For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Pushyamitra Upadhyay's Blog (35)

उन से कह दो खतों में महक ना रखें

उन से कह दो खतों में महक ना रखें

मेरी चाहत पे इतना भी शक ना रखें



चाँद छुप जाएगा रात रुक जायेगी

अपनी आँखों में इतनी चमक ना रखें



जिक्र उसका चले, हाल पूछें मेरा

मेरे जख्मों पे ऐसे नमक ना रखें



मेरा बनना है उनको तो बन जायें वो

मेरे बन जायें तो मुझ पे हक ना रखें



दीद-ऐ-महबूब जितना मिला लूट लें

और उम्मीद फिर मौत तक ना रखें



चाँद ने खुद् निहारा जो शब् भर हमें

क्यों कदम फिर हमारे बहक ना रखें



मैं भी लो छोड़ दूं जिक्र शहनाई…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 20, 2012 at 10:19pm — 1 Comment

है भीतर कुछ ऐसा बैठा

देखा है कई बार

अनीति के बढ़ते क़दमों को

शिखर तक जाते हुए

देखा है कई बार

दुष्टों को....सूर्य पर मंडराते हुए



किन्तु कभी नहीं सोचा

कि होकर शामिल उनमें

मैं भी पाऊं सामीप्य गगन का/



ना ही सोचा कि मैं छोडूं

धरा नीति की

और विराजूं उड़ते रथ में/

है भीतर कुछ ऐसा बैठा

देता नहीं भटकने पथ में/

हे ईश् मेरे कहीं वो तुम तो नहीं



देखा है कई बार

सत्य को युद्धरत/

क्षत विक्षत...आहत/

सांस तक लेने के…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 17, 2012 at 10:23pm — 4 Comments

सफ़ेद गुलाब

यूं ही तोड़ लिया था उस दिन,

एक सफ़ेद गुलाब बागीचे से,

मैंने तुम्हारे लिए/

कि सौंप कर तुम्हें..

तुमसे सारे भाव मन के

कह दूंगा,

नीली नीली स्याही सा

कोरे कागज़ पर बह दूंगा/

हो जाऊँगा समर्पित ,

पुष्प की तरह/

फिर तुम ठुकरा देना

या अपना लेना/

मगर फिर तुम्हारे सामने...

शब्द रुंध गये/

स्याही जम गयी/

धडकनें बढ़ गयीं/

सांस थम गयी/

मैं असमर्थ था ..

तुम्हरी आँखों के सुर्ख सवालों,

का उत्तर देने में/

या कि उस लिखे हुए उत्तर के…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 11, 2012 at 9:12am — 10 Comments

न जाने कब छुआ था कागज़ का बदन स्याही से मैंने

न जाने कबसे,

जारी है ये वहशत/

ये खिलवाड़ लफ़्ज़ों से,

न जाने कब छुआ था,

कागज़ का बदन स्याही से मैंने?



उसके जाने के बाद तो नहीं!

उसके मिलने से पहले भी नहीं!

वहशत है तो,

आगाज़ खुशियों से हुआ होगा/

शायद तब...जब

उसने नज़रों से छुआ होगा/

लब्ज़ बस रास्ते ही होंगे,

मंजिल बस वो होगी,

अहसास बेताब होंगे/

हसरतें मचतली होंगी/

दिल बहकता होगा,

धडकनें संभलती होंगी/

बहुत वक़्त बीत गया है

बहुत सफ़र बीत गया है

याद भी नहीं मुझे

न…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 4, 2012 at 10:32pm — 4 Comments

तुम भी होगे शायद परिचित...

तुम भी होगे शायद परिचित

शब्द, मौन के इन झगड़ों से/

शब्द स्वयं को

मौन स्वयं को

किन्तु समर्पित

दोनों....तुमको



मौन कहे...तुम समझोगे

शब्द कहें...मैं समझा दूं

दोनों ही लेकिन ये चाहें...कैसे भी तुमको पा लूँ



मौन कहे तुम ना लौटोगे,

शब्द कहें आवाज़ तो दूं

दोनों ही पर चाह करें ये...हाथ तुम्हारा थाम तो लूँ



इसी शोक से, इसी शोर से

इन प्रश्नों के उठे जोर से

तुम भी व्यथित हुए तो होगे

मन भावों की इन रगड़ों… Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on September 23, 2012 at 9:53pm — 6 Comments

प्रेम अगन को बांधो कितना,..

लाख झूठ चाहे स्वर बोलें,

मौन मगर सच कह जाये |

प्रेम अगन को बांधो कितना,

धुँआ तो जग में रह जाये ||

ये प्रेम हुआ ये कृष्ण हुआ,

न पहरों से है झुक पाता|

जो बन सुगंध हो चुका व्याप्त,

कैसे हाथों में रुक जाता||

तुम कई लगा लेना बंधन,

बहना है इसको बह जाये|

प्रेम अगन को बांधो कितना,

धुँआ तो जग में रह जाये||1||

बीज घृणा के बोने वाले,

भ्रम के कितने यंत्र करोगे|

जिस आश्रय में जीवित है जग,

क्या उसको परतंत्र…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on September 21, 2012 at 7:24pm — 5 Comments

एक छोटी सी कविता मेरी

एक छोटी सी कविता मेरी,

ना जाने कहाँ खो गयी है

सुबह, सीढियां चढ़ते वक्त तो थी

मेरी ही जेब में

फिर ना जाने कहाँ गयी

सारे दिन की भाग दौड़ में

मुझे भी न रहा ध्यान

न जाने कब खो गयी वो

छोटी सी ही थी

उस कविता में,

एक पेड़ था

पेड़ पे एक झूला

झूले पर झूलते मेरे दोस्त

आवाज़ देकर बुलाते हुए

वो सब उसी कविता में ही तो थे

अब वो भी ना जाने कैसे मिलेंगे?

