इक दिया चाहिए रोशनी के लिए
बालता हूं जिगर मैं इसी के लिए
रोटी कपड़ा मकाँ की तरह साथियों
रौशनी लाज़मी हो सभी के लिए
वो भटकता हुआ इक मुसाफ़िर है ख़ुद
चुन रहे हो जिसे रहबरी के लिए
हौसला जिंदगी को ग़ज़ल ने दिया
मैं तो तैयार था ख़ुदकुशी के लिए
खैरियत से रहे सब हबीबो-अदू
मैं दुआ माँगता हूं सभी के लिए
मैं ग़मों को गले से लगाता रहा
लोग रोते रहे जब ख़ुशी के लिए
दोस्ती …
ContinueAdded by khursheed khairadi on October 17, 2014 at 3:00pm — 7 Comments
1.
नफरतों का सिलसिला चारों तरफ है
फिर चुनावों की हवा चारों तरफ है
दौर फिर हैवानियत का आ गया लो
आदमीयत गुमशुदा चारों तरफ है
है मुकर्रर दिन क़यामत का सुना था
हाँ इसी की इब्तदा चारों तरफ है
छिड़ गई है जंग फिर से भाइयों में
इक महाभारत नया चारों तरफ है
दानवों ने शोर कितना फिर मचाया
मौनधारी देवता चारों तरफ है
ज़िंदगी से भागकर जायें कहाँ हम
मौत से बढ़कर कज़ा चारों तरफ…
ContinueAdded by khursheed khairadi on October 13, 2014 at 10:30pm — 7 Comments
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