ओ बी ओ मंच को 12वीं सालगिरह पर समर्पित ग़ज़ल (1222*4)
किये हैं पूर्ण बारह वर्ष ओ बी ओ बधाई है,
हमारे दिल में चाहत बस तेरी ही रहती छाई है।
मिला इक मंच तुझ जैसा हमें अभिमान है इसका,
हमारी इस जहाँ में ओ बी ओ से ही बड़ाई है।
सभी इक दूसरे से सीखते हैं और सिखाते हैं,
हमारी एकता की ओ बी ओ ही बस इकाई है।
लगा जो मर्ज लिखने का, दिखाते ओ बी ओ को ही,
उसी के पास इसकी क्यों कि इकलौती दवाई है।
तुझे शत शत 'नमन' मेरा बधाई…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 3, 2022 at 8:04am — 9 Comments
(शारदी छंद)
चले चलो पथिक।
बिना थके रथिक।।
थमे नहीं चरण।
भले हुवे मरण।।
सुहावना सफर।
लुभावनी डगर।।
बढ़ा मिलाप चल।
सदैव हो अटल।।
रहो सदा सजग।
उठा विचार पग।।
तुझे लगे न डर।
रहो न मौन धर।।
प्रसस्त है गगन।
उड़ो महान बन।।
समृद्ध हो वतन।
रखो यही लगन।।
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*शारदी छंद* विधान:-
"जभाल" वर्ण धर।
सु'शारदी' मुखर।।
"जभाल" = जगण भगण लघु
।2। 2।। । =7…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 18, 2021 at 4:01pm — 3 Comments
(पावन छंद)
सावन जब उमड़े, धरणी हरित है।
वारिद बरसत है, उफने सरित है।।
चातक नभ तकते, खग आस युत हैं।
मेघ कृषक लख के, हरषे बहुत हैं।।
घोर सकल तन में, घबराहट रचा।
है विकल सजनिया, पिय की रट मचा।।
देख हृदय जलता, जुगनू चमकते।
तारक अब लगते, मुझको दहकते।।
बारिस जब तन पे, टपकै सिहरती।
अंबर लख छत पे, बस आह भरती।।
बाग लगत उजड़े, चुपचाप खग हैं।
आवन घर उन के, सुनसान मग हैं।।
क्यों उमड़ घुमड़ के, घन व्याकुल…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 13, 2021 at 9:00am — 1 Comment
सायली (कोरोना)
आसुरी
कोरोना मगरूरी
कायम रखें दूरी
मास्क जरूरी
मजबूरी!
*****
महाकाल
कोरोना विकराल
देश पर भूचाल
सरकारी अस्पताल
बदहाल।
*****
चमगादड़ी
कोरोना जकड़ी
संकट की घड़ी
आफत बड़ी
पड़ी।
*****
भड़की
कोरोना कलंकी
चमगादड़ से फड़की
मासूमों की
सिसकी।
*****
लाचारी
कोरोना महामारी
भर रही सिसकारी
दुनिया…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 29, 2021 at 10:18am — 4 Comments
विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामना।
32 मात्रिक छंद "रस और कविता"
मोहित होता जब कोई लख, पग पग में बिखरी सुंदरता।
दाँतों तले दबाता अंगुल, देख देख जग की अद्भुतता।।
जग-ज्वाला से या विचलित हो, वैरागी सा शांति खोजता।
ध्यान भक्ति में ही खो कर या, पूर्ण निष्ठ भगवन को भजता।।
या विरहानल जब तड़पाती, धू धू कर के देह जलाती।
पूर्ण घृणा वीभत्स भाव की, या फिर मानव हृदय लजाती।।
जग में भरी भयानकता या, रोम रोम भय से कम्पाती।।
ओतप्रोत…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 21, 2021 at 11:44am — 4 Comments
212*
तीर नज़रों का उनका चलाना हुआ,
और दिल का इधर छटपटाना हुआ।
हाल नादान दिल का न पूछे कोई,
वो तो खोया पड़ा आशिक़ाना हुआ।
ये शब-ओ-रोज़, आब-ओ-हवा आसमाँ,
शय अज़ब इश्क़ है सब सुहाना हुआ।
अब नहीं बाक़ी उसमें किसी की जगह,
जिनकी यादों का दिल आशियाना हुआ।
क्या यही इश्क़ है, रूठा दिलवर उधर,
और दुश्मन इधर ये जमाना हुआ।
जो परिंदा महब्बत का दिल में बसा,
बाग़ उजड़ा तो वो बेठिकाना…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 30, 2019 at 5:49pm — 4 Comments
असबंधा छंद "हिंदी गौरव
भाषा हिंदी गौरव बड़पन की दाता।
देवी-भाषा संस्कृत मृदु इसकी माता।।
हिंदी प्यारी पावन शतदल वृन्दा सी।
साजे हिंदी विश्व पटल पर चन्दा सी।।
हिंदी भावों की मधुरिम परिभाषा है।
ये जाये आगे बस यह अभिलाषा है।।
त्यागें अंग्रेजी यह समझ बिमारी है।
ओजस्वी भाषा खुद जब कि हमारी है।।
गोसाँई ने रामचरित इस में राची।
मीरा बाँधे घूँघर पग इस में नाची।।
सूरा ने गाये सब पद इस में प्यारे।
ऐसी थाती पा कर हम सब से…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 14, 2019 at 9:10am — 3 Comments
