२२१/२१२१/२२२/१२१२
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जो भी वतन में दोस्तो दिखते कलाम हैं
हर वक्त उसकी शान में कहते सलाम हैं।१।
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दुत्कार उनको हम रहे केवल सुनो यहाँ
जयचन्दी नीयतों में जो रहते इमाम हैं।२।
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उनका भी मान है नहीं केवल लताड़ है
रखके जो नाम राम का रावण से काम हैं।३।
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नेता सभी हैं एक से जो फूट चाहते
समझेंगे क्या कभी इसे जो लोग आम हैं।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2020 at 4:48am — 8 Comments
हर शासन अब गद्दारों को यार बहुत हितकारी है
जो करता है बात देश की उसको बस लाचारी है।१।
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सर्द हवाओं के चंगुल में ठिठुराती आशाएँ बैठी
सुन्दर सपनों की खेती पर पाला पड़ता भारी है।२।
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पहले लगता था हम जैसा गम का मारा कोई नहीं
पर जब देखा पाया दुनिया हमसे भी दुखियारी है।३।
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तुमको भी पत्थर आयेंगे वक्त जरा सा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2020 at 5:30am — 4 Comments
२२१/२१२२/२२१/ २१२२
किस काम के हैं नेता किस काम का ये शासन
इनके रहे वतन में जब नित्य होनी अनबन।१।
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किस बात से हैं सेवक कहते पहन के खादी
निर्धन के घर अगर ये डलवा न पाये राशन।२।
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अंग्रेज थे बुरे या चम्बल के चोर डाकू
गर जो हो लूट खाना भर देश का ही जनधन।३।
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किस बात की हो चिन्ता किस बात से परेशाँ
मथकर के दे रही है जनता इन्हें तो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2020 at 4:38am — 2 Comments
विकसित होकर हम ने कैसी ये तस्वीर उकेरी है
आदमयुग थी यार न दुनिया जितनी आज अँधेरी है।१।
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बारूदों की जिस ढेरी पर नफरत आग लिए बैठी
उससे सब कुछ ध्वंस में बोलो लगनी कितनी देरी है।२।
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जिसको देखो वही चोट को लाठी लेकर डोल रहा
कहने को पर सब के मन में सुनते पीर घनेरी है।३।
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मजहब पन्थों के हित में तो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2020 at 6:19am — 8 Comments
मेरे साथ चलने वाले तुझे क्या मिला सफर में
बड़ा चैन था अमन था बड़ा सुख था तुझको घर में।१।
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कहीं दुख भरी ज़मीं तो कहीं गम का आसमाँ है
लिए सुख की चाहतें हम अभी लटके हैं अधर में।२।
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जहाँ देखता हूँ दिखता मुझे सिर्फ ये धुआँ है
रह फर्क अब गया क्या भला गाँव और' नगर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 22, 2020 at 8:09am — 6 Comments
जो दुनिया को सबका ही घर कहता है
वो क्यों मुझ को रहने से डर कहता है।१।
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हद से बढ़कर निजता का अभिमान हुआ
अब हर क़तरा खुद को समन्दर कहता है।२।
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मिट्टी की तासीरें जिस को ज्ञात नहीं
वो लालच में धरती बन्जर कहता है।३।
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ढोंगी है या फिर कोई अवतार लखन
मालिक बनकर खुद को नौकर कहता है।४।
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जिसके पास नहीं है दाना वो भी अब
मैं दाता हूँ, …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 16, 2020 at 5:17am — 12 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
