For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आशीष यादव's Blog – December 2019 Archive (4)

सच सच बोलो आओगी ना

सच सच बोलो आओगी ना

जब सूरज पूरब से पश्चिम

तक चल चल कर थक जाएगा

और जहाँ धरती अम्बर से

मिलती है उस तक जाएगा

चारो ओर सुनहला मौसम

और सुनहली लाली होगी

और लौटते पंछी होंगें

खेत-खेत हरियाली होगी 

 

दिन भर के सब थके थके से

अपने घर को जाते होंगे

कभी झूम कर कभी मन्द से

पवन बाग लहराते होंगे 

 

तुम भी उसी बाग के पीछे

आकर उसी आम के नीचे

झूम-झूम कर मेरे ऊपर

तुम खुद को लहराओगी ना

सच सच बोलो…

Continue

Added by आशीष यादव on December 22, 2019 at 10:30pm — 4 Comments

फ़लक पे चाँद ऊँचा चढ़ रहा है


फ़लक पे चाँद ऊँचा चढ़ रहा है।
तेरी यादों में गोते खा रहा हूँ
हवा हौले से छूकर जा रही है।
तेरी खुशबू में भीगा जा रहा हूँ।


लिपट कर चाँदनी मुझसे तुम्हारे
बदन का खुशनुमा एह्सास देती
कभी तन्हा अगर महसूस होता
ढलक कर गोद में एक आस देती


नहीं हो तुम मगर ये सब तुम्हारे
यहाँ होने का एक जरिया बने हैं
समा पाऊँ तेरी गहराइयों में
हवा खुशबू फ़लक दरिया बने हैं। 

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by आशीष यादव on December 20, 2019 at 10:13am — 2 Comments

तुमने उसकी याद दिला दी

जाने अनजाने में कितनी

जिसे सोचते रातें काटीं

लम्हों-लम्हों में किश्तों में

जिनको अपनी साँसें बाटीं

कभी अचानक कभी चाहकर

जिसे ख़यालों में लाता था

और महकती मुस्कानों पर

सौ-सौ बार लुटा जाता था 

उसकी बोली बोल हृदय में

तुमने जैसे आग लगा दी

तुमने उसकी याद दिला दी



अँधियारी रजनी में खिलकर

चम-चम करने लगते तारे

इक चंदा के आ जाने से

फ़ीके पड़ने लगते सारे

शीतल शांत सजीवन नभ में

रजत चाँदनी फैलाता था

तम-गम में भी…

Continue

Added by आशीष यादव on December 20, 2019 at 10:00am — 4 Comments

तुम पर कोई गीत लिखूँ क्या

तुम पर कोई गीत लिखूँ क्या

तुम सुगंध खिलते गुलाब सी

सुन्दर कोमल मधुर ख्वाब सी

मैं मरुथल का प्यासा हरिना

ललचाती मुझको सराब* सी

तुमको पाने की चाहत में

अब तक मचल रही हैं साँसें

तुम ही कह दो तुमको अपने

प्राणों का मनमीत लिखूँ क्या

तुम पर कोई गीत लिखूँ क्या

तुम शीतल हो चंदन वन सी

तुम निर्मल-जल, तुम उपवन सी

तुम चंदा सी और चाँदनी-

सी तुम हो, तुम मलय-पवन सी

नयन मूँद कर तुमको देखूँ…

Continue

Added by आशीष यादव on December 15, 2019 at 3:00pm — 2 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अच्छे मिसरे बाँधे हैं अजय जी। परन्तु थोड़ा सा और तराशा जाए तो सभी अशआर और ज़ियादा चमकने लगेंगे। आपकी…"
10 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"सजावट से रौनक बढ़ेगी भले हीबनेगा मकाँ  से  ये  घर धीरे धीरे// अच्छा शेर है! अच्छे…"
26 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अच्छी ग़ज़ल कही ऋचा जी। रदीफ़ की कठिनता ग़ज़लकार से और अधिक समय और मेहनत चाहती है। सभी मिसरो को और…"
36 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"सुलगता रहा इक शरर धीरे धीरेजलाता रहा वो ये घर धीरे धीरे// अच्छा मतला !! अन्य अशआर भी  अच्छे…"
44 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"ये दुनिया है दरिया उतर धीरे धीरे चला जा इधर से उधर धीरे धीरे वो नज़रें झुकाए अगर धीरे धीरे उतर ही न…"
1 hour ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"निखर जायेंगे कम हुनर धीरे-धीरेअच्छा कहा अजेय जी         "
2 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"नमस्कार आभार आपने ग़ज़ल पर चर्चा की।  पहुंचे नहीं पहुंचें लिखा है अर्थात पहुंचेंगे। फिर भी…"
2 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण जी    "
2 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"जी "
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"बहा ले न जाए सँभल तेज़ धाराजहाँ उठ रहा है भँवर धीरे-धीरे।२। आपकी ही की बात और सरल शब्दों में तुझे…"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"हुआ आदमी जानवर धीरे-धीरे   जहाँ हो गया चिड़ियाघर धीरे-धीरे  लगा मानने…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"गिरह के शेर में 'जहाँ जल्दबाज़ी में पहुँचे थे कल तुम' कहना सहज होता।  रदीफ़ क़ाफ़िया…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service