इन आँखो में , पलते सपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
दुनिया सबकी ,फिर अपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
खुशी , प्यार , अपनापन , और सुक़ून की चाह बराबर
अपनो से तक़रार और फिर मनुहार भरी इक आह बराबर
हंसता है जब - जब तू , जिन जिन बातों पे हंसता हूँ मैं भी
तूँ रोए जबभी , तो मैं भी रो दूँ ,
आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या
तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को
मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले…
Added by ajay sharma on December 31, 2013 at 1:00am — 11 Comments
वो भी इक , अगर बे-ईमान हो जाए
ये बस्ती उम्मीद की , वीरान हो जाए
इबादतगाह बन जाए , ये दुनिया सारी
हर इक आदमी अगर इंसान हो जाए
झुग्गियों की क़िस्मत भी जगमगा उठे
इक खिड़की भी अगर , रोशनदान हो जाए
फ़िज़ायों में इबादतपसंद है , कोई ज़रूर
वरना ऐसे ही नहीं , कोई अज़ान हो जाए
साल-ये-नौ पर , दुआ है मेरी , ये…
Added by ajay sharma on December 26, 2013 at 11:30pm — 7 Comments
अब तक तेरे पास रहा है
नतीज़तन वो ख़ास रहा है
हिचकी , हिचकी केवल हिचकी
वोआज मौन उपवास रहा है
छुयन का उसकी असर ये देखो
पतझड़ में मधुमास रहा है
मेरा ख्वाब है उसके दिल में
मुझको ये अहसास रहा है
कभी है गहना हया ये उसकी
कभी "अजय" लिबास रहा है
मौलिक व अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा
Added by ajay sharma on December 25, 2013 at 11:00pm — 11 Comments
ख्वाबों में मेरे आकर खुद ही तो बताते हो
है मुझसे मोहब्बत ये ज़माने से छुपाते हो
बढ़ जाती है क्यूँ धड़कन कभी दिल से ये पूछा है
रुक जाते हो क्यूँ मिलकर कभी दिल से ये सोचा है
फिर भी मेरा ये इश्क क्यूँ किताबी बताते हो
ये दिल का मसअला है , दिल से ही ये सुलझेगा
ज़ज़्बात की बातों से , ये और भी उलझेगा
उलफत भी है मुझसे और मुझको ही सताते हो
महफ़िल में हज़ारों की , तन्हाई में रहते हो
कहते हो नही फिर भी क्या-क्या…
Added by ajay sharma on December 19, 2013 at 11:24pm — 9 Comments
साँसें लम्हों का क़र्ज़ मुझे बाँटती रहीं
ज़ख़्मों पे ख्वाहिशों के दर्द टाँकती रहीं
सोचा था कोशिशों को मिलेगी तो कहीं छाँव
क़िस्मत की मुठ्थियाँ ये जलन बाँटती रहीं
बच्चों की तरह बिल्कुल मिट्टी की स्लेट पर
हाथों की लकीरें भी वक़्त काटती…
Added by ajay sharma on December 13, 2013 at 10:34pm — 5 Comments
ग़म ए दौरा से बेख़बर हूँ मैं
निरंतर बह रहा हूँ समंदर हूँ मैं
सफ़र का बोझ उठाए हुए परिंदों की
थकन जो बाँट ले वो खंडहर हूँ मैं
ले ले इम्तहाँ मेरा कोई तूफ़ा भी अगर चाहे
ज़ॅमी पे सब्र की ज़िद का इक घर हूँ मैं
गमों के काफिलों की राह मैं "अजय"
उम्मीद का इक पत्थर हूँ मैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by ajay sharma on December 13, 2013 at 9:30pm — 6 Comments
कुछ तो बात रही होगी ही ,वरना तुमसे रूठा क्यूँ है
हाथों में हर दम रहता था , वही खिलौना टूटा क्यूँ है
तुमने तो लिखा था मुझको सारी कसमें हैं उससे ही
अब वो कसमें कोरी कैसे , अब वो बोलो झूंटा क्यूँ है
हर पन्ने पर नाम लिखा था हर पंक्ति मे ज़िक्र था उसका
ज़िल्द बची क्यूँ उस क़िताब की , आख़िर वो ही छूटा क्यूँ है
जिसका मन मंदिर था तेरा , मूरत थी आराधन वंदन
जिसकी ख़ातिर व्रत रखे थे , वही प्रसाद अब जूठा क्यूँ है
जिससे ही…
ContinueAdded by ajay sharma on December 3, 2013 at 10:30pm — 2 Comments
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