ये मत समझो मान के अपना गले लगाने आया है
जीवन में खुशियाँ कैसे हैं भेद चुराने आया है।१।
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अनहोनी सी लगती मुझको अब कुछ होने वाली है
नदिया के तट आज समन्दर प्यास बुझाने आया है।२।
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जिसके पुरखे भटकाने की रोटी खाया करते थे
वो कहता है आज देश को राह दिखाने आया है।३।
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जिस बस्ती को दसकों पहले हमने खूब सदाएँ दी
उस बस्ती को सूरज देखो आज जगाने आया है।४।
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अपने हिस्से तूफाँ तो थे माझी भी क्या खूब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2020 at 7:28am — 10 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
पर्दा सलीके से बहुत मकसद पे डाल कर
वो लाये सबको देखिए घर से निकाल कर।१।
कितना किया अहित है यूँ अपने ही देश का
लोगों ने उसके नाम पर पत्थर उछाल कर।२।
वंशज उन्हीं के कर रहे जर्जर इसे यहाँ
रखना जो कह गये थे ये कश्ती सँभाल कर।३।
कर्तब तेरे किसी को यूँ आते समझ नहीं
तू भी निजाम नित नया मत अब कमाल कर।४।
कर ली है पाँच साल यूँ नेतागरी बहुत
बच्चों सरीखा…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2020 at 4:26pm — 11 Comments
छोड़ गये थे केवट जिन को तूफानी मझधारों पर
साहिल वालो उनसे पूछो क्या बीती दुखियारों पर।१।
हम जैसों की मजबूरी थी हालातों के मारे थे
कहने वाले खुदा स्वयम् को नाचे खूब इशारों पर।२।
आग जलाकर मजहब की नित सबने जो तैयार किये
सच में हर पल देश हमारा बैठा उन अंगारों पर।३।
माग रहे हैं तोड़ के घर को नित…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2020 at 4:55am — 10 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
मिट्टी को जिसने देश की चन्दन बना लिया
जीवन को उसने हर तरह पावन बना लिया।१।
करते नमन हैं उस को नित छोटा भले सही
जिसने भी अपना सन्त सा यौवन बना लिया।२।
कहते हैं राह रच के ही रहजन हुए मगर
अब तो वही है जिसने पथ भटकन बना लिया।३।
साधन हो साध्य से अधिक पावन ये रीत थी
पर अब फरेब झूठ को साधन बना लिया।४।
जो उम्र पढ़ने लिखने की पत्थर हैं हाथ में
कैसा सुलगता देश का बचपन बना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 3, 2020 at 6:32am — 4 Comments
बर्षों से जब रहते आये दुख से मालामाल यहाँ
सुख आकर भी कर पायेगा फिर कितना कंगाल यहाँ।।
तुम रख लेना शायद तुमको उम्मीदों का साल मिले
हमने तो हर पल है खोया उम्मीदों का साल यहाँ।।
शीष झुकाये रहे सहिष्णुता जैसे सब की दोषी हो
खूब मजहबी झगड़े रहते ताने अब तो भाल यहाँ।।
साल नया कितनी उम्मीदें…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2020 at 5:51am — 10 Comments
सँस्कार की नींव हो, उन्नति का प्रासाद
मन की ही बंदिश रहे, मन से हों आजाद।१।
लगे न बीते साल सा, तन मन कोई घाव
राजनीति ना भर सके, जन में नया दुराव।२।
धन की बरकत ले धनी, निर्धन हो धनवान
शक्तिहीन अन्याय हो, न्याय बने बलवान।३।
घर आँगन सबके खिलें, प्रीत प्यार के फूल
और जले नव वर्ष मेें, हर नफरत का शूल।४।
मदिरा में ना डूब कर, भजन करें भर रात
नये साल की दोस्तों, ऐसे हो शुरुआत।५।
स्नेह संयम विश्वास का,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2019 at 6:12am — 16 Comments
समय ने हद से बढ़ के जब नयी मजबूरियाँ दी हैं
उन्हीं मजबूरियों ने ही तनिक चालाकियाँ दी हैं।१।
सफर में राह ने काँटे उगाये पाँव बेबस कर
मगर इक हौसले ने ही कई बैशाखियाँ दी हैं।२।
बढ़ाया हाथ भी ठिठका कहा भौंरे ने जब इतना
खिले फूलों के रंगों ने चमन को तितलियाँ दी हैं।३।
भुला बैठे हैं सब शायद यही …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 17, 2019 at 8:29pm — 8 Comments
१२२२/१२२२/१२२२
अमरता देवताओं का खजाना है
मनुज तूने कभी उसको न पाना है।१।
यहाँ मुँह तो बहुत पर एक दाना है
