अनुसरण- लघुकथा –
माँ भारती अपनी संध्याकालीन पूजा अर्चना से निवृत होकर जैसे ही प्रांगण में आयीं। उन्होंने देखा कि उनके बच्चे दो गुट में बंटे हुए एक दूसरे पर तमंचों से गोलियाँ दाग रहे थे। एक गुट हर हर महादेव के जयकारे लगा रहा था और दूसरा गुट अल्ला हो अकबर के नारे लगा रहा था। माँ भारती स्तब्ध रह गयीं।
उन्होंने तुरंत बच्चों को रोका,"बच्चो, यह क्या कर रहे हो तुम लोग"?
"माँ, हम लोग हिंदू मुसलमान खेल रहे हैं"।
"पर यह खेल कौन सा है"?
"यह हिंदू मुस्लिम दंगा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 25, 2018 at 12:08pm — 8 Comments
घूंघट - लघुकथा –
"बहू, जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए शादी को और तुमने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिये"।
"माँ जी, यह आप क्या कह रहीं हैं? मैं कुछ समझी नहीं"?
"अरे वाह, चोरी और सीना जोरी"।
"माँ जी, आप मेरी माँ समान हैं। मुझसे कोई गलती हुयी है तो बेशक डाँटिये फटकारिये मगर मेरी गलती तो बताइये"।
"क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हें अपने ससुर और जेठ का आदर सम्मान करना नहीं सिखाया"?
"माँ जी, मैं तो पिता जी और बड़े भैया का पूरा सम्मान करती हूँ"।
"तुम्हें क्या…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 18, 2018 at 11:01am — 9 Comments
चक्रव्यूह - लघुकथा –
"ए लड़की, क्या झाँक रही हो की होल से अंदर"?
सरकारी शाँती बालिका कल्याण संस्थान की व्यस्थापक सुमित्रा देवी गोमती को चोटी से पकड़ कर लगभग घसीटते हुए अपने कार्यालय ले गयीं। गोमती पीड़ा से बेचेन होकर छटपटा रही थी। वह लगातार रोये जा रही थी।
“क्या ताक झाँक कर रही थी वहाँ”? सुमित्रा जी ने लाल आँखें दिखाते हुए पुनः वही प्रश्न दोहराया।
"मैडम, मेरी बहिन को उस कमरे में एक सफ़ेद कुर्ता धोती वाला नेताओं जैसा आदमी पहले तो बहला फ़ुसला कर ले जाना चाह रहा था।…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 10, 2018 at 12:40pm — 10 Comments
मेरा घर - लघुकथा –
"हद हो गयी, अभी तीन दिन पहले ही साफ किया था जाला। फिर बना लिया"।
कमला झाड़ू लेकर मकड़ी के जाले को जैसे ही साफ करने लगी।
मकड़ी गिड़गिड़ाते हुये बोली,"क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा। क्यों मेरा घर संसार उजाड़ रही हो"?
"अरे वाह, मेरे ही घर में बसेरा कर लिया और मुझे ही ज्ञान दे रही हो"।
"हर कोई किसी ना किसी पर आश्रित है। संसार की यही रीति है"।
"होगी, पर मुझे तो नहीं पसंद। और यह तुम्हारा घर संसार। क्या है इसमें? जीवन भर की क़ैद। उम्र भर…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 3, 2018 at 4:38pm — 8 Comments
पिता के बार बार आग्रह करने पर रोहन उनके मित्र की इकलौती बेटी चेतना से एक बार मिलने को राजी हो गया। हालाँकि वह पिता से स्पष्ट कह चुका था कि यदि आपको चेतना पसंद है तो मुझे शादी मंजूर है| इसके बावज़ूद पिता की इच्छा थी कि रोहन एक बार चेतना से अवश्य मिले। शायद वे अकेले निर्णय करने से बचना चाहते थे।
चेतना दिल्ली में एम बी ए कर रही थी अतः हॉस्टल में रहती थी। उन दोनों ने रेस्त्रां में मिलना तय किया। औपचारिक मुलाक़ात के बाद मुद्दे की बात शुरू हुई। पहल चेतना ने की,
"क्या तुम एक बलात्कार…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 1, 2018 at 9:30am — 8 Comments
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