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जफा कर यूँ मुहब्बत में कभी ऊपर नहीं होते
वफा के खेत दुनियाँ में कभी बंजर नहीं होते।1।
खुशी मंजिल को पाने की वहाँ उतनी नहीं होती
जहाँ राहों में मंजिल की पड़े पत्थर नहीं होते।2।
परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो
किसी की सादगी से बढ़ कोई जेवर नहीं होते।3।
नहीं चाहे बुलाता हो उसे फिर तीज पर नैहर
न छोड़े गर नदी नैहर कहीं सागर नहीं होते।4।
यहाँ कुछ द्वार सुविधा के खुले होते जो उनको भी
पहाड़ी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 29, 2016 at 11:25am — 11 Comments
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यौवन भर देखी है हमने कैसी कैसी छाँव घनी
कहने से भी मन डरता अब मिलती थोड़ी छाँव घनी।1
धूप अगर होती राहों में तो साया भी मिल जाता
लेकिन अपने पथ में यारो मंजिल तक थी छाँव घनी।2
हमको तो आदत सहने की सर्दी गर्मी बरखा सब
दुख की धूप हमें दे रक्खो सुख की सारी छाँव घनी।3
छाया अच्छी तो है लेकिन बढ़ने से जीवन जो रोके
कड़ी धूप से भी बदतर है यारो ऐसी छाँव घनी।4
फसलों…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2016 at 10:51am — 6 Comments
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खोटा सिक्का हो गया है आज अय्यारों का फन
हर तरफ छाया हुआ है आज बाजारों का फन
कर रही है अब समर्थन पप्पुओं की भीड़ भी
क्या गजब ढाने लगा है आज गद्दारों का फन
हौसला देते जरा तो क्या गजब करती सुई
आजमाने में लगे सब किन्तु तलवारों का फन
पुल बने हैं कागजों पर कागजों पर ही नदी
क्या गजब यारो यहा आजाद सरकारों का फन
पास जाती नाव है जब साथ नाविक छोड़ता
आपने देखा न होगा यार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 16, 2016 at 11:21am — No Comments
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कहाँ तक नाव जाएगी करे पतवार गद्दारी
गजल लय में रहे कैसे करें असआर गद्दारी ।1।
भले कहना सरल है ये यहाँ हर नींव पक्की है
सलामत छत रहे कैसे करे दीवार गद्दारी ।2l
कहा करते हैं दुर्जन भी ये तो तहजीब का फल है
सुहाती है किसी को ढब किसी को भार गद्दारी ।3l
न जाने यार क्या होगा चमन में हाल फूलों का
अगर करने लगे यूँ ही कसम से खार गद्दारी ।4l
जुड़े जब स्वार्थ ही केवल…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2016 at 12:00pm — 2 Comments
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बिछड़ कर भी कहाँ तुझसे तेरी बातों को भूले हैं
कहाँ उस झील के तट की मुलाकातों को भूले हैं।1।
कि छोड़ा हमने अपना दिन तेरी जुल्फों के साये में
तेरे काँधें पे हम अपनी सनम रातों को भूले हैं।2।
बजा करती हैं कानों में तुम्हारी पायलें अब भी
खनकती चूडि़यों वाले न उन हातों को भूले हैं।3।
न छत पर चाँद तारों से हमारा हाल तुम पूछो
तपन की याद किसको है कि बरसातों को भूले हैं।4।
अगर है याद जो थोड़ा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2016 at 12:01pm — 15 Comments
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उछल कर केंचुए तल से कभी ऊपर नहीं होते
कि दादुर कूप के यारो कभी बाहर नहीं होते ।1
समर्थन पाक को हासिल हमारे बीच से वरना
कभी कश्मीर पर इतने कड़े तेवर नहीं होते।2
पढ़ाते तुम न जो उनको कि भाई भी फिरंगी है
कभी मासूम हाथो में लिए पत्थर नहीं होते।3
बँटे हम तुम न होते गर यहाँ मजहब विचारों में
कभी जयचंद जाफर तब छिपे भीतर नहीं होते।4
समझ थोड़ा अगर रखती हमारे देश की जनता
हमेशा इस सियासत में भरे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 3, 2016 at 9:41am — 14 Comments
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सोच अच्छी हो तो मस्जिद या शिवाला देगी
तंग हो और अगर खून का प्याला देगी।1।
लाख अनमोल कहो यार ये हीरे लेकिन
पर हकीकत है कि मिट्टी ही निवाला देगी।2।
जब हमें भोर में आँखों ने दिया है धोखा