लिखा जिसके उसी के हाथ आना है।२।
सरल है चाँद तारों को विजित करना
कठिन बस वासना से पार पाना है।३।
रही है धर्म की ऊँची ध्वजा सब से
उसी पर अब सियासत का निशाना है।४।
व्यवस्था जन्म से लँगड़ी बुढ़ापे तक
उसी के दम यहाँ पर न्याय काना है।५।
जला पुतला निभा दस्तूर देते हैं
भला लंकेश को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2019 at 10:59am — 4 Comments
आदम युग से आज तक, नर बदला क्या खास
बुझी वासना की नहीं, जीवन पीकर प्यास।१।
जिसको होना राम था, कीचक बन तैयार
पन्जों से उसके भला, बचे कहाँ तक नार।२।
तन से बढ़कर हो गयी, इस युग मन की भूख
हुए सभ्य जन भेड़िए, बिसरा सभी रसूख।३।
तन पर मन की भूख जब, होकर चले सवार
करती है वो नार की, नित्य लाज पर वार।४।
बेटी गुमसुम सोच ये, कैसा सभ्य विकास
हरमों से बाहर निकल, रेप आ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2019 at 8:30pm — 5 Comments
दोहे
तोड़ो चुप्पी और फिर, कह दो मन की बात
व्याकुल तपती देह पर, हो सुख की बरसात।१।
लाज शरम चौपाल की, यू मत करो किलोल
जो भी मन की बात हो, अँखियों से दो बोल।२।
मन से मन की बातकर, कम कर लो हर पीर
बाँध रखो मत गाँठ में, दुख देगा गम्भीर।३।
मन से निकलेगी अगर, दुखिया मन की बात
जो भी शोषक जन रहे, देगी ढब आधात।४।
कहना मन की बात नित, करके सोच विचार
जोड़े यह व्यवहार को, तोड़े यह …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2019 at 6:00am — 10 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
धन से न आप तोलिए लम्हों की तितलियाँ
कहना फजूल खोलिए लम्हों की तितलियाँ।१।
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उड़ती हैं आसपास नित सबके मचल - मचल
पकड़ी हैं किस ने बोलिए लम्हों की तितलियाँ।२।
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सुनते जमाना उन का ही होता रहा सदा
फिरते हैं साथ जो लिए लम्हों की तितलियाँ।३।
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किस्मत हैं लाए साथ में तुमसे ही ब्याहने
कहती हैं द्वार खोलिए लम्हों की तितलियाँ।४।
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जिसने न खोला द्वार फिर आती कभी नहीं
कितना भी चाहे रो लिए…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2019 at 5:24am — 14 Comments
जले दिवस भर धूप में, चलते - चलते पाँव
क्यों ओ! प्यारी शाम तुम, जा बैठी हो गाँव।१।
रोज शाम को झील पर, आओ प्यारी शाम
गोद तुम्हारी सिर रखूँ, कर लूँ कुछ आराम।२।
जब तक हो यूँ पास में, तुम ओ! प्यारी शाम
थकन भरे हर पाँव को, मिल जाता आराम।३।
बेघर पन्छी डाल पर, बैठा है उस पार
आयी प्यारी शाम है, खोलो कोई द्वार।४।
कितनी प्यारी शाम है, इत उत फैली छाँव
निकले चादर छोड़ कर, जी बहलाने पाँव।५।
आयी प्यारी शाम…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 19, 2019 at 6:00am — 10 Comments
दोहे
भिड़े प्रहरी न्याय के, लेकर निज अभिमान
मुसमुस जनता हँस रही, ले इस पर संज्ञान।१।
खाकी का ईमान क्या, बिकता काला कोट
वह नेता भी भ्रष्ट है, जन दे जिसको वोट।२।
लूट पीट जन आम को, करें न्याय का खून
खाकी, काला कोट खुद, बन बैठे कानून।३।
खाकी, काले कोट को, है इतना अभिमान
आम नागरिक कब भला, हैं इनको इन्सान।४।
रहा न जिनका आचरण, जैसा सूप सुभाय
वही सुरक्षा माँगते, वही कह रहे न्याय।५।
काली वर्दी पड़ गयी,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2019 at 8:09pm — 12 Comments
याद बीते कल का वो सुख क्यों करें
ऐसे दूना अपना ही दुख क्यों करें।१।
पंक की कर मन्च से आलोचना
और गँदला बोलिए मुख क्यों करें।२।
छोड़ दुत्कारों से आये तब भला
उनके घर की ओर आमुख क्यों करें।३।
एक भी छाता न हो जिस शह्र में
बारिशें उस शह्र का रूख क्यों करें।४।
इसकी उनके पास में जब ना दवा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 2, 2019 at 5:07pm — 2 Comments
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