गुरु पूर्णिमा के विशेष अवसर पर:-
बह्र:- 2212*4
देते हमें जो ज्ञान का भंडार वे गुरु हैं सभी,
दुविधाओं का सर से हरें जो भार वे गुरु हैं सभी।
हम आ के भवसागर में हैं असहाय बिन पतवार के,
जो मन की आँखें खोल कर दें पार वे गुरु हैं सभी।
ये सृष्टि क्या है, जन्म क्या है, प्रश्न सारे मौन हैं,
जो इन रहस्यों से करें निस्तार वे गुरु हैं सभी।
छंदों का सौष्ठव, काव्य के रस का न मन में भान…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 16, 2019 at 3:30pm — 2 Comments
ग़ज़ल (वो जब भी मिली)
बह्र-ए-वाफ़िर मुरब्बा सालिम (12112*2)
वो जब भी मिली, महकती मिली,
गुलाब सी वो, खिली सी मिली।
हो गगरी कोई, शराब की ज्यों,
वो वैसी मुझे, छलकती मिली।
दिखाई पड़ीं, वे जब भी मुझे,
उन_आँखों में बस, खुमारी मिली।
लगाने की दिल, ये कैसी सज़ा,
वफ़ा की जगह, जफ़ा ही मिली।
कभी वो मुझे,बताए ज़रा,
जो मुझ में उसे, ख़राबी मिली।
गिला भी किया, ज़रा भी अगर,
पुरानी…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 14, 2019 at 3:30pm — 5 Comments
तोटक छंद "विरह"
सब ओर छटा मनभावन है।
अति मौसम आज सुहावन है।।
चहुँ ओर नये सब रंग सजे।
दृग देख उन्हें सकुचाय लजे।।
सखि आज पिया मन माँहि बसे।
सब आतुर होयहु अंग लसे।।
कछु सोच उपाय करो सखिया।
पिय से किस भी विध हो बतिया।।
मन मोर बड़ा अकुलाय रहा।
विरहा अब और न जाय सहा।।
तन निश्चल सा बस श्वांस चले।
किस भी विध ये अब ना बहले।।
जलती यह शीत बयार लगे।
मचले मचले कुछ भाव जगे।।
बदली नभ की न जरा…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 8, 2019 at 2:21pm — 6 Comments
कनक मंजरी छंद "गोपी विरह"
तन-मन छीन किये अति पागल,
हे मधुसूदन तू सुध ले।
श्रवणन गूँज रही मुरली वह,
जो हम ली सुन कूँज तले।।
अब तक खो उस ही धुन में हम,
ढूंढ रहीं ब्रज की गलियाँ।
सब कुछ जानत हो तब दर्शन,
देय खिला मुरझी कलियाँ।।
द्रुम अरु कूँज लता सँग बातिन,
में यह वे सब पूछ रही।
नटखट श्याम सखा बिन जीवित,
क्यों अब लौं, निगलै न मही।।
विहग रहे उड़ छू कर अम्बर,
गाय रँभाय रही सब हैं।
हरित सभी ब्रज के तुम पादप,
बंजर…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 22, 2019 at 10:54am — 4 Comments
अहीर छंद "प्रदूषण"
बढ़ा प्रदूषण जोर।
इसका कहीं न छोर।।
संकट ये अति घोर।
मचा चतुर्दिक शोर।।
यह दावानल आग।
हम सब पर यह दाग।।
जाओ मानव जाग।
छोड़ो भागमभाग।।
मनुज दनुज सम होय।
मर्यादा वह खोय।।
स्वारथ का बन भृत्य।
करे असुर सम कृत्य।।
जंगल करत विनष्ट।
सहे जीव-जग कष्ट।।
प्राणी सकल…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 18, 2019 at 1:18pm — 6 Comments
तुझे इस वर्ष नौवें की ओ बी ओ बधाई है,
हमारे दिल में चाहत बस तेरी ही रहती छाई है।
मिला इक मंच तुझ जैसा हमें अभिमान है इसका,
हमारी इस जहाँ में ओ बी ओ से ही बड़ाई है।
सभी इक दूसरे से सीखते हैं और सिखाते हैं,
हमारी एकता की ओ बी ओ ही बस इकाई है।
सभी झूमें, सभी गायें यहाँ ओ बी ओ में मिल के,
सभी हम भक्त तेरे हैं तू ही प्यारा कन्हाई है।
लगा जो मर्ज लिखने का, दिखाते ओ बी ओ को ही,
उसी के पास इसकी क्यों कि इकलौती दवाई…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 1, 2019 at 12:00pm — 6 Comments
(प्रति चरण 8+8+8+7 वर्णों की रचना)
देखा अजब तमाशा, छायी दिल में निराशा,
चार गीदड़ ले गये, मूँछ तेरी नोच के।
सोये हुए शेर तुम, भूतकाल में हो गुम,
पुरखों पे नाचते हो, नाक नीची सोच के।।
पूर्वजों ने घी था खाया, नाम तूने वो गमाया,
सूंघाने से हाथ अब, कोई नहीं फायदा।
ताव झूठे दिखलाते, गाल खूब हो बजाते,
मुँह से काम हाथ का, होने का ना कायदा।।
हाथ धरे बैठे रहो, आँख मीच सब सहो,
पानी पार सर से हो, मुँह तब फाड़ते।…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 16, 2019 at 5:00pm — 3 Comments
षट ऋतु हाइकु
चैत्र वैशाख
छायी 'बसंत'-साख।
बौराई शाख।
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ज्येष्ठ आषाढ़
