दर्द पत्थर को जब सुनाता था
मुझको पत्थर और आजमाता था।
बोलना,उसके सामने जाकर,
मैं तो अन्दर से काँप जाता था
वो समझता न था,मेरे अहसास,
मैं तो मिट्टी पे लेट जाता था
इतनी पूजा की विधि थी उसके पास,
हर किसी को वो लूट जाता था
आज मालूम हो गया मुझको,
एक पुतला मुझे डराता था।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on September 18, 2014 at 9:55am — 5 Comments
भारतीय या किसी अन्य देश व प्रांत की भाषा,संस्कृति,धर्म व जीवन शैली वंहा की अपनी मौलिक व प्राकृतिक होती है । जिसका स्वतः विकास होना अति आवश्यक होता है। परंतु अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा दूसरे राज्य,संस्कृति,धर्म,पर अनावश्यक दबाव मानवीय मूल्यों को क्षति तो पहुंचाता है साथ ही अनैतिक है। किसी भी सच्चे अर्थों में जो मानव होते हैं उन्हें यह अनैतिक दबाव सहन नहीं होता , जिसके कारण मानव आपस में लडते हैं और मानवीय मूल्यों का ह्रास होता है। सच्चे अर्थों में मानव के लिये ऐसा कार्य निंदनीय होता है। भारतीय…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 8, 2014 at 10:27pm — No Comments
अब खतरनाक हो गया बादल
या कहें बेलगाम है पागल
कोई तो इन्द्र को ये समझाये,
कर रहा है किसान को घायल
आसमाँ ने कहा शराबी है,
मेघ नाचे है बाँध कर पायल
ओ रे मूर्ख खडी फ़सल को देख,
बालियों में है धूधिया चावल
गडगडाहट करे, डराये है,
बिजलियाँ हो रही तेरी कायल
.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on September 4, 2014 at 12:00am — 8 Comments
आओ हिन्दी पढें-पढायें हम..
मिलके हिन्दी के गीत गायें हम....
जैसा लिखते हैं वैसा उच्चारण,
इसलिये हिन्दी को करें धारण
विश्व को आओ सच बतायें हम..
मिलके हिन्दी के गीत गायें हम.....
सभ्यता लिप्त हिन्दी भाषा में
एक इतिहास जिसकी गाथा में
अपनी गाथायें मत भुलायें हम...
आओ हिन्दी पढें-पढायें हम.....
संस्कृत रक्त में समायी है
देव भाषा वही बनायी है
अपने सम्मान को बढायें हम..
आओ हिन्दी पढें…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 2, 2014 at 11:00pm — 12 Comments
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