For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

June 2012 Blog Posts (251)

मिरे खाबों के शबिस्ताँ

ये मेरी लिखी पहली ग़ज़ल है जो मैंने पूरे प्रयास से बह्र में लिखने की कोशिश की है.

  आप सभी जानकार लोगों से गुज़ारिश है कि तब्सिरा करके खामियां बताएं. आप सब का आभार. :)

  इसका वज़न कुछ ऐसा गिना है मैंने.

  1222/2122/1222/122

   

    मिरे खाबों के शबिस्ताँ में तेरा ही असर है

    गुलों की ख़ुश्बू तिरी नूर से रोशन नज़र है !



    कहाँ होती बात वो यूँ समंदर की अदा में

    सदफ से पूंछो…
Continue

Added by Raj Tomar on June 30, 2012 at 11:00pm — 3 Comments

"जिंदगी से रूबरू हम"

अपनी ही जिन्दगी से शर्मसार हैं आज हम,

क्या बनने कि कोशिश थी, क्या बन गये हम|



जज्बातों कि लाश को सीढियाँ बना मंजिल तो पा ली,

पर क्या अब  खुद  को  इन्सान  कह  सकते हैं  हम|



अपनों की भीड़ में, अपनों को ढूंढ़ कर देख…

Continue

Added by savi on June 30, 2012 at 8:02pm — 14 Comments

देखना तुझको मुसीबत तो नहीं

देखना तुझको मुसीबत तो नहीं

है मुहब्बत ये शरारत तो नहीं



मर मिटे उसके बदन पर वो मगर

चाहना बस हुश्न चाहत तो नहीं



हार बैठा हूँ जिगर पर ये बता

गैर से तुझको मुहब्बत तो नहीं



छोड़ आया हूँ सभी दुनिया-जहाँ

अब तुझे मुझसे शिकायत तो नहीं



तोड़ के रिश्ते मिले किसको सुकूं

इश्क चाहत है बगावत तो नहीं



देख कर क्यूँ आह भरते हो सनम

इश्क अंदाजे अदावत तो नहीं



खेलना दिल से नहीं आता मुझे…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 30, 2012 at 2:30pm — 4 Comments

सलामे मोहब्बत

तू अगर दूर जाकर, हमसे बेखबर है..

तो हम भी खुश रहेंगे, ये तेवर है..०० 
.
मांगी एक दुआ, तो तू मिल गई..
बने एक दुनिया जो पल में उजड़ गई.
सुने पन अब जो मंजर है..
तो हम भी खुश रहेंगे, ये तेवर है..०१ 
.
दर्द का क्या वो सहा भी बहुत..
अशुओ क सहारे वो बहा भी बहुत..
पूरी करले जो बाकि कसर है ..
तो हम भी खुश रहेंगे, ये तेवर है..०२ 
याद न आई, या मुझे भुला…
Continue

Added by Pradeep Kumar Kesarwani on June 30, 2012 at 10:55am — 7 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २३

बड़े प्रेम की छोटी सी प्रेम कहानी...

-------------------------------------------------

परछाईयों के पीछे आज फिर नज़र की रहलत (प्रस्थान) हुई, रोशनियों की शाहराह (चौड़ी राह) पे हम कुछ यूँ सफरपिजीर (सफर पे निकले) हुए. रात की सन्नाटगी, दरख्तों से हवाओं की सरगोशी (हौले से कानों में बात करना), चाँदनी का सीमाब (चांदी जैसा) सा पिघलता बदन, और फज़ा में उसकी यादों का लहराता आँचल- मैं गोया सफर-ए-इरम (इक काल्पनिक स्वर्ग की यात्रा) की ओर रवाँ होने को था.

 

ज़माना गुज़र गया है…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:27pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २२

दिल एक रेलवे स्टेशन सा हो गया है......

