2122 – 1122 – 1122 - 22
केश विन्यास की मुखड़े पे घटा उतरी है
या कि आकाश से व्याकुल सी निशा उतरी है
इस तरह आज वो आई मेरे आलिंगन में
जैसे सपनों से कोई प्रेम-कथा उतरी है
ऐसे उतरो मेरे कोमल से हृदय में प्रियतम
जैसे कविता की सुहानी सी कला उतरी है
मेरे विश्वास के हर घाव की संबल जैसे
तेरे नयनों से जो पीड़ा की दवा उतरी है
पीर ने बुद्धि को कुंदन-सा तपाया होगा
तब कहीं जाके हृदय में भी…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 8:30pm — 40 Comments
Added by Samar kabeer on December 25, 2016 at 11:00pm — 36 Comments
अक्षय गीत ....
मैं हार कहूँ या जीत कहूँ ,या टूटे मन की प्रीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय ,मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
मैं पग पग आगे बढ़ता हूँ
कुछ भी कहने से डरता हूँ
पीर हृदय की कह न सकूं
बन दीप शलभ मैं जलता हूँ
शशांक का विरह गीत कहूँ,या रैन की निर्दयी रीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय , मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
अतृप्त तृषा है. घूंघट में
अधरों की हाला प्यासी है
स्वप्न नीड़ पर नयनों के…
Added by Sushil Sarna on December 22, 2016 at 6:00pm — 19 Comments
"हे परवरदिगार! ये तूने मुझे आज कैसे इम्तिहां में डाल दिया ?" उसने पीछे लेटे लगभग बेहोश, युवक को एक नजर देखते हुए हाथ इबादत के लिए उठा दिए।
...... रात का दूसरा पहर ही हुआ था जब वह सोने की कोशिश में था कि 'कोठरी' के बाहर किसी के गिरने की आवाज सुनकर उसने बाहर देखा, घुप्प अँधेरे में दीवार के सहारे बेसुध पड़ा था वह अजनबी। देखने में उसकी हालत निस्संदेह ऐसी थी कि यदि उसे कुछ क्षणों में कोई सहायता नहीं मिलती तो उसका बचना मुश्किल था। युवक की हालत देख वह उसके कपडे ढीले कर उसे कुछ आराम की स्थिति…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on December 20, 2016 at 10:30pm — 23 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on December 7, 2016 at 5:08pm — 8 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 6, 2016 at 3:52pm — 18 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 4, 2016 at 6:30am — 15 Comments
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