For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – November 2017 Archive (10)

अबोले स्वर

अबोले स्वर ...

कुछ शब्दों को

मौन रहने दो

मौन को भी तो

कुछ कहने दो

कोशिश करके देखना

एकांत पलों में

मौन तुम्हारे कानों में

वो कह जाएगा

जो तुम कह न सके

वो धड़कनों की उलझनें

वो अधरों की सलवटों में छुपी

मिलन के अनुरोध की याचना

वो अंधेरों में

जलती दीपक की लौ में

इकरार से शरमाना

बताओ भला

कैसे शब्दों से व्यक्त कर पाओगी

हाँ मगर

मौन रह कर

तुम सब कह जाओगी

चुप रह कर भी

अपनी साँसों से…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 27, 2017 at 8:25pm — 6 Comments

तेरे मेरे दोहे :

तेरे मेरे दोहे :

पथ को दोष न दीजिये , पथ के रंग हज़ार

प्रीत कभी पनपे यहां ,कभी विरह शृंगार!!१!!

दर्पण झूठ न बोलता ,वो बोले हर बार

पिया नहीं हैं पास तो, काहे करे सिँगार!!२!!

शर्म  न आए चूड़ियाँ ,शोर करें घनघोर

राज रात के कह गई, पुष्प गंध हर ओर!!३!!

जर्ज़र तन ने देखिये, ये पायी सौग़ात

निर्झर नैनों से गिरे,दर्द भरी बरसात!! ४!!

बन कर लहरों पर रहें, श्वास श्वास इक जान।

मिट कर भी संसार में ,हो अपनी…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 24, 2017 at 5:00pm — 8 Comments

अजल की हो जाती है....

अजल की हो जाती है....



ज़िंदगी

साँसों के महीन रेशों से

गुंथी हुई

बिना सिरों वाली

एक रस्सी ही तो है

जिसकी उत्पत्ति भी अंधेरों से

और विलय भी अंधेरों में होता है



ज़िंदगी

लम्हों के पायदानों पर

आबगीनों सी ख़्वाहिशों को

छूने के लिए

सांस दर सांस

चढ़ती जाती है

मौसम

अपने ज़िस्म के

इक इक लिबास को उतारते

ज़िंदगी को

हकीकत के आफ़ताब की

तपिश से रूबरू करवाने की

हर मुमकिन कोशिश करते हैं

मगर अफ़सोस…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 22, 2017 at 12:00pm — 12 Comments

बंद किताब ...

बंद किताब ...

ठहरो न !

थोड़ी देर तो रुक जाओ

अभी तो रात की स्याही बाकी है

सहर की दस्तक से घबराते हो

प्यार करते हो

और शरमाते हो

कभी नारी मन के

सागर में उतर के देखो

न जाने कितने गोहर

सीपों में

किसी के लम्स के मुंतज़िर हैं

देहाकर्षण के परे भी

एक आकर्षण होता है

जहां भौतिक सुख के बाद का

एक दर्पण होता है

नशवरता से परे

अनंत में समाहित

अमर समर्पण होता है

पर रहने दो

तुम ये…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 20, 2017 at 1:30pm — 14 Comments

मधुर दोहे :

मधुर दोहे :

मन के मधुबन में मिले, मन भ्र्मर कई बार।
मूक नयन रचते रहे, स्पंदन का संसार।।

थोड़ा सा इंकार था थोड़ा सा इकरार।
सघन तिमिर में हो गयी , प्रणय सुधा साकार।।

बाहुपाश से देह के, टूटे सब अनुबंध।
स्वप्न सेज महका गयी ,मधुर बंध की गंध।।


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 9:22pm — 12 Comments

३००वीं कृति .... श्रृंगार दोहे ...

३००वीं कृति .... श्रृंगार दोहे ...

मन चाहे करती रहूँ , दर्पण में शृंगार।
जब से अधरों को मिला, अधरों का उपहार।1।

अब सावन बैरी लगे, बैरी सब संसार।
जब से कोई रख गया, अधरों पे अंगार।2।

नैंनों की होने लगी , नैनों से ही रार।
नैन द्वन्द में नैन ही, गए नैन से हार।3।

जीत न चाहूँ प्रीत में , मैं बस चाहूँ हार।
'दे दे मेरी देह को', स्पर्शों का शृंगार।4।

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on November 13, 2017 at 8:00pm — 14 Comments

पीला माहताब ...

पीला माहताब ...

ठहरो न !

बस

इक लम्हा

रुक जाओ

मेरे शानों पे

जरा झुक जाओ

मेरे अहसासों की गठरी को

जरा खोलकर देखो

जज्बातों के ज़जीरों पे

हम दोनों की सांसें

किस क़दर

इक दूसरे में समाई हैं

मेरे नाज़ार जिस्म के

हर मोड़ पर

तुम्हारी पोरों के लम्स

मुझे

तुम्हारे और करीब ले आते हैं

थमती साँसों में भी

मैं तुम्हारी नज़रों की नमी से

नम हुई जाती हूँ

देखो

वो अर्श के माहताब को

हिज़्र…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 11, 2017 at 8:33pm — 10 Comments

गुस्ताखियाँ....

गुस्ताखियाँ....

शानों पे लिख गया कोई इबारत वो रात की। 
...महकती रही हिज़ाब में शरारत वो रात की। 
......करते रहे वो जिस्म से गुस्ताखियाँ रात भर -
..........फिर ढह गयी आगोश में इमारत वो रात की।

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on November 7, 2017 at 8:22pm — 10 Comments

उनकी यादों की ....

उनकी यादों की ....

ये

कैसे उजाले हैं

रात

कब की गुजर चुकी

दूर तलक

आँखों की

स्याही बिखेरते

तूफ़ां से भरे

आरिज़ों पर ठहरे

ये

कैसे नाले हैं

शब् के समर

आँखों में ठहरे हैं

लबों की कफ़स में

कसमसाते

संग तुम्हारे जज़्बातों के

लिपटे

कुछ अल्फ़ाज़

हमारे हैं

हर शिकन

चादर की

करवटों की ज़ुबानी है

जुदा होकर भी

अब तलक

ज़िंदा हैं हम

ख़ुदा कसम

ये…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 4, 2017 at 8:30pm — 10 Comments

मात-पिता पर स्वतंत्र दोहे :

मात-पिता पर स्वतंत्र दोहे :

मात-पिता का जो करें, सच्चे मन से मान। 

उनके जीवन का करें , ईश सदा उत्थान !!1!!

जीवन में मिलती नहीं ,मात-पिता सी छाँव। 

सुधा समझ पी लीजिये , धो कर उनके पाँव!!2!!

मात-पिता का प्यार तो,होता है अनमोल। 

उनकी ममता का कभी, नहीं लगाना मोल !!3!!

बच्चों में बसते  सदा, मात पिता के प्राण। 

बिन उनके आशीष के, कभी न हो कल्याण!!4!!

सुशील…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 2, 2017 at 12:30pm — 11 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service