--------------------------------------------------------------

दिल एक रेलवे स्टेशन सा हो गया है. वो भी किसी छोटे से कसबे का जहाँ दिन में कुछ गाडियां ही आती जाती है, और दिन भर एक वीरानी सी पसरी होती है पटरियों पे. सारा दिन जैसे ३ बजे की लोकल का और शाम की मुंबई वाली पैसेंजर का इन्तेज़ार रहता है. थोड़ी देर की धड़कन, कुछ लम्हे की रौनक, कुछ मिनटों की भाग दौड़, और फिर मीलों लंबे समय का न कटने वाला साथ.

 

ज़िंदगी में सवारियों की तरह…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:24pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २१

आज का दिन भी...

-----------------------------

आज का दिन भी फंस गया है मोटरगाड़ियों की ट्राफिक में. आहिस्ता आहिस्ता रेंग सा रहा है धूप की बरसाती के नीचे, मैं साफ़ देखा रहा हूँ अपने ऑफिस की खिडकी पे खड़ा. लोग किधर और क्यूँ भागते रहते हैं अपने अपने घरों से निकल कर, मैं इस ख्याल को किसी शायर के तखय्युल की हवा देता हूँ, कि आखिर क्यूँ? क्यूँ शिताबी सी मची रहती है ज़िंदगी में, कि लोगों के पास हर वक्त वक्त क्यूँ नहीं होता जबकि वक्त के बगैर कोई भी वक्त…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:22pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १८

प्रेम के उद्भव और विलय का यह कैसा दंश है......

---------------------------------------------------------------

समूची सृष्टि में एक ही प्रेम का गीत गुंजायमान है. मेरे और तुम्हारे हृदयों में जो प्रेम धड़क रहा है उसमें भी उसी एक मौलिक प्रेम का स्पनंदन विद्यमान है. सारा अस्तित्व आकर्षणों और विकर्षणों के एक हीगणित से चलायमान है. प्रेम एक ऐसा वर्तुल है जिसका केंद्र कल्पना में ही अस्तित्वमान है. ये वर्तुल जब असीम होके निराकार हो जाता है तो केंद्र की भी सत्ता खो जाती है और प्रेम के…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:14pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १७

वेनिस की भव्य ऐतिहासिक इमारतें, पो एवं पिआवे नदियों के नहरों के पानी पे तैरती गलियाँ और गोंडोलों में भागती दौड़ती शह्र की ज़िंदगी. बहते पानी के पसेमंज़र ऐसा लगता है जैसे ज़िंदगी ठहरी है और इमारतें पुरइत्मीनान तैर रही हैं.

 

अभी दो रोज़ पहले द ग्रेट गैम्बलर फिल्म का गाना सुन रहा था टीवी पर- ‘दो लफ़्ज़ों की है ये दिल की कहानी, या है मुहब्बत या है जवानी’. अमिताभ और ज़ीनत आमान पे वेनिस के ऐसे ही एक कूचे में फिल्माए गाने में इतालवी भाषा के मूल गीत की शुरुआती पंक्तिओं ने जैसे प्राण…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:12pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १६

मैं अपने प्यार को तो न समझा पाया....

---------------------------------------------------------

मैं अपने प्यार को तो न समझा पाया, तेरे गुनाहगार को तो समझा लूँ. मैं अपनी तकदीर न बना पाया, तेरे अरमानों को तो सजा लूं. मैं चाह कर भी न बन पाया तेरा साया, मैं तेरा आशना होने का वहम तो मिटा लूं. मैंने तेरे वास्ते अग्यार को भी समझाया, थोड़ी देर दिलेनादाँ को ही समझा लूं. हालात ने चाहतों को बहुत बहकाया, अपनी नाकाम उम्मीदों को तो झुठला लूं. चलो आज भी तुम नहीं आए छत पे, मैं अपनी उदासियों कोई…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:10pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १५

ये मेरी शायरी, ये मेरी सुखनवरी (साहित्य) तुम्हारी याद की रुबाइयां हैं...

------------------------------------------------------------------------------------

मैं तुम्हारे साथ पहाड़ों के पार चला जाऊं, या कि समंदर के आर पार हो जाऊं. मैं तुम्हारे साथ कायनात (सृष्टि) की हद से गुज़र जाऊं या कि मादरेवतन (मातृभूमि) की ख़ाक में मिल जाऊं. मैं तुम्हारे साथ बादलों के जंगल में खो जाऊं या कि झरनों की धार में बह जाऊं. मैं तुम्हारे साथ सहरा (रेगिस्तान) में घर बसाऊं या कि किसी गाँव के मोहल्ले…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:09pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १४

तुम......