जकड़े 'ग्रीष्म'-दाढ़
स्वेद की बाढ़।
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श्रावण भाद्र
'वर्षा' से धरा आर्द्र
मेघ हैं सांद्र।
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क्वार कार्तिक
'शरद' अलौकिक
शुभ्र सात्विक।
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अग्हन पोष
'हेमन्त' भरे रोष
रजाई तोष।
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माघ फाल्गुन
'शिशिर' है पाहुन
तापे आगुन।
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मौलिक व अप्रकाशित
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on January 31, 2019 at 12:00pm — 5 Comments
ग़ज़ल (आज फैशन है)
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लतीफ़ों में रिवाजों को भुनाना आज फैशन है,
छलावा दीन-ओ-मज़हब को बताना आज फैशन है।
ठगों ने हर तरह के रंग के चोले रखे पहने,
सुनहरे स्वप्न जन्नत के दिखाना आज फैशन है।
दबे सीने में जो शोले जमाने से रहें महफ़ूज़,
पराई आग में रोटी पकाना आज फैशन है।
कभी बेदर्द सड़कों पे न ऐ दिल दर्द को बतला,
हवा में आह-ए-मुफ़लिस को उड़ाना आज फैशन है।
रहे आबाद हरदम ही अना की बस्ती…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 2, 2018 at 8:30am — 13 Comments
ग़ज़ल (कैसी ये मज़बूरी है)
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गदहे को भी बाप बनाऊँ कैसी ये मज़बूरी है,
कुत्ते सा बन पूँछ हिलाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
एक गाम जो रखें न सीधा चलना मुझे सिखायें वे,
उनकी सुन सुन कदम बढ़ाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
झूठ कपट की नई बस्तियाँ चमक दमक से भरी हुईं,
उन बस्ती में घर को बसाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
सबसे पहले ऑफिस आऊँ और अंत में घर जाऊँ,
मगर बॉस को रिझा न पाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
ऊँचे घर…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 22, 2018 at 3:30pm — 13 Comments
ग़ज़ल(याद आती हैं जब)
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याद आतीं हैं जब आपकी शोखियाँ,
और भी तब हसीं होतीं तन्हाइयाँ।
आपसे बढ़ गईं इतनी नज़दीकियाँ,
दिल के लगने लगीं पास अब दूरियाँ।
डालते गर न दरिया में कर नेकियाँ,
हारते हम न यूँ आपसे बाज़ियाँ।
गर न हासिल वफ़ा का सिला कुछ हुआ,
उनकी शायद रही कुछ हों मज़बूरियाँ।
मिलता हमको चराग-ए-मुहब्बत अगर,
राह में स्याह आतीं न दुश्वारियाँ।
हुस्नवालों से दामन बचाना ए…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 3, 2018 at 8:30am — 9 Comments
ग़ज़ल ,(तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी।)
1222 1222 1222 1222
तेरे चहरे की रंगत अर्गवानी याद आएगी,
हमें होली के रंगों की निशानी याद आएगी।
तुझे जब भी हमारी छेड़खानी याद आएगी
यकीनन यार होली की सुहानी याद आएगी।
मची है धूम होली की जरा खिड़की से झाँको तो,
इसे देखोगे तो अपनी जवानी याद आएगी।
जमीं रंगीं फ़ज़ा रंगीं तेरे आगे नहीं कुछ ये,
झलक इक बार दिखला दे पुरानी याद आएगी।
नहीं कम ब्लॉग में मस्ती…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 2, 2018 at 11:30am — 9 Comments
जनाब साहिर लुधियानवी के मिसरे पर तरही ग़ज़ल।
1222 1222 1222 1222
रहे गर्दिश में जो हरदम, उन_अनजानों पे क्या गुजरी,
किसे मालूम ऐसे दफ़्न अरमानों पे क्या गुजरी।
कमर झुकती गयी वो बोझ को फिर भी रहें थामे,
न जाने आज की औलाद उन शानों पे क्या गुजरी।
अगर हो बात फ़ितरत की नहीं तुम जानवर से कम,
*जब_इंसानों के दिल बदले तो इंसानों पे क्या गुजरी।*
मुहब्बत की शमअ पर मर मिटे जल जल पतंगे जो,
खबर किसको कि उन नाकाम परवानों…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 6, 2018 at 4:04pm — 9 Comments
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