कटु-मधु
कुछ भींगी यादें
लेकर आई
हर दुपहर
ढूंढा जब भी
नया ठिकाना
पहुंच गई
लेकर नश्तर
कमतर जिनको आंक रहे थे
कर गए आज मुझे बेघर
घुटने भर की
आशा लेकर
उड़ा विहग
जब भी खुलकर
काली स्याही
लेकर दौड़े
लिए पंख
धूसर-धूसर
हमने जिनको गले लगाया
कर गए वे जीना दूभर
Added by राजेश 'मृदु' on December 21, 2012 at 2:00pm — 6 Comments
हे देह लता बन शरद घटा
पर देख जरा यह ध्यान रहे
पथ है अपार भीषण तुषार
हे पथिक पंथ का ज्ञान रहे
मन भेद भरे नित चरण गहे
तन मूल धूल यह भान रहे
यौवन सम्हार छलना विचार
निर्लिप्त दीप्त बस प्राण रहे
यह नृत्य गान भींगा विहान
छाया प्रमाण खम ठोंक कहे
'गढ़ नेह-मोह रच दूं विछोह
जो लेश मात्र अंजान रहे'
तज दर्प दंभ हैं ये भुजंग
आभा अनूप नित तूम रहे
दस द्वार ज्वार करता…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on December 12, 2012 at 2:54pm — 5 Comments
तुमको लिखते हाथ कांपते
अक्सर शब्द सिहरते हैं
तुम क्या जानो तुमसे मिलकर
कितने गीत निखरते हैं
कर लेना सौ बार बगावत
पल भर आज ठहर जाओ
तेरा-मेरा आज भूलकर
चंदन-पानी कर जाओ
तुम बिन मेरा सावन सूखा
बादल खूब गरजते हैं
देख रहे जो झिलमिल लडि़यां
बहते अश्क लरजते हैं
कैसे लिख दूं बदन तुम्हारा
बड़ी कश्मकश है यारा
बदनाम चमन अंजाम सनम
कलम बिगड़ती है…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on December 11, 2012 at 12:34pm — 12 Comments
तेरे वादे कूट-पीस कर
अपने रग में घोल रही हूं
खबर सही है ठीक सुना है
मैं यमुना ही बोल रही हूं
पथ खोया पहचान भुलाई
बार-बार आवाज लगाई
महल गगन से ऊंचे चढ़कर
तुमने हरपल गाज गिराई
मेरे दर्द से तेरे ठहाके
जाने कब से तोल रही हूं
लिखना जनपथ रोज कहानी
मैं जख्मों को खोल रही हूं
ले लो सारे तीर्थ तुम्हारे
और फिरा दो मेरा पानी
या फिर बैठ मजे से लिखना
एक थी यमुना खूब था पानी
बड़े यत्न से तेरी…
Added by राजेश 'मृदु' on December 6, 2012 at 2:00pm — 17 Comments
आज नहीं स्पंदन तन में
क्षुधा-उदर भी रीते है
स्निग्ध शुभ्र वह प्रभा विमल
मुझको खूब सुभीते हैं
देह झरी अवसाद झरे
व्यथा-कथा के स्वाद झरे
किरण-किरण से घुली मिली
Added by राजेश 'मृदु' on December 5, 2012 at 4:43pm — 7 Comments
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