खेतीहर का ध्यान बँटाकर दाना चोरी करता है
मल्लाहों से नौका लेकर नदिया चोरी करता है।१।
*
बात उजाले की नित कर के तारा चोरी करता है
मन्दिर मस्जिद रटकर सबकी पूजा चोरी करता है।२।
*
मन्जिल पास बड़ी है अब तो राहत पाँवों को देदो
ऐसा कह कर सब के पग से रस्ता चोरी करता है।३।
*
ये कैसा राजा आया है आज हमारी नगरी में
सन्तों जैसे पहरावे में …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2020 at 7:04am — 9 Comments
बाढ़-सूखा सूदखोरी हर समय डर अन्नदाता के लिए
कौन सी सरकार चिन्तित है यहा पर अन्नदाता के लिए।१।
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हर समय उद्योगपतियों की उन्हें चिन्ता सताती है मगर
खोज पाये संकटों का हल न अफसर अन्नदाता के लिए।२।
*
कर के उद्यम से यहा तैयार उसको नित्य बोता है उपज
मायने रखता नहीं कुछ खेत ऊसर अन्नदाता के लिए।३।
*
नित्य भूखे पेट सोता है उपज को वो बचाने खेत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 14, 2020 at 8:00am — 12 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
कौन कहता है कि उनसे और वादा कीजिए
है निवेदन जो किया था वो ही पूरा कीजिए।१।
*
सब्र दशकों से किये है आमजन इस देश का
अब गरीबी भूख का कुछ तो सफाया कीजिए।२।
*
बस चुनावों में विरोधी बाद उस के सब सखा
मूर्ख जनता को समझ ऐसे न साधा कीजिए।३।
*
जल रहा कश्मीर तुमको फिक्र अपने कुनबे की
सिर्फ कुर्सी के लिए …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2020 at 7:30am — 10 Comments
२१२२//१२२१/२२१२
मुफलिसी में ही जिसका गुजारा हुआ
कौन शासन जो उस का सहारा हुआ।१।
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उसको जूठन का मतलब न समझाइए
जिस ने पहना हो सब का उतारा हुआ।२।
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चाद किस्मत में उस के नहीं था मगर
आस भर को भी कोई न तारा हुआ।३।
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जिस ने जीवन जिया है सहज कष्ट में
आप कहते हैं उस को ही हारा हुआ।४।
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है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 21, 2020 at 6:22am — 8 Comments
मेटती आयी है घर की तीरगी दीपावली
सब के मन में भी करे अब रोशनी दीपावली।१।
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रीत कितने ही युगों से चल रही हो ये भले
हर बरस लगती है सब को पर नई दीपावली।२।
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तोड़ आओ ये नगर का जाल कहती साथियों
गाँव की नीची मुँडेरों पर जली दीपावली।३।
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दीप सब ये प्रेम और' विश्वास के हैं इसलिए
आँख चुँधियाती नहीं साथी घनी दीपावली।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 14, 2020 at 8:57am — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कहते हैं झूठ ज़ुल्म हिरासत में आ गया
हाँ न्याय ज़ालिमों की हिमायत में आ गया।१।
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लूटा गया था रात में अस्मत को जिसकी ढब
उसका ही नाम दिन को सिकायत में आ गया।२।
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अन्धा है न्याय जानता होगी सजा नहीं
बेखौफ जुल्मी यूँँ न अदालत में आ गया।३।
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बचना था जेल जाने से ऊँँची पहुँँच के बल
शासन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 31, 2020 at 2:00pm — 12 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
पेट जब भरता नहीं गुफ़्तार उसका दोस्तो
ढोइए अब और मत यूँ भार उसका दोस्तो।१।
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नोटबंदी का मुनाफा काले धन की वापसी
हर वचन जाता रहा बेकार उसका दोस्तो।२।
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है खबर रस्ते से करने वो लगा है दरकिनार
रास्ता जिस ने किया तैयार उस का दोस्तो।३।
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हाल देखे से न भरनी जो हमारी झोलियाँ
क्या करें इस हाल में दीदार उसका दोस्तो।४।
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यूँ चमन पूरा खफ़ा हैं फूलों से बरताव पर
