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Meena Pathak's Blog – October 2013 Archive (5)

इस दीपावली एक संकल्प लें

समाज की अति व्यस्तता में मगन हम आनंद का अनुभव करने के लिए विशेष अवसरों की खोज करतें हैं | त्यौहार उन विशेष अवसरों में से एक है | ये हमारे जीवन में नयापन लाते हैं, आनन्द और उल्लास पैदा करते हैं | हमारे त्योहारों में दीपावली का विशेष स्थान है | दीपावली का साधारण अर्थ दीपों की पंक्ति का उत्सव है और दीपक का प्रकाश ज्ञान और उल्लास का प्रतीक है | दीपावली कब और क्यों मनाया जाता है ये तो हम सभी जानते हैं | इसके बारे में अनेक सांस्कृतिक,ऐतिहासिक एवं धार्मिक परम्पराएं और कितनी कहानियां प्रचलित हैं ये…

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Added by Meena Pathak on October 29, 2013 at 8:30pm — 19 Comments

कभी आत्ममन्थन करना -- मीना पाठक

दिए दिन, महीने, बरस

जीवन के अनमोल पल

तुम्हारी तल्खियों से

आहत जख्मों को छुपा

मुस्कान की सौगात दी

कोमल भावनाएं

इच्छाओं की आहूति दी

कायम रखी

तुम्हारी मिल्कियत

वजूद को मिटा कर

फिर भी

तुम छीनते रहे मुझसे

मेरे हिस्से का वक्त

तुम्हें मंजूर नही

मेरा खुद के लिए

जीना

तृप्त ना हो सकीं

तुम्हारी इच्छाएं

छीन लेना चाहते हो

मेरा आस्तित्व

मेरी अभिलाषाएं

मेरा सब कुछ

हक से लेने वाले…

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Added by Meena Pathak on October 23, 2013 at 4:30pm — 28 Comments

नेताओं देश शर्मसार है तुम पर

जवान होते ही हैं

शहीद होने के लिए

और नेता

वह तो शासक है

सोना उनका हक है

जवान जब गोली खा रहा होता है

नेता पार्टी कर रहे होते हैं

जवानों की चिता को

मुखाग्नि भी

राजनीति का अवसर देती है

उन्हें,

शहीदों की

माओं के चाक सीने पर भी

नमक छिड़कने से भी

बाज नही आते

विलाप, क्रंदन भी

अवसर हैं वोट की तिजारत के।

नेताओं

देश शर्मसार है तुम पर।

 



मीना पाठक

 …

Added by Meena Pathak on October 19, 2013 at 8:00am — 29 Comments

पराया धन (लघुकथा)

रमाकांत को पचास वर्ष की आयु में सात पुत्रियों के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ती हुयी थी | आज बेटे की छठी बड़े धूमधाम से मनाई जा रही थी | मित्रों और रिश्तेदारों से घर भरा हुआ था कहीं तिल रखने की भी जगाह नही थी घर में | महिलाएँ बधाई गीत गा रहीं थीं | रमाकांत सपत्नी खुशी से फूले नही समा रहे थे | बेटियाँ चुपचाप ये सब देख रहीं थीं | सबसे छोटी बेटी जो मात्र तीन वर्ष की थी अपनी सबसे बड़ी बहन की गोद में बैठी थी | सभी बहने देख रहीं थी कि कैसे सभी उसके नन्हें से भाई को गोद में ले कर स्नेह दिखा रहे थे | माँ…

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Added by Meena Pathak on October 11, 2013 at 5:36pm — 24 Comments

माँ तुम हो कितनी महान

माँ

गहरी सागर सी

ऊँची अनन्त सी

घुली पवन में

सुगंध सी

माँ!

हृदय तुम्हारा

कोमल फूलों सा

मिश्री सी वाणीं

लोरी, परियों की कहानी

माँ!

सुन्दर इतनी कि

अप्सराएँ शर्माएँ

आँचल में तुम्हारे

सागर ममता का

लहराये

महानता में ईश्वर भी

पीछे रह जाए

माँ!

स्पर्श में तुम्हारे

मिलता असीम सुख

हृदय से लग के

मिटता संताप, दुःख

माँ!

 तुम मेरी…

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Added by Meena Pathak on October 6, 2013 at 9:30am — 21 Comments

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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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