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बृजेश कुमार 'ब्रज''s Blog – June 2016 Archive (3)

ग़ज़ल ...... ये चुप्पी

1222       1222       1222       1222

​जहाँ के गम तुम्हें देगी किसी भी रोज ये चुप्पी 

तुम्हारी जान ले लेगी किसी भी रोज ये चुप्पी

चलो माना ये चुप रहने से हल होंगे कई मुददे

कि सारे राज खोलेगी किसी भी रोज ये चुप्पी

जो रखते हैं लगा के होंठ पे ताले रिवाजों के 

जुबां से उनके बोलेगी किसी भी रोज ये चुप्पी

तमस की आँधियों ने बाग को बर्बाद कर डाला 

नयन अपने भिंगोयेगी किसी भी रोज ये…

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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 26, 2016 at 10:00am — 9 Comments

ग़ज़ल ....ढलने चला सूरज अभी बढ़ने लगी परछाइयाँ

​गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल ​

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भरने लगीं आँहें तड़फ के संगदिल तनहाइयाँ 

ढलने चला सूरज अभी बढ़ने लगी परछाइयाँ 

थीं कोशिशें की थाम लें उड़ता हुआ दामन तेरा 

पर मुददतों से फासले पसरे हुये हैं दरमियाँ 

ये कौन सा माहौल है ये वादियाँ हैं कौन सीं ?

हर ओर सन्नाटा ज़हन में चीखतीं खामोशियाँ 

तुमभी परेशां हो बड़े दिल की खलाओं से अभी 

छू कर तुझे आईं हवायें करती हैं…

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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2016 at 5:13pm — 4 Comments

ग़ज़ल.....अब आजमा लें दर्द को

इस्लाह के लिए विशेषकर काफ़िए को लेकर मन में शंकायें हैं 

2122       2122       2122       212

​क्यों नहीं अपनी रगों से हम निकालें दर्द को

है ग़मों की इन्तहां अब आजमा लें दर्द को

बात पहले प्यार से फिर भी नहीं जो मानता 

गेंद की तरहा हवा में फिर उछालें दर्द को

गर ग़मों की चाहतें हैं ज़िन्दगी भर साथ की 

हमसफ़र अपना बना उर में छुपा लें दर्द को

नफरतों के राज में क्या रीत…

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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 2, 2016 at 8:36pm — 12 Comments

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