फूलों का सफर या
कांटों की कहानी
क्या कहूं कैसी है
ये जिंदगानी
कभी तो इसी ने
आंखों से पिलाया
बड़ी बेरूखी से
कभी मुंह फिराया
गम की इबारत या
जलवों की कहानी
क्या कहूं कैसी है
ये जिंदगानी
कभी सब्ज पत्तों पर
शबनम की लिखावट
कभी चांदनी में
काजल की मिलावट
कभी शोखियों की
गुलाबी शरारत
कभी तल्ख तेवर की
चुभती…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on September 28, 2012 at 12:46pm — 3 Comments
जीवन निर्झर में बहते किन
अरमानों की बात करूं
तुम्हीं बता तो प्रियवर मेरे
क्या भूलूं क्या याद करूं
भाव निचोड़ में कड़वाहट से
या हृदय शेष की अकुलाहट से
किस राग करूण का गान करूं
क्या भूलूं क्या याद करूं
भ्रमित पंथ के मधुकर के संग
या दिनकर की आभा के संग
किस सौरभ का पान करूं
क्या भूलूं क्या याद करूं
उजड़े उपवन के माली से
प्रस्तुत पतझड़ की लाली से
किस हरियाली की बात करूं
क्या भूलूं क्या याद करूं
Added by राजेश 'मृदु' on September 26, 2012 at 12:30pm — 4 Comments
जानूं नहीं ये मेरी उलझन
कहां ठिकाना पाएगी
कबतक जीवन यूं ही मुझको
चौराहों तक लाएगी
जिसको भी आवाज लगाई
वही मिला घबराया सा
घनी धुंध की परत लपेटे
सुबह भी था कुम्हलाया सा
जाने कौन गढ़े जा रहा
दीवारों पर ठिगने साए
खोह-कन्दरा-तमस छुपाके
नीले पड़ गए हमसाए
स्वर्ण छुआ तो राख मिली
राई-रत्ती भी खाक मिली
बस कोहरे ही रह गए हमारे
फूलों में भी आग मिली
जो करीब थे दूर हुए
सुख के पल कर्पूर हुए
शेष बची जो थोड़ी…
Added by राजेश 'मृदु' on September 13, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
कई मोड़ हैं
मेरी हथेली पर
हांफते हुए
ख्वाब में डूबे
कुछ चश्में भी तो हैं
कांपते हुए
नीले पड़ाव
धुंध में फिसलते ...
सैलाब भी हैं
सुर्ख परियां
वजू करते हाथ
हुबाब भी हैं
कम भी नहीं
इतनी खामोशियां
जीने के लिए
बेदर्द जख्म
काफी है इतना ही
अभी के…
Added by राजेश 'मृदु' on September 12, 2012 at 3:30pm — 6 Comments
Added by राजेश 'मृदु' on September 11, 2012 at 2:52pm — 9 Comments
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