सूखे पत्तों के ढेर में
उम्मीद का
एक अंकुर फूटा
सूखे पत्ते मानो,
लाशें हैं
लाश हारे हुये लोगों की
लाश,
पराधीनता को किस्मत समझ
डर-डर के जीने वालों की
वो अंकुर है
भाग्योदय का
कीचड़ में उतर
परजीवियों को
साफ कर
समाज से
बीमारी हटाने वालों का
जो एक ज़र्रा था कल तक
आज
ज़माना उसकी चमक देख रहा है
अपनी नन्हीं आँखें खोल
मानो, कह रहा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 30, 2013 at 10:52am — 32 Comments
2122 1122 22/112
आँधी से उजड़ा शजर लगता है
वो बुलन्द अब भी मगर लगता है
सिर्फ किरदार नये हैं उसके
इक पुराना वो समर लगता है
बेकरानी में कहीं गुम शायद
इक बियाबान में घर लगता है
वो कहीं शिद्दते- तूफ़ाँ तो नही
रास्ता छोड़ अगर लगता है
पत्थरों को जो मुजस्सम करे वो
तेरे हाथों में हुनर लगता है
काँच का दिल है ज़बाँ पे पत्थर
बच के जाऊँ मुझे डर लगता…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 26, 2013 at 12:00pm — 34 Comments
“एक पोता भी नही दे सकी कलमुंही” वार्ड में सास की आवाज़ गूँजी,
इतने में अंदर आते हुये डॉक्टर ने जब ये सुना तो कहा- “पति के शरीर में एक्स- वाई(X-Y) क्रोमोसोम्स होते हैं, पत्नि के शरीर में एक्स-एक्स(X-X) क्रोमोसोम्स होते हैं, पति का वाई(Y) क्रोमोसोम पत्नि के एक्स(X) क्रोमोसोम से मिलता है तो बेटा होता है, पति का एक्स(X) क्रोमोसोम पत्नि के एक्स(X) क्रोमोसोम से मिलता है तो बेटी होती है l
पता नही आपके क्या समझ में आया? लेकिन इतना सच जान लीजिये आपको पोता नही मिला उसका पूरा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 24, 2013 at 10:30am — 38 Comments
दिन भर के सफर का
थका हुआ सूरज, मानो..
ज़मीं की सेज़ पर,
लहरों के झूले में,
चाँदनी की चादर ओढ़े
सबकुछ भूल के,
सोने जा रहा हो,
लहराते हुये लहरो में,
मानो,
कह रहा है
मेरे दोस्तो
विदा, फिर मिलेंगे सुबह...
मैं चला
होती है रात विश्राम को,
थकान मिटाने को,
चलें सफर में
रात के साथ...
पिछला ग़म भुलाने को
चलो
सुबह एक नई शुरूआत करेंगे
-मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 18, 2013 at 10:30am — 17 Comments
2122 -1212- 112
कट ही जाये अगर ज़बान भी क्या
फिर मिलेगा हमें वो मान भी क्या
आदमीयत के मोल जो मिली हो
दोस्तो ऐसी कोई शान भी क्या
मेरे पैरों में आज पंख लगे
अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या
छोड दें गर ज़मीन अपने लिये
ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या
और के काम आ सके न कभी
ऐसा इंसान का है ज्ञान भी क्या
भाग के गर मुसीबतों से कहीं
बच ही जाये तो ऐसी जान भी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 16, 2013 at 10:00am — 40 Comments
22- 1212- 1122
हर रात ख़्वाब के मैं सफ़र में
इक सिर्फ तुझको देखूँ डगर में
कुछ आज मखमली सी लगी धूप
क्या बात है न जाने सहर में
अंगारों पे चला मैं सहम के
इक हौसला भी था मेरे डर में
यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग
है मेरा नाम आज खबर मे
हर शै पे हर मुकाम पे तू थी
तन्हा हुआ न तेरे नगर में
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2013 at 1:34pm — 44 Comments
एक बार हमें भी लगा कि हमें शायर बनना चाहिये हमने शुरुआत की, हमने शुअरा को पान खाते देखा तो हमें लगा यह भी शायर बनने के लिये ज़रूरी है सो हमने शुरुआत यहीं से की l
आनन फानन कुछ अशआर लिख मारे और छपवाने के लिये मशहूर अखबार के दफ़्तर गये जहाँ हमें हमारी शख़्सियत को देखते हुये संपादक से मिलने का सौभाग्य मिला l
संपादक महोदय ने ऊपर से नीचे तक हमें देखा और हमारे हाथ से लेकर हमारी रचनाये पढ़ने के बाद संपादक महोदय ने कुछ कहने की भी जहमत नही उठाई, वो अपने मनहूस लैपटॉप पर कोई फिल्म…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 4, 2013 at 9:00am — 28 Comments
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