कौन कंदील जो पावों को उजाला देगी।3।
आशिकी यार तबायफ की करोगे गर जो
स्वर्ग से घर में नरक सा ही बवाला देगी।4।
आप हम खूब लडे़ खून बहाना मकसद
राहेरौशन तो जमाने को मलाला देगी।5।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2016 at 3:00pm — 3 Comments
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दुश्मनों के डर को उसने अपना ही डर कर लिया
और दामन दोस्तों के खून से तर कर लिया ।1।
जब नगर में रह न पाए दोस्तो महफूज हम
आदिमों के बीच हमने दश्त में घर कर लिया ।2।
चोट खाकर भी हँसे हैं आँख नम होने न दी
सब गमों को आज हमने देखिए सर कर लिया ।3।
आपके तो पर परिंदों फिर भी क्यों लाचार हो
हर कठिन परवाज भी यूँ हमने बेपर कर लिया ।4।
कह न पाए बात कोई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 19, 2016 at 12:31pm — 10 Comments
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जिसे राणा सा होना था वो जाफर बन गया यारो
सियासत करके गड्ढा भी समंदर बन गया यारो ।1।
हमारी सीख कच्ची थी या उसका रक्त ऐसा था
पढ़ाया पाठ गौतम का सिकंदर बन गया यारो ।2।
करप्सन और आरक्षण का रूतबा देखिए ऐसा
फिसड्डी था जो कक्षा में वो अफसर बन गया यारो ।3।
तरक्की है कि बर्बादी जरा सोचो नए युग की
जहाँ बहती नदी थी इक वहाँ घर बन गया यारो ।4।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2016 at 10:48am — 18 Comments
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मत पूछ किस लिए वो तेवर बदल रहे हैं
शह पा के दोस्तों की दुश्मन उछल रहे हैं l1l
होगी वफा वतन से यारो भला कहाँ अब
हुंकार जाफरों की शासन दहल रहे हैं l2l
हमको पता है लोगों शैलाब बढ़ रहा क्यों
दरिया के प्यार में कुछ पत्थर पिघल रहे हैं l3l
आँखों को सबकी यारों चुँधिया न दें कहीं वो
तम के दयार में से तारे निकल रहे हैं l4l
ताकत विरोध की तज अपनायी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2016 at 11:15am — 14 Comments
गजल/धूप
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करो तय दोस्तो थोड़ा जिगर में धूप का होना
मिटा सीलन को देता है कि घर में धूप का होना /1
दुआ मागी थी रिमझिम में जरा सी धूप तो दे दो
अखरता क्यों तुझे है अब डगर में धूप का होना /2
जहाँ देखो वहीं जलवा करें साए इमारत के
पता चलता किसे है अब नगर में धूप का होना /3
चलो आँगन में रख आए चटखती हड्डियों को अब
जरूरी है बुढ़ापे की उमर में धूप का होना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2016 at 11:52am — 18 Comments
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कब यहाँ पर्दा उठाया जाएगा
कब हमें सूरज दिखाया जाएगा /1
थक गए हैं झूठ की उँगली पकड़
सच का दामन कब थमाया जाएगा /2
सब परेशाँ तीरगी से दोस्तो
कब दिया कोई जलाया जाएगा /3
है सुरक्षा खाद्य की कानून में
पर अनाजों को सड़ाया जाएगा /4
दूर महलों से खड़ी कुटिया में फिर
इक निवाला बाँट खाया जाएगा /5
यह समय है झूठ का कहते है सब
राम को रावण बताया जाएगा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 12:09pm — 16 Comments
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उसे तो मुक्त होना बस उसी की काहिली से है
कमी जो जिंदगी में यार वो उसकी कमी से है /1
जरा ये तो बताओ क्यों बुरा कहते हो किस्मत को
अगर है दूर मंजिल तो समझ लो बुुजदिली से है /2
मनुज सब एक से ही हैं नहीं छोटा बड़ा कोई
सभी का वास्ता केवल उसी इक रोशनी से है /3
जहाँ गुजरा था इक बचपन सुहाना यार उसका भी
उसी को छोड़ आया वो बहुत ही बेदिली से है /4
हकीकत आप समझो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2016 at 10:55am — 8 Comments
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हुनर की बात है सबको गमों में यूँ हँसाना तो नहीं आता
सभी के हाथ यारो ये मुहब्बत का खजाना तो नहीं आता
है हसरत तो हमारी भी लगाएँ दिल हसीनों से जमाने में
