1222 1222 1222 1222
तुम्हारी जान ले लेगी किसी भी रोज ये चुप्पी
चलो माना ये चुप रहने से हल होंगे कई मुददे
कि सारे राज खोलेगी किसी भी रोज ये चुप्पी
जो रखते हैं लगा के होंठ पे ताले रिवाजों के
जुबां से उनके बोलेगी किसी भी रोज ये चुप्पी
तमस की आँधियों ने बाग को बर्बाद कर डाला
नयन अपने भिंगोयेगी किसी भी रोज ये…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 26, 2016 at 10:00am — 9 Comments
2212 2212 2212 2212
भरने लगीं आँहें तड़फ के संगदिल तनहाइयाँ
ढलने चला सूरज अभी बढ़ने लगी परछाइयाँ
थीं कोशिशें की थाम लें उड़ता हुआ दामन तेरा
पर मुददतों से फासले पसरे हुये हैं दरमियाँ
ये कौन सा माहौल है ये वादियाँ हैं कौन सीं ?
हर ओर सन्नाटा ज़हन में चीखतीं खामोशियाँ
तुमभी परेशां हो बड़े दिल की खलाओं से अभी
छू कर तुझे आईं हवायें करती हैं…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2016 at 5:13pm — 4 Comments
इस्लाह के लिए विशेषकर काफ़िए को लेकर मन में शंकायें हैं
2122 2122 2122 212
है ग़मों की इन्तहां अब आजमा लें दर्द को
बात पहले प्यार से फिर भी नहीं जो मानता
गेंद की तरहा हवा में फिर उछालें दर्द को
गर ग़मों की चाहतें हैं ज़िन्दगी भर साथ की
हमसफ़र अपना बना उर में छुपा लें दर्द को
नफरतों के राज में क्या रीत…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 2, 2016 at 8:36pm — 12 Comments
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