहाड़ पे और फेंक रहा है आग के गोले समूची कायनात में. सुबह के आठ बजे हैं, पर दिन इतना पीला हो गया है जैसे कि बस दोपहर होने को है. सड़कों पे लोग आ जा तो रहे हैं मगर दिख रहें हैं कुछ इस तरह जैसे स्लो मोशन में कोई सत्तर के दशक की फिल्म चल रही हो.
फेरी वाले की आवाज या ऑटोरिक्शा की घरघराहट किसी आर्तनाद जैसी लगती है…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 28, 2012 at 10:58am — No Comments
बुरा करते हैं और कहते हैं बुरा न मानना
बुतोंको सजदे करना है तो खुदा न मानना
प्यारकी इब्तिदा होती है इन्कारसे तोफिर
वफ़ा का अव्वल सबक है वफ़ा न मानना
तुम्हें क्या खबर कि हम जानतेहैं हालेदिल
ये उनकी आदत है हमें आशना न मानना
अहसाँ समझके ही दो टुक तो कुछ बोलिए
भला कुबूल है पे ये क्या, भला न मानना
मैं तो बस इत्तेफाक़से हमराह हो गया था
हमें अपना दोस्त याकि हमनवा न मानना
ज़रा संभल के…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 28, 2012 at 10:53am — No Comments
फ़ित्ने-नौ यूँ उठाने लगी ज़िंदगी |
आँख उनसे लड़ाने लगी ज़िंदगी ||
ताज़ा दम होने को आए थे बज़्म में,
सूलियों पे चढ़ाने लगी ज़िंदगी ||
होश खाने लगी मौत भी देखिये,
फिर ये क्या गुनगुनाने लगी ज़िंदगी ||
उनकी आवाज़ फिर आईना बन गई,…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 28, 2012 at 8:52am — 2 Comments
तेरेही रंगमें रंगी खुदाई दिखती है
दुनिया तमाम तमाशाई दिखती है
कोई राहगुज़र नयी नहीं लगतीहै
एक- एक राह आजमाई दिखती है
ये कैसा शोर है घरमें नयानया सा
छतपे एक चिड़िया आई दिखती है
दूरसे महसूस किया बिछडनेका पर
ज़िंदगानी करीबसे पराई दिखती है
दिल क्यूँ चुप है येतुम क्या जानो
गरीबकी बस्ती है सताई दिखती है
उंगलियां तेरी चार मिसरे रुबाई के
कोई गज़ल तिरी कलाई दिखती…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 4:41pm — 8 Comments
जबहो जुनून सवार मिस्लेअस्प सर में
तब की फर्क पैंदा आबेहयातओज़हर में
खुदाभी यही कहता है लौट आओ पास
कितना सुकून है बैठे बैठे अपने घर में
कितने तज़ब्जुब से भरा है सफरेज़ीस्त
कोई कल्ब ज्यूँ भटकताहो राहगुज़र में
दुनियामें कुछ नहींहै दीदनी दिखावा है
तमाम तिलिस्मात बस भरे हैं नज़र में
तमाम दुनियामें जो महसूस करे तन्हा
समूची कायनात समाई है उस बशर में
कम लोग जाने हैं तामीरेखल्कका…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 4:00pm — 3 Comments
ओबीओ के मित्र जनाब अलबेला खत्री साहेब ने एक शेर मुझसे फर्माया वो ये कि- ‘सबकुछ है इस जहान में तन्हाई नहीं है, अफ़सोस की है बात कि शनासाई नहीं है’
इस शेर से मुतास्सिर होके ये पूरी गज़ल लिखी गई है, पेश कर रहा हूँ, मुलाहिजा फरमाइए:
तू नहीं है जिन्दगी में तो लुत्फेतन्हाई भी नहीं है
ये यूँ हैकि आग लगाई नहीं तो बुझाई भी नहीं है
ठहरा ठहरा है दरख्तों पे शामका इक तवील साया
शब लिखनेवालेके कलममें जैसे रोशनाईभी नहीं है…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 2:55pm — 3 Comments
तुमको चाहा हमने तो मायूसी मिली
और न पाया तुझे तो जिन्दगी मिली
गले मिल के साथ साथ दोनों रोते थे
कल रात मेरे दुखोंसे जब खुशी मिली
आह तेरा दीद अश्कसे सूखी आँखोंको
समा न पाए जो इतनी रौशनी मिली
दामानेयार की सबा से मरनेवालों को
साअतेमर्ग दो पल की जिन्दगी मिली
कलशब कोई आधीरात कहके रोताथा
वफ़ा नीमशबहै मिली पे अधूरी मिली
नसीब देताहै पर क्या ये बात दीगरहै
दिल की लगी चाही पे…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:58pm — 1 Comment
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