(११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ )
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ये हुआ है कैसा जहाँ खुदा यहाँ पुरख़तर हुई ज़िंदगी
न किसी को ग़ैर पे है यक़ीं न मुक़ीम अब है यहाँ ख़ुशी
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कहीं रंज़िशें कहीं साज़िशें कहीं बंदिशें कहीं गर्दिशें
कहाँ जा रहा है बता ख़ुदा ये नए ज़माने का आदमी
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कहीं तल्ख़ियों का शिकार है कहीं मुफ़्लिसी की वो मार है
मुझे शक है अब ये बशर कभी हो रहेगा ज़ीस्त में शाद भी
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कहीं वहशतों का निज़ाम है कहीं दहशतें खुले-आम हैं
मिले आदमी से यूँ आदमी मिले अजनबी से जूँ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 30, 2019 at 2:30am — 1 Comment
(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
ग़म को क़रीब से मियाँ देखा है इसलिए
अपना ही दर्द ग़ैर का लगता है इसलिए'
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जब और कोई राह न सूझे ग़रीब को
रस्ता हुज़ूर ज़ुर्म का चुनता है इसलिए
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बाज़ार के उसूल हुए लागू इश्क़ पर
बिकता है ख़ूब इन दिनों सस्ता है इसलिए
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आसाँ न दरकिनार उसे करना ज़ीस्त से
दिल का हुज़ूर आपके टुकड़ा है इसलिए
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उनके ज़मीर के हुए चर्चे जहान में
मिट्टी के भाव में…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 28, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
सुकून-ओ-अम्न पर कसनी ज़िमाम अच्छी नहीं हरगिज़
अगर पैहम है तकलीफ़-ए-अवाम अच्छी नहीं हरगिज़
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निज़ामत देखती रहती वतन में क़त्ल-ओ-गारत क्यों
नज़रअंदाज़ की खू-ए-निज़ाम अच्छी नहीं हरगिज़
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न रोके तिफ़्ल की परवाज़ कोई भी ज़माने में
कभी सपने के घोड़े पर लगाम अच्छी नहीं हरगिज़
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किसी को हक़ नहीं है ये कि ले क़ानून हाथों में
मगर सूरत वतन में है ये आम अच्छी नहीं हरगिज़
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क़ज़ा को घर बुलाना है तुम्हें तो ख़ूब पी लेना
वगरना मय है पक्की या है ख़ाम अच्छी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 27, 2019 at 9:15pm — 5 Comments
हाय क्या हयात में दिखाए रंग प्यार भी
इस चमन में साथ साथ फूल भी हैं ख़ार भी
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देखते बदलते रंग मौसमों के इश्क़ में
हिज्र की ख़िज़ाँ कभी विसाल की बहार भी
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इंतज़ार की घड़ी नसीब ही नहीं जिसे
क्या पता उसे है चीज़ लुत्फ़-ए-इंतिज़ार भी
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कीजिये सुकून चैन की न बात इश्क़ में
इश्क़ में क़रार भी है इश्क़ बे-क़रार भी
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चश्म इश्क़ में ज़ुबान का हुआ करे बदल
जो शरर बने कभी कभी है आबशार भी
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प्यार एक फ़लसफ़ा है और नैमत-ए-ख़ुदा
रंज़ है इसे बनाते लोग…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 24, 2019 at 1:30pm — 4 Comments
एक गीत
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मन के आँगन में फूटा जो
प्रीतांकुर नवजात |
खाद भरोसे की देकर अब
सींच इसे दिन-रात |
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ध्यान रहे यह इस जीवन का
बीत गया बचपन |
आतुर है दस्तक देने को
अब मादक यौवन |
उर-आँगन में जगमग हर पल
सपनों के दीपक
और रही झकझोर हृदय को
यह बढ़ती धड़कन |
वयः संधि का काल हृदय में
भावों का उत्पात |
खाद भरोसे की देकर अब
सींच इसे दिन-रात…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 23, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
ताज़ा गर दिल टूटा है तो वक़्त ज़रा दीजै
क़ायम रखना रिश्ता है तो वक़्त ज़रा दीजै
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सिर्फ़ शनासाई से होता प्यार कहाँ मुमकिन
इश्क़ मुक़म्मल करना है तो वक़्त ज़रा दीजै
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पहले के दिल के ज़ख़्मों का भरना है बाक़ी
ज़ख़्म नया गर देना है तो वक़्त ज़रा दीजै
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ख़्वाब कभी क्या बुनने से ही होता है कामिल
पूरा करना सपना है तो वक़्त ज़रा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 13, 2019 at 1:30am — 2 Comments
कैसे होते हैं फ़ना प्यार निभाने के लिए
छोड़ जाऊंगा नज़ीर ऐसी ज़माने के लिए
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रूह का हुस्न जिसे दिखता वही आशिक़ है
जिस्म का हुस्न तो होता है लुभाने के लिए
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दरमियाँ गाँठ दिलों के जो पड़ी कब सुलझी
कौन दीवार उठाता है गिराने के लिए
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अच्छे लोगों की कमी रहती है क्या जन्नत में
क्यों ख़ुदा उनको है तैयार बुलाने…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 8, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
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