दे रहे हैं साथ लेकिन ख़ार उसका दोस्तो।५।
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भाण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2020 at 9:54am — 9 Comments
हाथ पकड़ कर चाहा जिसका हो जाना
उसको भाया भीड़ का होकर खो जाना।१।
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किस्मत किस्मत रटते सबको देखा पर
एक न पाया जिस ने किस्मत को जाना।२।
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मीत अकेलेपन सा कोई और नहीं
लेकिन ये भी सब को पाया तो जाना।३।
**
नींद न आये तो ये कैसे भूलें हम
झील किनारे गोद में सर रख सो जाना।४।
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पीर हमें अब लगती सच में अपनी सी
फूल के बदले पथ में काँटे बो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 13, 2020 at 6:40pm — 13 Comments
देश की सुन्दर तस्वीरें अब रचने वाले नेता कम
सच में जन के हित में नेता बनने वाले नेता कम।१।
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बाँट रहे हैं जाति-धर्म में दशकों पहले जैसा ही
एक रहो सब देश की खातिर कहने वाले नेता कम।२।
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सब धनिकों का पक्ष उठाते अपनी अण्टी भरने को
अब निर्धन की पीड़ाओं को सुनने वाले नेता कम।३।
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ठाठ पुराने राजा जैसे अब हर नेता अपनाता
लाल …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 6, 2020 at 7:01pm — 4 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
झण्डे बैनर टँगे हुए हैं और निशसतें ख़ाली हैं
भाषण देने वाले नेता सारे यार मवाली हैं
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इन के दिन की बातें छोड़ो रातें तक मतवाली हैं
जनसेवक का धार विशेषण रहते बनकर माली हैं
**
कहते तो हैं नित्य ग़रीबी यार हटाएँगे लेकिन
जन के हाथों थमी थालियाँ देखो अबतक ख़ाली हैं
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देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को
पर ख़र्चे में इन की आदतें हैराँ करने वाली हैं
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काम न करते कभी सदन में देश को उन्नत करने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 4, 2020 at 11:01am — 6 Comments
खेत मन का एक जोता हमने बाजी मार ली
तन का सौदा रोक डाला हमने बाजी मार ली।१।
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रेत पर लिख करके गुस्सा हमने बाजी मार ली
पत्थरों पर प्यार साधा हमने बाजी मार ली।२।
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हर नदी की हर लहर पर पार जाना लिख दिया
मोड़ डाला रुख हवा का हमने बाजी मार ली।३।
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छोड़ आये चाँद आधा यूँ सितारों के लिए
किन्तु पहलू में है पूरा हमने बाजी मार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 24, 2020 at 6:30am — No Comments
आँख से काजल चुराने का न कौशल हम में था
दूर रह कर याद आने का न कौशल हम में था।१।
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नाम पेड़ों पर तो हम भी लिख ही लेते थे मगर
पुस्तकों में खत छिपाने का न कौशल हम में था।२।
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दोस्ती सूरज सितारों से तो अपनी थी गहन
चाँद को लेकिन रिझाने का न कौशल हम में था।३।
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पा गये विस्तार …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 23, 2020 at 7:00am — 12 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कहने को जिसमें यार हैं अच्छाइयाँ बहुत
पर उसके साथ रहती हैं बरबादियाँ बहुत।१।
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सजती हैं जिसके नाम से चौपाल हर तरफ
सुनते हैं उस को भाती हैं तन्हाइयाँ बहुत।२।
**
कैसे कहें कि गाँव को दीपक है मिल गया
उससे ही लम्बी रात की परछाइयाँ बहुत।३।
**
पाँवों तले समाज को करके बहुत यहाँ
चढ़ता गया है आदमी ऊँचाइयाँ बहुत।४।
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बैठी हैं घर किये वहाँ अब तो…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 14, 2020 at 7:30am — 4 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