---------------------

मैं अगर पत्थर हूँ तो भगवान बना लो तुम, और पानी हूँ तो जी चाहे बहा लो तुम. मै गुज़रा वक्त हूँ तो यादों में बसा लो तुम, या कोई लकीर हूँ तो खुद में ही मिटा लो तुम. मैं अगर फूल हूँ तो गुलदस्ते में सजा लो तुम, या कोई पढ़ी हुई किताब हूँ तो ताखे पे लगा लो तुम. मैं कोई सपना हूँ दो सच कर के दिखा दो तुम, या कोई गीत हूँ तो अपनी तन्हाई में गुनगुना लो तुम. मैं किसी ख़्वाब का मंज़र हूँ तो पलकों पे सजा लो तुम, या कोई बंजर ज़मीन का टुकड़ा हूँ तो अपनी राहगुज़र…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:07pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १३

तो मालूम हुआ..

------------------------------------

मैं चलते चलते गिर गया था, तुमने खुद झुक के उठाया तो मालूम हुआ, मैं ख़्वाब देखते देखते सो गया था, तुमने चुपचाप जगाया तो मालूम हुआ. मैं तुझे पुकारते कहीं खो गया था, पास आया तेरा साया तो मालूम हुआ, बहुत पहले ही दिल की मिट्टी में कोई प्यार के बीज बो गया था, आँधियों में पेड़ जो लहराया तो मालूम हुआ. अभी अभी कोई मेरी वीरानियों में आके रो गया था, आईने ने जो मुझे चेह्रा दिखाया तो मालूम हुआ.मैं राहरौ होके भी खुश था, क्या होती हैं घरबार…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:06pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १२

प्रेम की यह यात्रा...

-------------------------------

तुम्हारी बरौनियों के झालर से टिमटिमाती आँखें हरिद्वार की गंगा की शाम की आरती के तैरते दिए सी झिलमिलाती हैं, तुम्हारी ललाट पे सजी लाल बिंदिया देवी के भाल पे लगे श्रद्धा के टीके की तरह पवित्रता के सनातन प्रतीक सी प्रतीत होती है, तुम्हारे मुखमंडल ने जैसे हिमशिखरों का शुभ्र ओज ओढ़ रखा है, तुम्हारे होठों तक खेलती लटों की उर्मियाँ जैसे शंकर के कांधों पे सर्पों के गुच्छे हों, तुम्हारे आपादमस्तक स्त्रीसुलभ लावण्य का आमंत्रण तटों पे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:04pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ११

आखिर तुम हो कौन....

----------------------------------------

हर प्यार में तेरे प्यार की सौंध है. हर कशिश में तेरी तस्वीर है. हर आकर्षण में तेरा रूप है. कोई गाना सुनते, किसी फिल्म में प्रेम का दृश्य देखते, सच में करुणा को बहते देखते, पशुओं का ममत्व देखते, मेरे अन्दर तेरे ही अति प्राचीन प्रेम की तरंगे उठने लगती हैं और यद्यपि मैं कुर्सी में बैठा बाहर से पाषाण की तरह स्थिर अवस्था में दीखता हूँ, जैसे कि ध्यान में डूबा, मेरी आंतरिक्ताओं में तू ही तू दोलायमान हो जाता है, मेरी आँखों…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:03pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १०

दिल किसी फूल सा कुम्हला गया हो जैसे. वो खुद तो दिखता नहीं मगर हर शै म्लान और बेरौनक नज़र आती है ऐसे में. आइना भी कह रह था, चेह्रा कितना उतर गया है आज. बेचैनियाँ कहाँ से आईं, ये मालूम नहीं, पर इन्हें दिल ही क्यूँ पसंद है? दिल न होता तो बेचैनियों का क्या होता, क्या बेचैनियों का चैन भी खोता है? रब जाने क्या होता है!

