जनाब अहमद फराज़ साहब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल 
 
 221 1221 1221 122
 
बुझते हुए दीये को जलाने के लिए आ
 आ फिर से मेरी नींद चुराने के लिए आ //१ 
 
 दो पल तुझे देखे बिना है ज़िंदगी मुश्किल
 मैं ग़ैर हूँ इतना ही बताने के लिए आ //२ 
 
 तेरे बिना मैं दौलते दिल का करूँ भी क्या 
 हाथों से इसे अपने लुटाने के लिए आ //३ 
 
 तेरा ये करम है जो तू आता…
Added by राज़ नवादवी on May 1, 2019 at 12:00am — 9 Comments
प्याज भी बोलते हैं- एक लघुकथा
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 हर कोई सब्ज़ी वाले से बड़ा प्याज माँगता है। कल मैं भी ठेलेवाले भाई से प्याज ख़रीदते समय बड़े प्याज माँग बैठा। तभी, बड़े प्याजों के बीच बैठे एक छोटे प्याज ने मुझसे कहा,
"भाई साहब, हर कोई बड़ा प्याज माँगता है, तो हमारा क्या होगा? हम भी तो प्याज हैं!" 
मैं सकपका गया, ये कौन बोल रहा है? प्याज? क्या प्याज भी बोलते हैं? तभी मैंने देखा वहीं पड़े कुछ बड़े प्याज आंनद…
Added by राज़ नवादवी on April 27, 2019 at 1:00pm — 7 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२ 
अपनी गरज़ से आप भी मिलते रहे मुझे 
ग़म है कि फिर भी आशना कहते रहे मुझे //१ 
दिल की किताब आपने सच में पढ़ी कहाँ 
पन्नों की तर्ह सिर्फ़ पलटते रहे मुझे //२ 
मिस्ले ग़ुबारे दूदे तमन्ना मैं मिट गया 
बुझती हुई शमा' सा वो तकते रहे मुझे //३ 
सौते ग़ज़ल से मेरी निकलती थी यूँ फ़ुगाँ 
महफ़िल में सब ख़मोशी से सुनते रहे मुझे…
Added by राज़ नवादवी on February 4, 2019 at 10:13am — 6 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२ 
मिलना नहीं जवाब तो करना सवाल क्यों 
मेरी ख़मोशियों पे है इतना मलाल क्यों //१
दामाने इंतज़ार में कटनी है ज़िंदगी 
मरने तलक है हिज्र तो होगा विसाल क्यों //२ 
यारों को कब पता नहीं कैसे हैं दिन मेरे
है जो नहीं वो ग़ैर तो पूछेगा हाल क्यों //३ 
जब है ज़रीआ कस्ब का कोई नहीं मेरा 
आसाईशों की चाह की फिर हो मज़ाल…
Added by राज़ नवादवी on February 3, 2019 at 12:09pm — 3 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२ 
आके तेरी निगाह की हद में मिला सुकूँ 
हल्क़े को वस्ते बूद की ज़द में मिला सुकूँ //१
थी रायगाँ किसी भी मुदावे की जुस्तजू 
दिल के मरज़ को दर्दे अशद में मिला सुकूँ //२
आशिक़ को अपनी जान गवाँ कर भी चैन था 
जलकर अदू को पर न हसद में मिला सुकूँ //३
दामे सुख़न की अपनी हिरासत को तोड़कर 
लफ़्ज़ों को ख़ामुशी की सनद में मिला सुकूँ…
Added by राज़ नवादवी on January 10, 2019 at 1:04am — 10 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ ११२/२२ 
अस्ल के बाद तो जीना है निशानी के लिए
ज़िंदगी लंबी है दो रोज़ा जवानी के लिए //१
यूँ ज़बां ख़ूब है ये तुर्रा बयानी के लिए
उर्दू मशहूर हुई शीरीं ज़बानी के लिए //२ 
लोग क्यों दीनी तशद्दुद के लिए मरते हैं 
जबकि जीना था उन्हें जज़्बे रुहानी के लिए //३ 
नफ़्स के झगड़े हैं ने'मत से भरी दुन्या में 
चंद रोटी के लिए तो, कभी पानी…
Added by राज़ नवादवी on January 6, 2019 at 1:18pm — 12 Comments
२२१२ १२१२ २२१२ १२ 
 
 नाकामे इश्क़ होके अपने दर पहुँच गया 
 सहरा पहुँच के यूँ लगा मैं घर पहुँच गया //१
 
 दिल टूटने की शह्र को ऐसी हुई ख़बर 
 दरवाज़े पे हमारे शीशागर पहुँच गया //२ 
 
 उसको भी मेरे होंठ की आदत थी यूँ लगी 
 साक़ी के हाथ मुझ तलक साग़र पहुँच गया //३ 
 
 जब भी हुई जिगर को तुझे देखने की चाह 
 ख़ुद चल के आँख तक तेरा मंज़र पहुँच गया…
Added by राज़ नवादवी on January 1, 2019 at 12:30pm — 13 Comments
2212 1212 2212 12 
 
