ताप प्रचण्ड
उफनाई नदियाँ
तपता भादों |
पथिक भूला
अंतर्मन व्यथित
तिमिर घना |
पथ ना सूझे
पिए नित गरल
कंठ भुजंग |
अल्हड़ नदी
मदमस्त लहरें
नईया डोले |
भजन राम
बसे छवि मन में
नित निहारू |
मनमोहिनी
चंदा सा मुख देख
खुशी मन में |
मीना पाठक
मौलिक /अप्रकाशित
Added by Meena Pathak on August 23, 2014 at 1:45pm — 25 Comments
नित बैठी रहती हूँ उदास
हर पल आती पापा की याद
सावन में सखियाँ जब
ले कर बायना आती हैं
नैहर की चीजें दिखा-दिखा
इतराती हैं,
तब भर आता है दिल मेरा
पापा की कमी रुलाती है
कहती हैं जब, वो सब सखियाँ
पापा की भर आयीं अंखिया
मेरे बालों को सहलाया था
माथा चूम दुलराया था
सुनती हूँ जब उनकी बतिया
व्यकुल हो गयी मेरी निदिया
मन अधीर हो जाता है
पापा को बहुत बुलाता है
पर खुश देख सखी को
हल्का…
ContinueAdded by Meena Pathak on August 7, 2014 at 6:45pm — 17 Comments
होते जो बहुरूपिया, मिले न उनकी थाह |
मन में अंतरघात है, सुर है मधुर अथाह ||
गीली लकड़ी की तरह, सुलगी वो दिन रात |
सिसक-सिसक कर जल मुई,हृदय वेदना घात ||
.
जीवन के दिन चार हैं, नेक करें कुछ काज
अंत समय कब हो निकट,नहीं पता कल आज ||
किस्मत में जो था मिला, सर फोड़े क्यों रोय |
पूर्व जन्म का कर्म है, अब रोये क्या होय ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
Added by Meena Pathak on August 2, 2014 at 3:30pm — 21 Comments
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