(छंद - दुर्मिल सवैया)
जब मौसम कुंद हुआ अरु ठंड की पींग चढी, फहरे फुलकी
कटकाइ भरे दँत-पाँति कहै निमकी चटखार धरे फुलकी
तब जीभ बनी शहरी नलका, मुँह लार बहे, लहरे…
Added by Saurabh Pandey on December 31, 2011 at 2:00pm — 58 Comments
Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 8:42am — 8 Comments
आत्मविस्मरण
विद्युत सी तरंग ,
कम्पन का भूकंप ,
स्पर्श नहीं आग !
मन से तन तक जाग !
सांसों में उच्छ्वास,
एक एहसास ...
होश नहीं,
जान बही !
कम्पित होठों की प्यास,
एक एहसास ...
हाथों में नर्म बारूद,
बारूद मुख में,
विस्फोट नस नस में !
बढ़ी प्यास,
एक एहसास ...
रिक्तता उभय ओर,
पूर्णता पे जोर,
साँसों का…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on December 28, 2011 at 4:32pm — 2 Comments
बढ़ गई तिश्नगी मेरे दिल की,
आग सी जल गई मेरे दिल की।
वस्ल में कशमकश जगा बैठी,
धड़कनें खौलती मेरे दिल की।
फासले थे तो पुरसुकूँ दिल था,
साँस मिल के रुकी मेरे दिल की।
उसकी पलकें हया से हैं झिलमिल,
जूँ ही क़ुरबत मिली मेरे दिल की।
कँपकपाते लबों पे नाम आया,
फाख्ता है गली मेरे दिल की।
अब हमें रोकना है नामुमकिन,
धड़कनें कह रही मेरे दिल की।
फासले कुरबतों में यूं बदले,
मिल गई हर खुशी मेरे दिल की।
Added by इमरान खान on December 19, 2011 at 8:00am — 3 Comments
Added by Mukesh Kumar Saxena on December 17, 2011 at 7:27pm — 3 Comments
वो पल सबसे अच्छे थे
जो गुज़रे थे तेरी बाहों में ।
खयालों में उन पलों को जी लेती हूँ
उन सांसों की सरगम से
मन को भिगो लेती हूँ
वो पल वापस नहीं लोटेंगे, मुझे पता है
उन स्मृतियों से आँखों को
नम…
ContinueAdded by mohinichordia on December 17, 2011 at 3:30pm — 3 Comments
तुम्हे शिकायत है
इस गहरे अँधेरे से ,
पर क्या तुमने कोशिश की
एक दिया जलाने की ?
या मेरे हाथों से हाथ मिलाकर
बनाया कोई सुरक्षा घेरा
कुछ जलते दीयों को
हवा से बचाने के लिए ?
नही न ?
कोई बात नहीं !
अभी सूखा नही है
समय का फूल !
चलो ढूँढे !
समंदर में डूबे सूरज को ,
इकठ्ठा करें
एक मुट्ठी धूप ,
उछाल दें पर्वतों पर ,
घाटियों में भी !
खिला…
ContinueAdded by Arun Sri on December 16, 2011 at 12:30pm — 26 Comments
लाख चाहकर भी मुझे न तुम बुझाओगे
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 16, 2011 at 12:30pm — 12 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 16, 2011 at 11:00am — 2 Comments
माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,
.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |
अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |
पढने वालों के लिए इम्तहाँ हूँ मैं |
.
चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा…
ContinueAdded by Nazeel on December 15, 2011 at 12:00pm — 4 Comments
जब कभी भी आजमाया जायेगा
आदमी औकात पर आ जायेगा
शख्सियत औ कद बड़ा जिस का मिला
वो यकीनन बुत बनाया जायेगा
क़ैद कर मेरी सहर की रोशनी
भोर का तारा दिखाया जायेगा
जिद पे गर बच्चा कोई आ ही गया
चाँद थाली में सजाया जायेगा
गर वो वादों पर यकीं करने लगे
उस से रोज़ी पर न जाया जायेगा
फ़र्ज़दारी का सिला जो दे चुके
कत्लगाहों में बसाया जायेगा
ये जहां तो इक मुसलसल मांग…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on December 8, 2011 at 11:00am — 7 Comments
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