 रुक्का किसी का जेब में मेरी जो पा लिया 
उसने तो सर पे अपने सारा घर उठा लिया //१
 
 लगने लगा है आजकल वीराँ ये शह्र-ए-दिल 
 नज्ज़ारा मेरी आँख से किसने चुरा लिया //२ 
 
 ममनून हूँ ऐ मयकशी, अय्यामे सोग में 
 दिल को शिकस्ता होने से तूने बचा लिया //३ 
 
 सरमा ए तल्खे हिज्र में सहने के वास्ते 
 दिल में बहुत थी माइयत, रोकर…
Added by राज़ नवादवी on December 26, 2018 at 4:00pm — 20 Comments
2212 1212 2212 12 
आती नहीं है नींद क्यों आँखों को रात भर
हमने तो उनसे की थी बस दो टूक बात भर //१
दिल में न और ज़िंदगी की ख्व़ाहिशात भर 
हस्ती है सबकी नफ़सियाती पुलसिरात भर //२ 
पढ़ ले तू मेरी आँख में जो है लिखा हुआ 
गरचे किताबे दिल नहीं है काग़ज़ात भर //३ 
हर आदमी में मौत की ज़िंदा है एक लौ
तारीकियों की बज़्म ये रौशन है रात भर //४…
Added by राज़ नवादवी on December 25, 2018 at 12:17pm — 15 Comments
मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 
 
 न हो जब दिल में कोई ग़म तो फिर लब पे फुगाँ क्यों हो 
 जो चलता बिन कहे ही काम तो मुँह में ज़बाँ क्यों हो //१
 
जहाँ से लाख तू रह ले निगाहे नाज़ परदे में 
तसव्वुर में तुझे देखूँ तो चिलमन दरमियाँ क्यों हो //२ 
 
 यही इक बात पूछेंगे तुझे सब मेरे मरने पे 
 कि तेरे देख भर लेने से कोई कुश्तगाँ क्यों हो…
Added by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 11:30am — 19 Comments
२२१२ १२१२ २२१२ १२ 
हस्ती का मरहला सभी इक इक गुज़र गया 
मैं भी तमाशा बीन था, अपने ही घर गया //१
इश्वागरी के खेल से मैं यूँ अफ़र गया 
सारा जुनूने आशिक़ी सर से उतर गया //२
खोया न मैं हवास को आई जो नफ़्से मौत 
ज़िंदा हुआ मशामे जाँ, मैं जबकि मर गया //३ 
हैराँ हूँ अपने शौक़ की तब्दीलियों पे मैं 
नश्शा था तेरे हुस्न का, कैसे उतर गया //४…
Added by राज़ नवादवी on December 17, 2018 at 7:41pm — 8 Comments
2212 1212 2212 12 
 
 अच्छे बुरे का बार है सबके ज़मीर पे 
 ख़ुद को जवाब देना है नफ़्से अख़ीर पे //१ 
 
 रख ले मुझे तू चाहे जितना नोके तीर पे 
 मरने का ख़ौफ़ हो भी क्या दिल के असीर पे //२ 
 
 कुछ रह्म तो दिखा मेरे शौक़े कसीर पे 
 पाबंदियाँ लगा न दीदे ना-गुज़ीर पे //३ 
 
 यकता है इस जहान में क़ुदरत की हर मिसाल 
 तामीरे ख़ल्क़ मुन्हसिर है कब नज़ीर पे…
Added by राज़ नवादवी on December 14, 2018 at 4:00am — 10 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२ 
दिल मेरा ख़ाली नहीं ज्यों कस्रते आज़ार से 
है फुगाँ मजबूर अपनी फ़ितरते इसरार से //१
लाख समझाऊँ तेरी तब-ए-सितम को प्यार से 
तू मुकर जाता है अपने वादा-ए-इक़रार से //२ 
वस्ल की तश्नालबी बढ़ जाती है दीदार से 
कम नहीं फिर दिल ये चाहे सुहबते बिस्यार से //३ 
आ गए जब तंग हम हर वक़्त की गुफ़्तार से 
सीख ली हमने ज़ुबाने ख़ामुशी…
Added by राज़ नवादवी on December 14, 2018 at 3:51am — 8 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२ 
जह्र बनके काम करती है दवाई देख ली 
अच्छे अच्छों की भी हमने रहनुमाई देख ली //१
पीठ पीछे मर्तबा ए बे अदाई देख ली 
तेरी भी मेहमाँ नवाज़ी हमने, भाई देख ली //२ 
आरज़ी थी दो दिनों की जाँ फ़िज़ाई देख ली 
इश्क़ की ताबे जुनूने इब्तिदाई देख ली //३ 
दिन को सोना और शब की रत-जगाई देख ली 
मय की जो भी कैफ़ियत थी इंतिहाई देख ली…
Added by राज़ नवादवी on December 12, 2018 at 6:38pm — 2 Comments
2122 1122 1122 22/ 112
 
