धरती का नूतन नखशिख सिंगार लिखो
सावन लाया है मोती के हार लिखो
दादुर मोर मयूरी का आभार लिखो
नदियों नालों में जल का विस्तार लिखो
पत्ता पत्ता डाली डाली झूम रही
बूँदे बूँदे चूम रही हैं प्यार लिखो
प्यास बुझाती कुदरत कितने प्यासों की
तिनके तिनके पर उसका उपकार लिखो
खेतों खेतों धान उगाते हैं हाली
भेज रहे बादल जल का उपहार लिखो
सागर नदिया लहरों की रफ़्तार…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 31, 2015 at 10:10am — 9 Comments
“ये देखो विज्ञान आज कितनी तरक्की कर रहा है कितनी अद्दभुत मशीन बना डाली, पुरुष भी महसूस करके देख सकते हैं अब प्रसव वेदना को|" टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में हेडिंग Chinese men get a taste of labor pain with a machine को पढ़ते हुए प्रोफ़ेसर बक्शी अपनी पत्नी से अचानक बोल उठे
”पापा क्या कभी कोई ऐसी मशीन भी बन पाएगी जो रेप के दर्द को भी पुरुष महसूस कर सकें” थोड़ी दूरी पर बैठी बेटी के अचानक इस प्रश्न ने पापा को अन्दर तक झिंझोड़ कर रख दिया बेटी के सिर पर…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 27, 2015 at 10:00am — 26 Comments
रहें जो खुद मकानों में वो घर की बात करते हैं
जड़ों को काटने वाले शज़र की बात करते हैं.
जहाँ जिस थाल में खाते उसी को छेदते देखो
रहें तन से इधर लेकिन उधर की बात करते हैं
लगे अच्छी उन्हें बस आग फिरते हैं लिए माचिस
अजब वो लोग हैं केवल समर की बात करते हैं.
छपी तस्वीर अखबारात में उस बाँध की देखो गिरा वो चार दिन में ही अजर की बात करते… |
Added by rajesh kumari on July 23, 2015 at 10:15am — 14 Comments
जैसे ही कोई छुट्टी आती थी गाँव जाने का अवसर मिल जाता था चेहरा खिल उठता था मन की मुराद पूरी जो हो जाती थी एक तो दादा जी, चाचा,चाची से मिलने की उत्सुकता दूसरे खेलने कूदने मस्ती करने की स्वछंदता हमेशा गाँव की ओर खींचती थी| उत्सुकता का एक कारण और भी था वो था .. कौतुहल से बच्चों की टोली में जुड़कर “भेंडर” की हरकतों का मजा लेना |
लेकिन उसका उपहास बनाने वालों को मैं पसंद नहीं करती थी|
घर वाले कहते थे उसे भेंडर नहीं भगत जी कहा करो हाँ कुछ गाँव वाले उसे भगत जी कहते थे…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 21, 2015 at 11:30am — 18 Comments
“वहीँ होगा तुम्हारा लाड़ला इस वक़्त भी है न ? कितनी बार कहा दोस्ती बराबर वालों से ठीक है सर्वेंट के उस लड़के से उसने क्या समझ के दोस्ती की? कुछ तो कॉमन हो... पर तुम क्यूँ समझाती, खुद भी तो.... छोटे घर की... छोटी सोच ...
जैसे संस्कार हैं वही तो बच्चे को दोगी” व्हीस्की का घूँट गले में उतारते हुए मोहित बोला|
“हाँ पापा है न एक चीज कॉमन !! उसके पापा भी रोज ड्रिक करके इतनी रात गए घर में आते हैं और उसकी मम्मी पर इसी तरह चिल्लाते हैं, मेरी मम्मी की आँखें भी बरसती हैं और उसकी…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 19, 2015 at 9:30am — 16 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
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दूजे में हमको जो अक्सर दोष दिखाई देता है
अपने में तो वो खूबी का कोष दिखाई देता है
उथला पथली हो लहरों की, चाहे समझो अँगडाई
हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है
कितना टूटा होगा बादल खुद की हस्ती को खोकर
लेकिन नभ के मुख दर्पण में तोष दिखाई देता है
जिसके मन में खोट नहीं है उसको लगता सब अच्छा
पतझड़ में भी जीवन का उद्धोष दिखाई देता है
खुशियाँ हो तो…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 13, 2015 at 11:30am — 17 Comments
122 122 122 122
तुम्हारी समझ से वो सौगात होगी ,मगर मेरी नजरों में खैरात होगी
मुझे चाहिए मेहनतों के निवाले, जिये रहमतों पर तेरी जात होगी.
न जाने कहाँ अब मुलाकात होगी ,जहाँ आमने सामने बात होगी
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Added by rajesh kumari on July 8, 2015 at 9:14pm — 15 Comments
२१२ १२२ २
गली गली बुहारूँ क्या?
नालियाँ निथारूँ क्या ?
काम छोड़ कर अब मैं
रास्ता निहारूँ क्या?
आसमां से उतरे हो
आरती उतारूँ क्या?
धूल लग गई शायद
पाँव भी पखारूँ क्या?
देखना है चेह्रा अब
आईना सँवारूँ क्या?
लाए कुछ नए जुमले
शब्द मैं सुधारूँ क्या?
धूप लग रही क्या जी
अब्र को पुकारूँ क्या?
वोट मांगने आये
पांच…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 1, 2015 at 12:00pm — 27 Comments
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