 

© राज़ नवादवी

पुणे, १२/०४/२०१२ 

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:01pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ९

मेरी प्यारी,

 

प्यार का रूप चाहे जो भी हो उसकी धुरी आत्मिक और परिधि सार्वभौमिक होती है. और जब धुरी और परिधि आपस में मिल जातीं हैं तो प्रेम परिपूर्ण हो जाता है, एक अपरिभाष्य अस्तित्व जिसमें स्वं के भी होने का ज्ञान नहीं होता, एक गहरी निद्रा सी अवस्था जिसमें हम खो जाते हैं- कहाँ, किधर, क्यूँ, कैसे, किसमें, कुछ भी ज्ञात नहीं होता. सूफियों में इसे ‘हाल’ की कैफियत भी कहतें हैं. लैला-मजनूँ, रोमियो-जुलियट, हीर-रांझा, न जाने कितने ऐसे युगल हैं जिनके इश्क का मेयार कुछ ऐसा ही था. सच्चे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:00pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २०

सीमा इक प्यारा शब्द है ...

--------------------------------------

सीमा इक प्यारा शब्द है और उतना ही प्यारा नाम. आदमी का अपने जीवन के हर पहलू में किसी न किसी सीमा से किसी न किसी रूप में साबिका पड़ता है. उसकी इन्तेहाई फितरत जो उसके बनाने वाले से पैदा हुई है उसे हर सीमा के पार जाने को प्रेरित करती है जबकि समाजी ज़िंदगी का तकाज़ा उसे इक सीमा के अंदर रहने की सलाह देता है. और इस तज़ब्जुब और कशमकश से ज़िंदगी अलग अलग ज़ायके में दरपेश होती है.

 

आदम और हव्वा ने भी खुदा की…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:00pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १९

आज की सुबह भी आई और आ ही गई. नींद भी रुखसत हुई और रात भी. और ख़्वाबों का रेला भी कुछ याद और कुछ मुबहम नींद के साथ गुज़र गया. हकीकत रूबरू थी- रोजाना के गुस्लोफरागेहाज़त और फिर दफ्तर जाने की तैयारी. कितना मशीनी है सब कुछ. ज़िंदगी के इस पहलू की आइंदागोई कितना आसान है- शायद दौर के दौर का एक बुनियादी खाका खींचना किसी एक अदद दिन के फोटोकॉपी करना जैसा हो.

 

अगर ज़िंदगी में दिल और दिल की तमाम उलझनें न हों तो सब कुछ कितना बेरंग, यकसां, और उबाऊ हो जाएगा. तआज्जुब तो ये है कि दिल चाहे सीने…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:00pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ८

अपनी सम्पूर्ण असम्पूर्णता में भी कितना पूर्ण हूँ...

----------------------------------------------------------------------

प्रातःकाल की पवित्रता छा जाती है मुझपे और मैं भाव-विभोर होके ध्यानस्थ हो जाता हूँ. दिन भर के काम-काज की भाग-दौड़ और जीवन का दैनिक उतार-चढ़ाव, मैं पक्का गृहस्थ हो जाता हूँ. गोधूलि की परिशांति, दिन और रात का समागम, मैं किसी दार्शनिक सा तटस्थ हो जाता हूँ. संध्याकाल का मनोहारी परिदृश्य और मेरी आतंरिक भोगपरकता का उद्रेक, मैं इन्द्रप्रस्थ हो जाता हूँ. रात्रिकाल…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 10:59pm — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

AMAN SINHA posted blog posts
3 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: सही सही बता है क्या

1212 1212सही सही बता है क्याभला है क्या बुरा है क्यान इश्क़ है न चारागरतो दर्द की दवा है क्यालहू सा…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
दिनेश कुमार posted blog posts
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन अभिवादन व हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी. सादर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुन्दर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
" आदरणीय अशोक जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"  कोई  बे-रंग  रह नहीं सकता होता  ऐसा कमाल  होली का...वाह.. इस सुन्दर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"बहुत सुन्दर दोहावली.. हार्दिक बधाई आदरणीय "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service