Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 5, 2017 at 4:51pm — 4 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 3, 2017 at 9:29am — 14 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 31, 2017 at 2:26pm — 4 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 18, 2017 at 7:44pm — 3 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 22, 2017 at 11:29am — 2 Comments
पिता धरा की शक्ति, धारणा के वाहक हैं।
माता धरा समान, सृष्टि की संचालक हैं।
दिया आपने जन्म, न उतरे ऋण की थाती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।
पिता धरातल ठोस, और मां ममता धारा।
पिता स्वयं वट वृक्ष, छांव मां ने पैसारा।
हम सब फल रसदार, मिष्ठता उनसे आती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2017 at 3:08pm — 8 Comments
लिपट चंद्रिका चंद्र, करें वे प्रणय परस्पर।
निरखें उन्हें चकोर, भाग्य को कोसें सत्वर।।
हाय रूप सुकुमार, कंचु अरुणाभा वाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥
व्याकुल हुए चकोर, मेघ चंदा को ढक ले।
रसधर सुन्दर अधर, हृदय कहता है छू ले।।
सीमा अपनी जान, लगे सब रीता खाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥
रहे उनीदे नैन, सजग अब निरखे उनको।
देख देख हरषाय, तृप्त करते निज मन को।।
हुए अधूरे आप, नहीं वह मिलने वाली।
स्वर्ग परी…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on November 28, 2016 at 10:30pm — 8 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 15, 2014 at 12:56pm — 7 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 7, 2014 at 7:52pm — 13 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 26, 2014 at 2:48pm — 8 Comments
नैतिकता के पतन से, फैला कंस प्रभाव॥
मात- पिता सम्मान नहि, नस नस में दुर्भाव॥
पश्चिम संस्कृति जी रहे, हम भूले निज मान।
कहते हम संतान कपि, जबकि हैं हनुमान॥
निज गौरव को भूलकर, बनते मार्डन लोग।
ये भी क्या मार्डन हुए, पाल रहे बस रोग॥
अपने घर में त्यक्त है, वैदिक ज्ञान महान।
महा मूढ़ मतिमंद हम, करते अन्य बखान॥
लौटें अपने मूल को, जो है सबका मूल।
पोषित होता विश्व है, सार बात मत भूल॥
मौलिक व अप्रकाशित
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 22, 2014 at 12:30pm — 16 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 19, 2014 at 12:00pm — 22 Comments
जाने कितने कर्ण जन्मते यहाँ गली फुटपाथों पर।
या गंदी बस्ती के भीतर या कुन्ती के जज्बातों पर॥
कुन्ती इन्हें नहीं अपनाती न ही राधा मिलती है।
इसीलिये इनके मन में विद्रोह अग्नि जलती है॥
द्रोण गुरु से डांट मिली और परशुराम का श्राप मिला।
जाति- पांति और भेदभाव का जीवन में है सूर्य खिला॥
सभ्य समाज में कर्ण यहाँ जब- जब ठुकराये जाते हैं।
दुर्योधन के गले सहर्ष तब- तब ये लगाये जाते हैं।
इनके भीतर का सूर्य किन्तु इन्हें व्यथित करता रहता।
भीतर ही भीतर इनकी…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 29, 2013 at 11:00am — 8 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 24, 2013 at 8:10am — 9 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 15, 2013 at 6:41pm — 2 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 15, 2013 at 3:15pm — 14 Comments
खट- खट की आवाज सुनकर गली के कुत्ते भौंकने लगे। चोर कुछ देर शांत हो गये। थोड़ी देर बाद फिर से खोदने लगे। कुत्ते फिर भौंकने लगे।
चोरों ने डंडा मारकर कुत्तों को भगाना चाहा, लेकिन कुत्ते निकले निरा ढीठ, वे और तेज भौंकने लगे। लाल मोहन ही क्या अब तो सारा मुहल्ला जाग चुका था । लेकिन किसी ने अपने बिस्तर से उठकर बाहर यह पता करने की ज़हमत नहीं उठायी कि कुत्ते भौंक क्यों रहे थे ।
सुबह-सुबह पूरे मुहल्ले में यह ख़बर आग बनी थी, लाल मोहन लुट चुका है।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2013 at 8:00am — 20 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 8, 2013 at 8:00pm — 17 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 7, 2013 at 1:33pm — 31 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 22, 2013 at 8:00pm — 22 Comments
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