 बज़्मे अग्यार में नासूरे नज़र होने तक 
 क्यों रुलाता है मुझे दीदा-ए-तर होने तक //१
 
 कितने मुत्ज़ाद हैं आमाल उसके कौलों से 
 टुकड़े करता है मेरा लख़्ते जिगर होने तक //२ 
 
 गिर के आमाल की मिट्टी में ये जाना मैंने
 तुख़्म को रोज़ ही मरना है शज़र होने तक //३ 
 
 मौत का ज़ीस्त में मतलब है अबस हो जाना 
 ज़िंदा हूँ हालते…
Added by राज़ नवादवी on December 12, 2018 at 2:30pm — 13 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२ 
 
 ज़र्बे दिल तू दे, पे हम दिल की दवाई तो करें 
 हम तेरी ख़ू ए गुनह की मुस्तफ़ाई तो करें //१
 
 कह के दिल की बात किस्मत आज़माई तो करें 
 करते हों गर वो जो मुझसे कज अदाई तो करें //२ 
 
 नफ़रतों को ख़त्म कर दिल की सफ़ाई तो करें 
आप समझें गर हमें भी अपना भाई,तो करें //३ 
 
 गर मिलें हम, कुछ नहीं पर, ख़ुश अदाई तो करें 
 आप हमसे…
Added by राज़ नवादवी on December 8, 2018 at 3:00pm — 8 Comments
२२१२ २२१२ २२१२ १२ 
 
 जब से मैं अपने दिल का सूबेदार हो गया 
 सहरा भी मेरे डर से लालाज़ार हो गया //१
 
 छोड़ा जो तूने साथ, ख़ुद मुख्तार हो गया 
 तू क्या, ज़माना मेरा ख़िदमतगार हो गया //२
 
 आईन मेरा ग़ैर क्या बतलायेंगे मुझे 
 मैं ख़ुद ही अपना आइना बरदार हो गया //३
 
 गर बेमज़ा है आशिक़ी मेरे हवाले से 
 तू क्यों फ़साने में मेरे किरदार हो गया…
Added by राज़ नवादवी on December 6, 2018 at 3:00pm — 11 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२ 
कभी तो बख्त ये मुझपे भी मेहरबाँ होगा 
मेरी ज़मीन के ऊपर भी आस्माँ होगा //१
गवाह भी नहीं उसका न कुछ निशाँ होगा 
जो तेरे हुस्न के ख़ंजर से कुश्तगाँ होगा //२ 
हम एक गुल से परेशाँ हैं उसकी तो सोचो 
वो शख्स जिसकी हिफ़ाज़त में गुलसिताँ होगा //३ 
ये ख़ल्क हुब्बे इशाअत का इक नतीजा है 
गुमाँ नहीं था कि होना सुकूंसिताँ होगा…
Added by राज़ नवादवी on December 5, 2018 at 3:27pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
 
 बाग़पैरा क्या करे गुल ही न माने बात जब
 शम्स का रुत्बा नहीं कुछ, हो गई हो रात जब //१
 
 बाँध देना गाँठ में तुम गाँव की आबोहवा 
 शह्र के नक्शे क़दम पर चल पड़ें देहात जब //२
 
दोस्त मंसूबा बनाऊं मैं भी तुझसे वस्ल का
तोड़ दें तेरी हया को मेरे इक़दमात जब //३ 
 
 इक किरन सी फूटने को आ गई बामे उफ़ुक़ 
 रौशनी की जुस्तजू में खो गया…
Added by राज़ नवादवी on December 3, 2018 at 7:30pm — 7 Comments
2121 2121 2121 212
 
 उड़ रहे थे पैरों से ग़ुबार, देखते रहे
 वो न लौटे जबकि हम हज़ार देखते रहे //१ 
 
 ताब उसकी, बू भी उसकी, रंग भी था होशकुन 
 गुल को कितनी हसरतों से ख़ार देखते रहे //२ 
 
 हम तो राह देखते थे उनके आने की मगर
 वो हमारा सब्रे इन्तेज़ार देखते रहे //३
तोड़ते थे बेदिली से वो मकाने इश्क़, हम
टूटते मकाँ का इंतेशार देखते रहे //४ …
Added by राज़ नवादवी on December 2, 2018 at 3:00am — 8 Comments
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