कल ऐब की बस्ती में ख्वाबों का घर देखा
अदावत की सोहबत देखी शैदा बेघर देखा
दर्द नहीं मिट पाया यादों को तज़ा करके भी
जहाँ फकत फजीहत देखी माजी उधर देखा
हासिल हुई बेगारी मुझे मंजिल के…
Added by Bhasker Agrawal on February 3, 2011 at 4:55pm — 2 Comments
(आचार्य जी ने काफी व्यस्तता के वावजूद यह कृति इस परिवार हेतु भेजी है , बहुत बहुत धन्यवाद ...एडमिन)
षडऋतु - दर्शन…
ContinueAdded by Admin on February 3, 2011 at 9:51am — 3 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on February 2, 2011 at 6:00pm — 5 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on February 2, 2011 at 5:30pm — 1 Comment
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on February 2, 2011 at 5:00pm — 1 Comment
उरों के इस अंजुमन में द्वन्द ना है
(मधु गीति सं. १४७९, दि. २५ अक्टूवर, २०१०)
उरों के इस अंजुमन में द्वन्द ना है, स्वरों के इस समागम में व्यंजना है;
छंद का आनन्द उद्गम स्रोत सा है, लय विलय का सुर तरे भव भंगिमा है.
…
ContinueAdded by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:56pm — 1 Comment
चिलचिलाती धूप में तुम याद आये
मधु गीति सं. १५९६ , रचना दि. ३१ दिसम्वर, २०१०)
चिलचिलाती धूप में तुम याद आये, झिलमिलाती रोशनी में नजर आये;
किलकिलाती दुपहरी में दिल लुभाए, तिलमिलाती…
ContinueAdded by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:50pm — 1 Comment
मग बुहारूँ जग निहारूँ प्रीति ढालूँ
(मधु गीति सं. १५९७, दि. ३१ दिसम्वर, २०१०)
मग बुहारूँ जग निहारूँ प्रीति ढालूँ, त्राण तरजूँ मनहि बरजूँ प्राण परसूँ;
श्याम हैं मधु राग भरकर गीत गाये, प्रीति की भाषा लिये…
ContinueAdded by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:46pm — 1 Comment
क्यों किलसते हो प्रलय के गीत सुनकर
(मधु गीति सं. १६०४, रचना दि. २ जनवरी, २०११)
क्यों किलसते हो प्रलय के गीत सुनकर, क्यों विलखते हो विलय का राग सुनकर;
दया क्यों ना कर रहे जग जीव पर तुम, हृदय क्यों ना ला रहे तुम…
ContinueAdded by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:44pm — 3 Comments
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छान्दसिक आनन्द की गति में हुलस कर
(मधु गीति सं. १६२२, दि. ७ जनवरी, २०११)
छान्दसिक आनन्द की गति में हुलस कर, मिलन की अभिव्यंजना से विदेही उर;…
Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:42pm — No Comments
ग़ज़ल : - बनारस के घाट पर
कुछ था ज़रूर खास बनारस के घाट पर ,
धुंधला दिखा लिबास बनारस के घाट पर |
घर था हज़ार कोस मगर फ़िक्र साथ थी ,
मन हो गया उदास बनारस के घाट पर |
संज्ञा क्रिया की संधि में विचलित हुआ ये मन
गढ़ने लगा समास बनारस के…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 1, 2011 at 9:00am — 13 Comments
ग़ज़ल :- डूब रहे से नाव की बातें
डूब रहे से नाव की बातें ,
थोथी है बदलाव की बातें |
राजनीति के दुर्दिन आये ,
सब करते अलगाव की बातें |
…
ContinueAdded by Abhinav Arun on January 30, 2011 at 10:30pm — 3 Comments
Added by Abhinav Arun on January 30, 2011 at 10:00pm — 2 Comments
एक अनजाना सा घर, एक अनजानी डगर ..
ठान के ,हूँ साथ तेरे,कितना भी हो कठिन ये सफ़र..
पार भव कर ही लेंगे साथ मेरे तुम हो अगर..
छोड़ना मत हाथ मेरा तुम कभी वो हमसफ़र..
प्यार से सजाएंगे हम अपना ये प्रेम नगर..
करना नज़रंदाज़ मेरी गलती हो कोई अगर..
कोशिश तो बस ये मेरी, नेह में न हो कोई…
ContinueAdded by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 7:30pm — 8 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 12:30am — 5 Comments
Added by Rana Pratap Singh on January 29, 2011 at 5:00pm — 8 Comments
ओस की बूँद सी आँखों में सिमट आयी है...
फिर भी क्यों लब पे हंसी छाई है..
सांझ का धुंधलका मेरे आसपास सिमटा है..
जैसे मेरे ज़ेहन की परछाई है..
क्यों मिले थे तुम ? क्यों पास हम आये थे?
क्यों अनजान बन के ख्वाब सजाये थे?
एक पत्थर से वो ख़्वाबों का घर बिखरा है..
जो हम अनजाने थे तो पहचाने से क्यों थे ?…
ContinueAdded by Lata R.Ojha on January 28, 2011 at 11:00pm — 3 Comments
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सम्मानित सदस्यों
आप सभी को प्रणाम
जैसा की पहले ही अवगत कराया जा चुका है की "बह्र पहचानिए" कोई पहेली नहीं है, यह तो एक चर्चा है, इल्मे अरूज और आम आदमी की दुनिया में बरसों से चली आ रही खाई को पाटने की, इसी के तहत हमने पिछली बार आप सबको एक गीत सुनवाया था और…
Added by RP&VK on January 28, 2011 at 8:30pm — No Comments
Added by Veerendra Jain on January 28, 2011 at 11:45am — 12 Comments
पिताजी की डायरी से...
स्मृति में..
मेरे नगमे तुम्हारे लबो पर,
अचानक ही आते रहेंगें .
एक गुजरी हुई जिंदगी में ,
फिरसे वापस बुलाते रहेगें.
याद आयेगा तुमको सरोवर
और पीपल की सुन्दर ये छाया .
ये बिल्डिंग खड़ी याद होगी ,
जिसको यादों में हमने बसाया .
बरबस ये कहेंगे कहानी ,
और हम…
ContinueAdded by R N Tiwari on January 28, 2011 at 10:00am — 2 Comments
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