सर्फ़ का घोल लेके वो बच्चा हवा में बुलबुले उड़ा रहा था
कुछ उनमें से फूट जाते थे खुद-ब-खुद
कुछ को वो फोड़ देता था उँगलियाँ…
ContinueAdded by Veerendra Jain on July 20, 2011 at 12:59pm — 10 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on July 20, 2011 at 7:10am — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on July 19, 2011 at 11:30pm — No Comments
जिसकी ख़ातिर ख़्वाब जवाँ,
उसे तलाशूँ कहाँ कहाँ,
लाख छुपाऊँ अश्कों को,
चेहरे से है दर्द अयाँ,
सौ शहरों में घूम लिया,
नहीं मिला है एक मकाँ.
कितना तल्ख़ सफ़र काटा,
उखड़ी साँसें घायल पाँ,
चाहत में क्या क्या गुज़री,
रिसते छालें करें बयाँ,
दिल रोशन सा एक दिया,
आज उगलता एक धुआँ.
खुशियों की यूँ शाम हुई,
खूँ में डूबा आज समाँ
तेरी यादों की माला,
टूटी बिखरी यहाँ…
Added by Rohit Sharma on July 19, 2011 at 3:41pm — 1 Comment
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 1:20pm — No Comments
वो नन्हा सा था,
थे पंख उसके छोटे, छोटी सी थी काया,
नन्ही सी उन आँखों में जैसे पूरा गगन समाया!
सोचती थी कैसे उड़ेगा....
छोटी छोटी प्यारी आँखों में उड़ने का था सपना,
पंख फैला सर्वत्र आकाश को बनाना था अपना,
हर कोशिश के बाद मगर फिसल-फिसल वो जाता!
सोचती थी कैसे उड़ेगा....
इक दिन फिर नन्हे-नन्हे से पर उसके थे खुले,
थी शक्ति क्षीण मगर बुलंद थे होंसले,
पूरी हिम्मत समेट कर घोसले से वो कूदा!
सोचती थी कैसे…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 19, 2011 at 10:06am — 3 Comments
जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं |
वो, खुदा समान, महान हैं ||
वो ही, पैदा करते हैं, फसल को |
वो ही, जिन्दां रखते हैं, नस्ल को ||
वो तो, ज़िन्दगी करें, दान है |
जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं ||
उन्हें, अपने काम से काम है |
वो कहें, आराम , हराम है ||
वो असल में, अल्लाह की शान हैं |
जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं ||
जिन्हें, बस ज़मीन से, प्यार है |
करें जाँ, ज़मीं पे, निसार हैं ||
वो तो, सब्र-ओ-शुक्र की, खान हैं |
जिन्हें, लोग कहते,…
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 10:00am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 9:18am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 8:42am — 2 Comments
Added by rajkumar sahu on July 18, 2011 at 11:17pm — No Comments
ज़ेहन मे दीवार जो सबने उठा ली है,
रातें भी नही रोशन, शहर भी काली है |
मालिक ने अता की है, एक ज़िंदगी फूलों सी,
काँटों से बनी माला क्यूँ कंठ मे डाली है |
कैसी ये तरक्की है , कैसी ये खुशहाली है,
पैसे से जेब भारी, दिल प्यार से खाली है |
दर्द फ़क़त अपना ही दर्द सा लगता है,
औरों के दर्द-ओ-गम से आँख चुरा ली है |
किस-किस को सुनाएँगे अफ़साना-ए-हयात अब,
बेहतर है खामोशी, जो लब पे सज़ा ली है |
Added by Prabha Khanna on July 18, 2011 at 7:00pm — 11 Comments
Added by rajkumar sahu on July 18, 2011 at 6:52pm — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 17, 2011 at 9:21pm — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 17, 2011 at 9:16pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on July 17, 2011 at 8:48pm — No Comments
Added by Aradhana on July 17, 2011 at 7:30pm — 9 Comments
(दहेज़ के लिए पत्नी को जलाने,हत्या करने जैसी घटनाएँ आज भी हमारे समाज में घट रही हैं. हम कैसे मान लें हम पहले से अधिक शिक्षित और सभ्य हो चुके हैं. मानसरोवर --4 इसी अमानुषिक कृत्य पर आधारित है.
Added by satish mapatpuri on July 17, 2011 at 6:30pm — 2 Comments
ये जिंदगी तन्हाई को साथ लाती है,
हमें कुछ करने के काबिल बनाती है.
सच है मिलना जुलना बहुत ज़रूरी है,
पर ये तन्हाई ही हमें रहना सिखाती है.
यूँ तो तन्हाई भरे शबो-रोज़,
वीरान कर देते हैं जिंदगी.
उमरे-रफ्ता में ये तन्हाई ही ,
अपने गिरेबाँ में झांकना सिखाती है.
मौतबर शख्स हमें मिलता नहीं,
ये यकीं हर किसी पर होता नहीं.
ये तन्हाई की ही सलाहियत है,
जो सीरत को संजीदगी सिखाती है.
शालिनी कौशिक…
Added by shalini kaushik on July 17, 2011 at 2:30pm — No Comments
Added by neeraj tripathi on July 17, 2011 at 10:25am — No Comments
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