खो गये वो भी

उस कविता में था

एक बेघर हुआ

चिड़िया का छोटा सा…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on September 11, 2012 at 10:07pm — 7 Comments

आसमाँ

जैसे
ठहरा हुआ समंदर कोई
गहरे नीले रंग से रंगा...ऐसा आसमाँ
दूर दूर तक फैला  हुआ...
जिसके किसी छोर पर
तुम हो...
किसी छोर पर मैं हूँ
और
हम दोनों के बीच
ये तैरता हुआ सफ़ेद मोती....
सब कुछ वैसा ही है/ कुछ नहीं बदला
बस बदल गयीं हैं,
इस समंदर से अपनी शिकायतें |
पहले ये बहुत छोटा लगता था हमें,
और अब ये समन्दर ख़त्म ही नहीं होता
....मीलों तक......

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on September 1, 2012 at 10:05pm — 4 Comments

सारांश

छुटपन में
हर रोज़ बाबा का हाथ थामे निकल जाता था मैं,
सुबह की सैर को |
रास्ते की हर ठोकरों से बेख़ौफ़ लड़ता,
अकड़ता,
बढ़ता जाता था मैं |
क्यों कि जानता था,
कि कोई भी पत्थर कोई भी ठोकर मुझे गिरा न पाएगी |
क्यों कि दुनिया का सबसे मज़बूत सहारा थाम रखा है मैंने....
पर
कल सीढियां चढ़ते वक़्त
बाबा लड़खड़ा गये...और थाम लिया हाथ मेरा!
और मैं रह गया,
अतीत और वर्तमान के बीच का
सारांश ढूंढता हुआ.....
 
-पुष्यमित्र उपाध्याय
.

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 28, 2012 at 9:20pm — 2 Comments

फिर कोई धोखा खा बैठे.....

फिर कोई धोखा खा बैठे

फिर द्वार तुम्हारे आ बैठे

सीधी साधी बातों में

हम अपना मन उलझा बैठे

गुड्डे गुडिया के दौर में हम तो

प्रीत का रोग लगा बैठे

जो बात कभी न समझी तुमने

हम खुद को वो समझा बैठे

जो आया ठोकर लगा गया

पत्थर दिल ऐसा पा बैठे

कच्ची सी वो उमर थी लेकिन

हम पक्की कसमें खा बैठे

दो लफ्जों की बात थी सारी

वो क्या-क्या लिखवा बैठे

जो गीत अधूरे छोड़ गए तुम

हम आज वही फिर गा बैठे

फिर कोई धोखा खा…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 25, 2012 at 9:43pm — 2 Comments

आईने से निगाहें हटा लीजिये

आईने से निगाहें हटा लीजिये
या निगाहों में हम को पनाह दीजिये

आपको दिल ने समझा है अपना नबी
थोडा अपने भी दिल को मना लीजिये

आप ही आप हैं हर निगाह हर तरफ
आये ना गर यकीं आजमा लीजिये

चश्म बेचैन है रौशनी के लिए
ऐ निहां अब तो परदा उठा दीजिये

हम ही हम हैं दीवाने हमीं बेफहम
आप भी होश थोडा गवां दीजिये

बोलो कब रहे तिश्नगी में नज़र
इश्क का जाम अब तो लुटा दीजिये

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 23, 2012 at 8:30pm — 9 Comments

किसी को याद कर रोये





किसी को याद कर रोये,  किसी को रुलाना याद आया,

जब जब तुझे जाते देखा, तेरा लौट आना याद आया..



हर सुर-साज़ देखा जब, बिकता हुआ कीमतों में

हमें तब तेरा यूँ ही, गुनगुनाना याद आया





यूं तो मेरा हाल भी न पूछा, ताउम्र किसी ने

शाम-ऐ-रुखसत पे ही क्यों सब फ़साना याद आया



उनको फुर्सत ही कहाँ, इस पल की यहाँ

और दिल तुझे वो किस्सा पुराना याद आया?



फूल को नोच कर उनके मिलने का यकीं करना

अपने मुकद्दर को यूं भी आज़माना याद…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 22, 2012 at 8:00pm — 2 Comments

मन की बेकल धरती पर

मन की बेकल धरती पर जब, कोई बदरी छा जाए

जब बात पुरानी कोई आकर, मेरी याद दिला जाए

तब नाम हमारा लेकर खुद को, नींदों में तुम भर लेना

स्वप्नों में मिलने आयेंगे, तुम आँखों को बंद कर लेना



आस मिलन की घुल जाए, हर अंगडाई हर करवट में

जब बस जाए बस मेरा चेहरा,माथे की हर सलवट में

जब बेसुध से ये कदम तुम्हारे, दौडें बरबस देहरी को

जब मेरे आने की आहट, तुम सुन बैठो हर आहट में



तब मेरा नाम लिखे हाथों को, हारी पलकों पर धर लेना

स्वप्नों में मिलने आयेंगे, तुम आँखों को…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 21, 2012 at 10:00pm — 8 Comments

जब भी आती है याद तुम्हारी

जब भी आती है याद तुम्हारी,
पलट लेता हूँ डायरी के पन्ने को,
और पढ़ लेता हूँ
उन तारीखों का वर्तमान
और सोचता हूँ
काश!
जिन्दगी भी पलट जाती,
यूं ही उन तारीखों तक............../

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 21, 2012 at 12:30am — 7 Comments

चलो कि खुद को ढूंढने चलें

चलो,

चलो कि खुद…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 20, 2012 at 9:00pm — 5 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service