हमें पर नाज कमसिन का जरा भी यों उठाना तो नहीं आता
हमेशा लौट आता कारवाँ गर्दिश का जैसे दोस्तों फिर फिर
कि वैसे लौटकर फिर से बुलंदी का जमाना तो नहीं आता
लगेगी जिंदगी कैसे सजा से हट किसी ईनाम के जैसी
सभी को यार होठों पर तबस्सुम को सजाना तो नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2016 at 10:57am — 15 Comments
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न कोई दिन बुरा गुजरे न कोई रात भारी हो
जुबाँ को खोलना ऐसे न कोई बात भारी हो /1
दिखा सुंदर तो करता है हमारा गाँव भी लेकिन
बहुत कच्ची हैं दीवारें न अब बरसात भारी हो /2
न तो धर्मों का हमला हो न ही पंथों से हो खतरा
न इस जम्हूरियत पर अब किसी की जात भारी हो /3
पढ़ा विज्ञान है सबने करो तरकीब कुछ ऐसी
न तो हो तेरह का खतरा न साढ़े सात भारी हो /4
महज इक हार से जीवन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2016 at 11:29am — 12 Comments
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न जाने हाथ में किसके है ये पतवार मौसम की
बदल पाया न कोई भी कभी रफ्तार मौसम की /1
सितम इस पार मौसम का दया उस पार मौसम की
समझ चालें न आएँगी कभी अय्यार मौसम की /2
अभी है पक्ष में तो मत करो मनमानियाँ इतनी
न जाने कब बदल जाए तबीयत यार मौसम की /3
उजाड़े जा रहा क्यों तू धरा से रोज ही इनको
दवाई पेड़ पौधे हैं समझ बीमार मौसम की /4
न आए हाथ उतने भी लगाए बीज थे जितने
पड़ी कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2016 at 11:55am — 13 Comments
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प्यार के इस माह की यारो कहानी क्या कहें
बिन किसी के थम गयी है जिंदगानी क्या कहें /1
यूँ कभी खुशियों के मौसम भी छलकती आँख थी
दर्द से हट आँसुओं के अब तो मानी क्या कहें /2
आजकल बैसाखियों पर वक्त जाने क्यों हुआ
थी कभी किससे जवाँ वो इक रवानी क्या कहें /3
आप कहते हो अकेलापन सताता है बहुत
साथ अपने तो सदा यादें पुरानी क्या कहें /4
खुश रहे बस हो …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2016 at 11:27am — 10 Comments
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कौन कहेगा यारो बोलो बस्ती की मनमानी की
दोष लगाता हर कोई है गलती कहकर पानी की /1
राह रही जो नदिया की वो घर आगन सब रोक रहे
खादर बंगर पाट रखी है नींव नगर रजधानी की /2
भीड़ बड़ी हर ओर साथ ही कूड़े का अम्बार बढ़ा
धन के बल पर नदी मुहाने आज पँहुच शैलानी की /3
हम को नादाँ कहकर कोई बात न कहने देते पर
यार सयानों ने हर दम ही बात बहुत बचकानी की /4
माना सुविधाओं का यारा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2016 at 12:23pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
इस नगर में हर किसी को इक फसाना चाहिए
ऊँघते को ठेलते का इक बहाना चाहिए /1
कब से ठहरा ताल अब तो मारिए कंकड़ जरा
जिंदगी का लुत्फ कुछ तो यार आना चाहिए /2
बेबसी क्यों ओढ़नी जब हाथ लाठी कर्म की
द्वार किस्मत का चलो अब खटखटाना चाहिए /3
चोट खाकर देखिए खुद दर्द की तफतीस को
बोलना फिर दर्द में भी मुस्कुराना चाहिए /4
हो गयी हो पीर पर्वत हर दवा जब बेअसर
आँसुओं को किसलिए फिर छलछलाना चाहिए…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 15, 2016 at 12:22pm — 6 Comments
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सदा सम्मान इकतरफा कहाँ तक फूल को दोगे
तिरस्कारों की हर गठरी कहाँ तक शूल को दोगे /1
उठेगी तो करेगी सिर से पाँवों तक बहुत गँदला
अगर तुम प्यार का कुछ जल नहीं पगधूल को दोगे /2
नदी आवारगी में नित उजाड़े खेत औ बस्ती
कहाँ तक दोष इसका भी कहो तुम कूल को दोगे /3
तुम्हारी सोच में फिरके उन्हें ही पोसते हो नित
सजा तसलीमा रूश्दी को दुआ मकबूल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 9, 2016 at 11:00am — 12 Comments
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