जिनके धन्धे दोहन वाले कब धरती का दुख समझे
सुन्दर तन औ' मन के काले कब धरती का दुख समझे।१।
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जिसने समझा थाती धरा को वो घावों को भरता नित
केवल शोर मचाने वाले कब धरती का दुख समझे।२।
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ताल, तलैया, झरने, नदिया इस के दुख में सूखे नित
और नदी सा बनते नाले कब धरती का दुख समझे।३।
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पेड़ कटे तो बादल रूठा और हवाएँ सब झपटीं
ये सड़कों के बढ़ते जाले कब धरती का दुख समझे।४।
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नित्य सितारों से गलबहियाँ उनकी तो हो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2020 at 5:58am — 6 Comments
अकेलेपन को भी हमने किया चौपाल के जैसा
बचा लेगा दुखों में ये हमें फिर ढाल के जैसा।१।
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भले ही दुश्मनी कितनी मगर आशीष हम देते
कभी दुश्मन न देखे बीसवें इस साल के जैसा।२।
**
इसी से है जगतभर में हरापन जो भी दिखता है
हमारे मन का सागर ये न सूखे ताल के जैसा।३।
**
सितारे अपने भी जगमग न कमतर चाँद से होते
अगर ये भाग्य भी होता चमकते भाल के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2020 at 7:42pm — 2 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
फेंका जो होता आप ने पत्थर सधा हुआ
दिखता जरूर भेड़िया घायल गिरा हुआ।१।
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हर बार अपनी चाल जो होती नहीं सफल
है दुश्मनों से आज भी कोई मिला हुआ।२।
**
स्वाधीन हो के भी कहाँ स्वाधीन हम हुए
फिरता न यूँ ही हाथ ले फदली कटा हुआ।३।
**
रोटी मिली न मुझको न तुझको खुशी मिली
ऐसी गजल से बोल तो किस का भला हुआ।४।
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कल तक जो हँसता खेल के चिंगारियों से था
रोता है आज देख के निज घर जला हुआ।५।
**
मैं जुगनुओं को मुँह…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2020 at 7:17pm — 4 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
शीशे को भी रखने वाले पत्थर लोगों नहीं रहे
यौवन के अब पहले जैसे तेवर लोगों नहीं रहे।१।
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ढूँढा करते हैं गुलदस्ते तितली भौंरे आज यहाँ
काँटों से बिँध फूल को आते मधुकर लोगों नहीं रहे।२।
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केवल आँच जला देती है सावन में भी देखो अब
ज्लाला से लड़ बचने वाले वो घर लोगों नहीं रहे।३।
**
एक तो पहले से मुश्किल थी ये कोरोना क्या आया
रोज कमा खाने के भी अब अवसर लोगों नहीं रहे।४।
**…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2020 at 9:00am — 10 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
किसी की आँख का काँटा न तू होना गँवारा कर
किसी की आँख का तारा स्वयम् को हाँ बनाया कर।१।
**
ये जननी जन्म भूमि तो सभी को स्वर्ग से भी बढ़
गढ़ी हो नाल जिस भूमी उसे हर पल सँवारा कर।२।
**
उतर जाये तो जीवन ये रहे लायक न जीने के
उतरने दे न पानी निज न औरों का उतारा कर।३।
**
जो अपनी नींद सोता हो जो अपनी नींद जगता हो
उसी सा होने की जिद रख उसी को बस सराहा कर।४।
**
हँसी की बात लगती पर हँसी में मत उड़ा देना
अगर दाड़ी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2020 at 4:01pm — 3 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2020 at 11:05am — 14 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
पूछो न आप गाँव को क्या क्या हैं डर दिये
खेती को मार खेत जो सेजों से भर दिये।१।
**
पाटे गये वो ताल भी पुरखों की देन जो
रख के विकास नाम ये अन्धे नगर दिये।२।
**
आँगन वो चौड़ा खेत के छूटे रहट वहीं
दड़बों से आगे कुछ नहीं जितने भी घर दिये।३।
**
वो भी धरौंदे तोड़ के हम से ही थे गहे
कहकर सहारा आप ने तिनके अगर दिये।४।
**
कोई चमन के फूल को पत्थर बना रहा
कोई था जिसने शूल भी फूलों से कर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2020 at 6:30am — 5 Comments
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